…………….उन्होंने पूरी पढ़ाई लंदन में प्राप्त की। वहीं के वातावरण में खेले-कूदे और फिर जब उनकी जवानी में उनके पिता की अचानक ही मृत्यु हो गई तो उन्हें राज्य का सारा कार्य स्वयं संभालना पड़ा। प्रताप सिंह बहुत विश्वसनीय मंत्री था। उसने उनका पूरा-पूरा साथ दिया, राज्य कार्य में भी और अय्याशी में भी। वासना की भूख पहली लड़की की संगति के बाद ऐसी बढ़ी कि रुकने के नाम ही नहीं लेती थी।
उनकी बांहों में जितनी अधिक लड़कियां आईं, यह भूख उतनी ही बढ़ती गई थी। उन्होेंने अनुभव किया था कि इज्जत लुटने के पश्चात् भी किसी सुंदरी को उनसे कोई शिकायत नहीं रही, बल्कि कुछेक लड़कियां उनकी बांहों में खिलौना बनकर गर्व प्रकट करती थीं। शाही बांहों के साथ मुंहमांगी दौलत मिलती थी, जमीन के टुकड़े उपहार में दिए जाते थे। कुछेक लड़कियों ने तो यह गर्व भी प्रकट किया था कि उनकी रगों में शाही रक्त धारा है, क्योंकि उनकी मां बहुत सुंदर थी।
इस खानदान के फल राजा की संगति का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हो चुका है, क्योंकि उनकी दादियां, नानियां या मां इस महल के अंदर शान समझ कर लाई जाती थीं। केवल कुछेक सुंदरियां ही ऐसी थीं, जो उनकी बांहों में आकर थोड़े समय के लिए छटपटाई थीं, फिर कोई चारा न पाकर उन्होंने भी अपने आपको उनके सुपुर्द कर दिया था। जिन्हें अपनी मान-मर्यादा का लुट जाना रास नहीं आया, उन्होंने आत्महत्या कर ली थी‒ परंतु ऐसी लड़कियां उनके जीवनकाल में अभी तक केवल एक ही आई‒ और वह थी राधा की छोटी बहन, जिसके पक्ष में आवाज उठाकर जब उसके बापू ने लोगों को भड़काने का प्रयत्न किया था, तो प्रताप सिंह ने अपने हाथों से कोड़े मार-मारकर उसे इतना अधमरा कर दिया था कि वह दूसरे दिन ही चल बसा था।
तब गांव में कुछ दिनों के लिए एक सनसनी-सी दौड़ गई थी। जवान बेटियों के घराने में भय छा गया था। लड़कियों ने पनघट जाना छोड़ दिया था। उन्हें यह बात अच्छी तरह ज्ञात थी कि प्रताप सिंह उस खानदान को जड़ से मिटा देगा, जिस किसी ने इस इलाके के राजा के ऊपर उंगली उठाने का प्रयत्न किया। प्रताप सिंह के बाप-दादा, राजा विजयभान सिंह के बाप-दादा की सेवा में ऐसा ही करते आए थे। कम्मो राधा की बहन थी, इतनी अभिमानी व कट्टर कि बहुत कठिनाई के बाद ही वह उसके कमसिन शरीर पर काबू पा सके थे, परंतु वह अंतिम समय तक अपनी मान-मर्यादा, अपनी इज्जत बचाने के लिए छटपटाती रही थी।
…और जब सुबह होने से पहले उसे महल की पिछली चारदीवारी के बाहर छोड़ा गया था तो वह घर नहीं गई थी। गांव वालों को उसने मुंह नहीं दिखलाया था। बदनाम होकर जीने की अपेक्षा उसने महल के सामने के वृक्ष से फांसी लगा ली थी। उसकी मृत्यु से राजा विजयभान सिंह को वास्तव में धक्का लगा था। दिल में दर्द हुआ था। मन में उसके प्रति करुणा भर आई थी, परंतु फिर धीमे-धीमे प्रताप सिंह की संगति का सहारा पाकर, वह सब कुछ भूलकर अपनी रंगरलियों में खो गए थे…….
नित नई- नई लड़कियां पाकर वह नया आनंद उठाने लगे थे, परंतु यह राधा, इसमें कम्मो के समान ही जाने कैसा जादू है कि तीन दिन बीत जाने के पश्चात् भी वह उसे नहीं भूल सके और अब शायद वह उसे कभी भूल नहीं सकेंगे। राधा की डबडबाई आंखों में बहते आंसुओं ने उनके जीवन की गंदी धारा ही बदल दी। वह जोश, वह उत्तेजना उनमें समाप्त हो गई थी, जिसे वह जीवन का आनंद समझते थे।
राधा! अपने आप ही मानो उनके होंठों से एक आह निकली। उन्होंने तय कर लिया, वह अब कभी अपने परिवर्तित हुए पथ से नहीं भटकेंगे। उन्होंने मासूम जिंदगियों पर अगणित जुल्म किए हैं, लूटा है, आत्माएं कुचली हैं, अरमानों का खून किया है। इतना सारा पाप! शायद भगवान उन्हें कभी नहीं क्षमा करेगा, कभी नहीं। फिर भी वह अपने पापों का पूरा-पूरा प्रायश्चित करेंगे। शायद राधा के मन में उनके निःस्वार्थ पश्चाताप को देखकर एक बार ही थोड़ी-सी करुणा उत्पन्न हो जाए, घृणा कम हो जाए और तब वह उन्हें क्षमा कर दे।
राधा के दो मीठे बोल ही उनके जीवन के लिए बहुत हैं, उनके पापों का अपने आप ही प्रायश्चित हो जाएगा। राधा के क्षमा कर देने से शायद कम्मो की भटकती आत्मा को भी शांति मिल जाएगी। राधा की बहन होने के नाते वह भी उसे क्षमा कर देगी। संभवतः उन आत्माओं को भी शांति प्राप्त हो जाए जो इस शाही खानदान के जुल्मो-सितम का शिकार होकर अपना शरीर छोड़ अब तक भटक रही होंगी। एक आदमी का सच्चा प्रायश्चित उसके पूर्वजों के पाप भी धो देता है।
प्रताप सिंह ने जब राजा विजयभान सिंह को बहुत देर तक खोया-खोया प्रतीत किया तो उनके समीप आकर खड़ा हो गया। उसने बाहर दृष्टि डाली। बड़े गेट पर सिपाही पहरा दे रहे थे और कोई नहीं दिखाई दिया तो होंठ चबाकर मुस्कुराया और बोला‒‘मैं पूछ सकता हूं महाराज! किन विचारों में तल्लीन हैं? यदि आज्ञा हो तो गांव की सभी जवान लड़कियों को इकट्ठा ही एकसाथ उपस्थित करके आपके मनोरंजन का प्रयत्न किया जाए।’
‘प्रताप सिंह!’ राजा विजयभान सिंह ने अपनी बांहें खिड़की पर टेकीं और कुछ झुककर उसी प्रकार बाहर देखते हुए बोले‒‘तुम्हारी भी एक बहन है ना?’
‘जी!’ प्रताप सिंह अचानक ही गंभीर हो गया।
‘जवान है और सुंदर भी काफी है?’ उन्होंने अपने हाथ पीछे बांधे और उसी ओर मुखड़ा किए सीधे खड़े होकर बहुत संतोष से पूछा।
‘जी!’ प्रताप सिंह तनकर खड़ा हो गया, इस प्रकार मानो उसके गाल पर कोई थप्पड़ पड़ने वाला है।
‘मेरा दिल बहलाने का इतना ही शौक है, तो आज उसी को भेज दो।’ ……………
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