Grehlakshmi Ki Kahani: मीनाक्षी की शादी के बाद आज उसका पहला करवा चौथ है। यूं तो हर सुहागन की तरह पूरे साज श्रृंगार और मेहंदी रंगे हाथों से वो उस पर्व की तैयारी कर रही थी पर उसकी आंखों में अपने पति दीपक के लिए करवाचौथ को लेकर एक अटूट ही विश्वास दिख रहा था। वह सब देखकर उसकी सास सरिता को अपने गुरु जी की सालों पुरानी बात याद आ जाती है।
यह बात तब की जब दीपक करीब 6 वर्ष का था। जब दीपक का जन्म हुआ था तब सरिता के जीवन में खुशी की लहर उमड़ आई थी। परंतु वह लहर कुछ पल की ही थी। दीपक 4 महीने का था तो उसकी तबीयत खराब होने लगी थी। डॉक्टर ने उसको भर्ती करा और कुछ लंबे इलाज के बाद वह ठीक हो गया था। लेकिन उसके बाद से ही दीपक या तो अक्सर बीमार रहता है या उसको कभी ना कभी चोट लगती रहती। ऐसा लगता था मानो बार–बार मौत के मुंह से बचकर निकल आता है। ऐसा अक्सर होने से सरिता घबरा गई और उसने सोचा कि किसी पंडित को उसकी जन्मपत्री दिखानी चाहिए। उसकी सहेली को इस बात का पता चला तो उसने शहर के बाहर बड़े गुरुजी के बारे में सरिता को बताया। बड़े गुरुजी शहर के बाहर एक छोटे से मंदिर में रहते थे। उनके बारे में यह प्रचलित था कि उन्हें सिद्धि प्राप्त है। वो हाथ और चेहरा देखकर परेशानी की वजह बता देते हैं चाहे वह पूर्व जन्म से जुड़ी ही क्यों ना हो। सरिता दीपक को लेकर गुरुजी के पास जाती है। कुछ देर साधना करने के बाद गुरुजी दीपक का हाथ देखते हैं और उसके माथे पर हाथ रखकर आंखें बंद कर ध्यान लगाते हैं।
इतने साल तक वह पूरी आस्था के साथ इसके लिए करवाचौथ का व्रत रख रही थी। इसी वजह से तुम्हारा बेटा बार-बार हर परेशानी से बाहर निकल आता है। गुरु जी कहते हैं। वह कौन गुरु जी? सरिता पूछती है।
गुरुजी बताते हैं, ‘इसकी पिछले जन्म की साथी जिसने करवाचौथ के व्रत को किसी तपस्या से कम नहीं समझा और प्रेम की भी हदें पार कर दी थीं। उसकी तपस्या का ही फल है कि तुम्हारा बेटा खतरों से बचता आया है और आगे भी बचेगा। पूरी कहानी बताइए गुरुजी, सरिता उत्सुकता से पूछती है।
गुरुजी कहानी बताना शुरू करते हैं। नीलम नाम था उस लड़की का। पिछले जन्म में तुम्हारे पुत्र का नाम गोपाल था। नीलम और गोपाल पड़ोसी गांव के रहने वाले थे। दोनों को शिक्षा ग्रहण करना और बांटना अच्छा लगता था। उनके पास के गांव में ही गरीबों के लिए मुफ्त शिक्षा देने का कुछ दिनों का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसी के चलते उनका एक मुफ्त शिक्षा कार्यक्रम में मिलना हुआ। एक से विचार ने दोनों को अच्छा दोस्त बना दिया और काम की वजह से वह अक्सर मिलने भी लगे। जल्द ही दोनों ने एक-दूसरे को पसंद करना शुरू किया और एक दिन दोनों ने एक-दूसरे को जीवनसाथी बनाने का फैसला किया।
आखिरकार घरवालों की रजामंदी से दोनों की सगाई कर दी गई और 15 दिन के बाद उनका विवाह होना तय हुआ। मगर देश की आजादी और सगाई की खुशी के बीच एक बेहद दुखद समाचार मिला, देश के बंटवारे का। देश का वह बंटवारा किसी बहुत बड़े महासंग्राम से कम नहीं था। लोगों को घरों से निकलकर भागना पड़ रहा था। कौन क्या छोड़कर और क्या लेकर जा रहा है किसी को कुछ नहीं पता था। लोगों के अपने छूटते जा रहे थे और अनजानों के साथ सफर तय हो रहा था। इसी बंटवारे की वजह से नीलम और गोपाल भी एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। जिंदा भी हैं या नहीं यह किसी को कुछ नहीं पता था। गोपाल का तो कुछ पता नहीं चला। नीलम हिंदुस्तान में ही रह गई थी। बहुत मुश्किल से किस्मत ने साथ दिया और नीलम को अपने मां-बाप के साथ रहने की एक जगह मिल गई थी। धीरे-धीरे उनकी जिंदगी आगे बढ़ने लगी लेकिन नीलम का मन तो गोपाल में ही रह गया था।
कुछ महीनों बाद करवा चौथ का त्यौहार आया तो अपनी मां के साथ नीलम ने भी गोपाल के लिए व्रत रखा। मां के पूछने पर नीलम ने जवाब दिया, जब तक मैं जिंदा हूं गोपाल ही मेरा पति है और मैं उसके लिए हर साल यह व्रत रखूंगी। मेरा विश्वास है वह जहां भी होगा मेरा यह व्रत उसकी रक्षा करेगा। अगर वो जिंदा न हो तो? मां ने पूछा। उसके नए जन्म में भी मेरा यह व्रत उसकी रक्षा करेगा। भगवान से भी मेरी यही बस एक इच्छा है। नीलम ने पूरे विश्वास के साथ अपनी मां को जवाब दिया।
सरिता गुरुजी से कहती है तो क्या पता नीलम अभी भी जिंदा है। उस किस्से को तो अभी सिर्फ 7 साल हुए हैं। मैं एक बार उससे मिल तो लूं जिसकी वजह से मेरा बेटा सही सलामत है।
गुरु जी कहते हैं, कुछ दिन पहले ही उसे पता चला कि गोपाल का तो बंटवारे के वक्त ही देहांत हो गया था। नीलम खुद को कितना भी मजबूत दिखाए लेकिन गोपाल को देखने की उम्मीद उसके मन में बहुत गहरी थी इसीलिए वह खबर सुनते ही उसे बहुत बड़ा सदमा लगा और अभी कुछ दिन पहले ही वह चल बसी। परंतु तुम चिंता मत करो, उसके कठोर व्रत का फल हमेशा तुम्हारे पुत्र की रक्षा करेगा। बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि नए जन्म में नीलम को उसके अटूट व्रत का सुखद फल मिले और प्रभु उसको इस जन्म के तुम्हारे बेटे दीपक (यानी गोपाल) की पत्नी बनाए। जो खुशियों के पल उन दोनों बच्चों ने उस जन्म में खोए थे इस जन्म में उनको वह सारी खुशियों के पल मिलें।
सारी बातें सुनकर सरिता को अचंभा होता है कि गुरु जी भविष्य और भूत की आम बातें काफी हद तक सही जरूर बताते हैं परंतु इतना विस्तार में सब कुछ कैसे बता सकते हैं। जब वह उनसे पूछती है तो वह कहते हैं। मुझे 12 साल की उम्र से ज्योतिष विद्या में सिद्धि प्राप्त है। एक बार देखकर बहुत कुछ जान जाता हूं और सबसे बड़ी बात, एक बार जो हाथ देख लूं तो भूलता नहीं हूं। इसलिए जब तुम दीपक को मेरे पास लाईं तो उसका हाथ देख कर मुझे अंदेशा हो गया था। उसके माथे पर जब मैंने हाथ रखा तो पूर्ण रूप से मुझे विश्वास हो गया था कि दीपक ही गोपाल का पुनर्जन्म है। रही बात नीलम की तो मैं उस बदनसीब लड़की का पिता हूं। गोपाल के लिए आंसू बहाते हुए देखा है मैंने उसे। हालांकि, हम कुछ कर भी नहीं सकते थे। कई बार उससे कहा किसी और से शादी कर ले लेकिन उसको अपने व्रत पर पूरा विश्वास था। वो मानती थी कि उस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में वो उसको जरूर मिलेगा। मैंने तो किसी तरह अपने को संभाल लिया लेकिन उसकी वह तकलीफ उसकी मां से सही नहीं गई और कुछ साल पहले वह चल बसी। कहते-कहते उनकी आंखें भर आईं। उस बंटवारे ने मेरी बेटी और मेरी पत्नी दोनों को छीन लिया। मेरे घर हर खुशी खत्म हो गई। सरिता को बाद में पता चला था कि 2 दिन बाद गुरुजी भी गुजर गए थे।
इन्हीं पुराने ख्यालों में सरिता खोई हुई थी कि मीनाक्षी की आवाज आती है, आइए मम्मी करवाचौथ का चांद निकल आया है, पूजा करते हैं। करवाचौथ के उस त्योहार पर साज श्रृंगार से सजी मीनाक्षी को देख कर वह मुस्कुराती हुई सोचती है कि ठीक बात है 6 साल का फर्क सही है। सही कहा था गुरु जी ने, भगवान ने उस नीलम को उसके अटूट विश्वास का फल दिया और इस जन्म में इन दोनों को मिला दिया। उन्होंने मीनाक्षी और दीपक को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताया। नए जन्म की नई खुशियों में बीते वक्त के आंसू वह नहीं घोलना चाहती थी।
