Arthritis and Ayurvedic Chikitsa: अमूमन हमारे आसपास ऐसे कोई न कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जो जोड़ों के दर्द और सूजन की समस्या से जूझ रहा है। यह दर्द शरीर के विभिन्न अंगों में हो सकता है-घुटनों, पीठ के निचले हिस्से, सर्वाइकल स्पाइन, कंधों, हाथ-पैर की उंगलियों और जोड़। मेडिकल टर्म में जोड़ों के दर्द की समस्या को आर्थराइटिस या गठिया रोग कहा जाता है। अकसर इसकी अनदेखी की जाती है और दर्द से राहत पाने के लिए पेनकिलर का सहारा लिया जाता है। जिसकी वजह से आगे चलकर आर्थराइटिस गंभीर रूप ले सकता है। अंगों में विकृति आ सकती है और विकलांगता को भी झेलना पड़ सकता है।
वास्तव में आर्थराइटिस हमारे शरीर में मौजूद हड्डियों के जोड़ों की बीमारी है। जोड़ दो हड्डियों के जुड़ाव वाली जगह को कहते हैं जिनके बीच में 5-6 मिलीमीटर की चिकनी लेयर यानी कार्टिलेज होता है। यह कार्टिलेज हड्डियों को सपोर्ट करता है और जोड़े रखता है। आर्थराइटिस में हड्डियों के बीच मौजूद कार्टिलेज कम होने लगती है। इससे जोड़ों, आसपास की मांसपेशियों में अकड़न और काफी दर्द रहता है। जोड़ टेढ़े पड़ने लगते हैं, मरीज को चलने-फिरने में दिक्कत आ जाती है।
क्या कहते हैं आंकड़े-

डब्ल्यूएचओ के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं ( तकरीबन 60 प्रतिशत) में अधिक मिलता है। इसकी मुख्य वजह है- प्राकृतिक रूप से महिलाओं की हड्डियां पुरुषों के मुकाबले छोटी, पतली और मुलायम होती हैं जिससे आर्थराइटिस की गिरफ्त में जल्दी आ जाती हैं। 45-50 साल की उम्र में मेनोपाॅज की स्टेज पर पहुंची महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन हार्माेन बहुत तेजी से कम होने लगता है। हड्डियों के क्षरण होने लगता है जिससे उनमें सूजन और दर्द रहता है और आर्थराइटिस की समस्या उभर जाती है।
भारत में आर्थराइटिस के तकरीबन 18 करोड़ मामले देखने को मिलते हैं। आर्थराइटिस के मरीजों में 20 फीसदी लोग 30 साल से कम उम्र के होते हैं। पहले यह समस्या जहां 50 साल के पार के बुजुर्गाे में देखी जाती थी। आज के बदलते परिवेश में गतिहीन जीवनशैली, खान-पान की गलत आदतें जैसे कारणों के चलते 30 साल के 20 फीसदी युवा भी आर्थराइटिस की चपेट में आ रहे हैं। आनुवांशिक कारणों से जुवेनाइल आर्थराइटिस 14 साल से भी कम उम्र के बच्चों में देखा जाता है।
आयुर्वेद में आर्थराइटिस को शरीर में वात दोष की वजह से माना जाता है जो मूलतया गलत खानपान और अव्यवस्थित जीवनशैली से होता है। बढ़ती उम्र में होने वाली कमजोरी और जोड़ों में मौजूद साइनोवियल फ्ल्यूड की कमी से भी हो सकती है। हालांकि आर्थराइटिस को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन आयुर्वेद के हिसाब से समुचित आहार-विहार-औषधि की मदद से नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है। यानी अच्छे खानपान, व्यवस्थित जीवनशैली और समुचित दवाइयां को अपनाकर नियंत्रित किया जा सकता है।
घर में करें उपचार

आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से इन उपायों के नियमित इस्तेमाल करने पर आर्थराइटिस में जोड़ों में होने वाले दर्द और सूजन में आराम मिलता है। जोड़ों की अकड़न दूर होती है, मूवमेंट में आसानी होती है-
- रात को सोने से पहले हल्दी-दूध पीना जोड़ों के दर्द को कम करने में मदद करता है। एक कप दूध में आधा चम्मच कच्ची हल्दी को दूध में उबाल लें। गुनगुना होने पर पी लें।
- अदरक को काली मिर्च और शहद के साथ मिलाकर लें।
- हालांकि, अश्वगंधा, सहजन, मेथी दाना के नियमित का नियमित सेवन करना फायदेमंद है।
- कैस्टर ऑयल या तिल के तेल को हल्का गर्म करके प्रभावित जगह पर हल्के हाथों से मालिश करें।
- एक तरफ से सिंकी हुई गेहूं की चपाती बनाएं। दूसरी तरफ कैस्टर ऑयल, तिल ऑयल और थोड़ी-सी हल्दी लगाकर प्रभावित जोड़ पर रखकर पट्टी बांध लें।
- गर्म पानी में सेंधा नमक मिलाकर सेंकना फायदेमंद है। हाथ-पैर में दर्द हो तो किसी बर्तन या बाल्टी में पानी लेकर दर्द वाली जगह को डुबो कर सिंकाई करें। अगर दर्द घुटनों या कंधे जैसे अंगों में हो तो गर्म पानी में कॉटन के कपडे़ को भिगोकर सिंकाई की जा सकती है। सिंकाई के बाद प्रभावित जगह को कपड़े से पौंछ लें। तिल या कैस्टर ऑयल से हल्के हाथों से लगाकर मसाज करें। उसके ऊपर क्रेप बेंडेज बिना किसी प्रेशर के बांध लें ताकि हवा न लगे और दर्द बढ़ न जाए।
- कलाई जैसे जोड़ में दर्द होने पर कैस्टर ऑयल में थोड़ा सा नमक डाल कर हल्के हाथों से मसाज करें।
- गर्म की पोटली बना कर सिंकाई करें।
कैसा हो आहार

पोषक और संतुलित आहार लें। ध्यान दें कि समुचित मात्रा में कैल्शियम रिच खाद्य पदार्थ ले रहे हों। आहार में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड, प्रोटीन की मात्रा ज्यादा बढ़ाएं। कैल्शियम के अवशोषण के लिए विटामिन डी जरूरी है जिसके लिए व्यक्ति को दिन में कम से कम 20 मिनट धूप जरूर सेंकनी चाहिए। जंक फूड, कार्बोनेटिड ड्रिंक्स, प्रिजर्वेटिव भोजन, तला-भुन खाना अवायड करें। जिन चीजों से कफ बढ़ता है या शरीर में कफ या आम बढ़ता है- उन्हें खाने से परहेज करना चाहिए जैसे- उड़द की दाल, चावल, आलू, अरबी, भिंडी, राजमा अपने आहार में शामिल नहीं करनी चाहिए। घर का बना ताजा और गुनगुना खाना चाहिए।
कैसे करें बचाव
आर्थराइटिस में घुटनों का दर्द आमतौर पर ऑस्टियो-आर्थोराइटिस के कारण होता है। दर्द से बचाव के लिए जरूरी है कि घुटनों के दर्द से राहत पाने के फिजियोथेरेपी करें। इसके साथ आयुर्वेद में पंचकर्मा थेरेपी भी उपयोगी है। पंचकर्मा ऐसी विधा है जो रिजनरेटिव प्रोसेस को कंट्रोल करती है, जोड़ों के लिए बहुत लाभकारी है। खासकर जानुबस्ति चिकित्सा के माध्यम से जोंड़ों में मौजूद साइनोवियल फ्ल्यूड की पुनः आपूर्ति की जा सकती है। ठीक तरह से तेल से की जाने स्नेहन विधि से जोड़ों की मूवमेंट में सुधार कर सकते हैं।
वजन नियंत्रित रखें क्योकि जोड़ों खासकर पैरों के जोड़ों पर हमारे शरीर के भार का प्रेशर रहता है जिसकी वजह से घुटनों मे दर्द बना रहता है। रेगुलर एक्सरसाइज शेड्यूड को फोलो करें। इससे न केवल जोड़ों की मूवमेट बनी रहेगी, बल्कि कैल्शियम के अवशोषण में भी मदद मिलती है। आप योग और प्राणायाम कर सकते हैं। एक्सरसाइज करने से जोड़ों में घर्षण के कारण एक प्रकार की ऊष्मा पैदा होती है जो साइनोवियल फ्ल्यूड और जोड़ों की मूवमेंट बनाए रखती है।
रखें ध्यान
आर्थराइटिस में जोड़ों में दर्द हो तो एक्सरसाइज करते समय ध्यान रखें कि क्षमतानुसार ही एक्सरसाइज करें। जैसे-जैसे आपकी क्षमता बढ़ती है या जोड़ों में दर्द कम होता है- तब धीरे-धीरे एक्सरसाइज बढ़ा सकते हैं।
( डॉ प्रीति छाबड़ा, सीनियर कंसल्टेंट आयुर्वेद, सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली )
