अचानक धरती पर भूचाल आ गया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो सारा संसार डगमगा रहा हो। ऊपर बर्थ पर रखे ट्रंक नीचे गिर पड़े, कम्पार्टमेंट में शोर मच गया, लोग चीख़ पड़े, इससे पहले कि कोई किसी की सहायता प्राप्त कर सके, एक ज़ोर का धमाका हुआ। बूढ़े बाबा का सिर पीछे टकराया। उनकी बेटी नीचे लुढ़क गई। कितने ही यात्रियों के साथ उन दोनों को भी बेहोशी आ गई‒परंतु कुछ देर बाद लड़की की आंख खुल गई। उसके कानों में अंदर-बाहर से आता हुआ शोर गूंज रहा था। लोग रो रहे थे, चीख़ रहे थे। सिसकियों से पूरा वातावरण भीगा हुआ था। उसका अपना कम्पार्टमेंट तिरछा खड़ा हुआ था। गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी। उसने देखा कम्पार्टमेंट की सारी बत्तियां बुझी हुई हैं। बाहर हल्की-हल्की चांदनी थी। उसने उठने का प्रयत्न किया तो सिर में सख्त दर्द उठा। अंगुलियों द्वारा उसने मस्तक छुआ तो वह रक्त से लथपत्थ हो गई। उसने देखा, उसके सिर का घाव दुबारा ताज़ा हो गया था। चोट पर चोट लगे तो और तकलीफ़ होती है। रक्त को उसने अपने आंचल के किनारे से पोंछा और ताकत समेटती हुई उठ खड़ी हुई। पग लड़खड़ाए, फिर संभलकर वह अपने बाबा के पास पहुंची। बाबा की छाती पर एक बिस्तरे का गट्ठर पड़ा हुआ था। उसने उसे अलग किया और घबराकर चीख़ी‒ ‘बाबा, बाबा!’ उसने उसके मुखड़े को थपकी दी।
और तभी बाबा ने आंखें खोल दीं। होंठों से एक कराह निकली, फिर वह स्वयं ही उठकर बैठ गया। बड़ी कठिनाई से उन्होंने दरवाजे के सामने गिरे बॉक्स को खिसकाया और फिर बाहर निकले। यात्रियों का जत्था इधर-उधर दौड़ने में व्यस्त था। वे घबराकर आगे बढ़े तो देखा, बीच की तीन बड़ी बोगियां अर्ध-जली हुई पटरी से उतरी खड़ी हैं। लौ और धुआं अब तक निकल रहा था, लकड़ियां छितरा गई थीं और पहिए मिट्टी में धंसे थे, आगे इंजन था। पटरी से उतरकर गाड़ी के पहिए काफी हद तक जमीन में धंस गए थे। हर तरफ हाहाकार था, शोर मचा था, चीख़ और पुकार थी। सभी एक-दूसरे की सहायता को तरस रहे थे, रात के इस सन्नाटे में शहर से कोसों दूर, यह रेल दुर्घटना बहुत भयानक थी। लोग दौड़ रहे थे, अपने सगे-संबंधियों को ढूंढ रहे थे और जिनके परिवार सलामत थे, वे भी गले मिलकर मृत्यु के पंजे से बचकर निकल आने की खुशी में रो रहे थे। जिन अधजले कम्पार्टमेंट से लाशें निकाली जा रही थीं, वे केवल गोरे लोगों की थीं। बातों के मध्य पता चला कि इस ट्रेन से कुछेक अंग्रेज़ अफ़सर यात्रा कर रहे थे ‒ गवर्नर इत्यादि, जो देश की स्वतंत्रता में एक ठोस पहाड़ थे और इन पहाड़ों को आज एक साथ ही जड़ से तोड़ गिराने का अवसर प्राप्त करके देशभक्तों ने इनके कम्पार्टमेंट में टाइम बम रख दिए थे। देशभक्त यदि अपने इरादों पर तुल जाएं तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। अंग्रेज़ी राज्य का तख्ता उलटने के लिए देशभक्तों ने आजकल हर प्रकार का खतरा मोल लेना आरंभ कर दिया था। गुलामी अब सहन नहीं होती थी, हर वस्तु की एक हद होती है और इस हद को तोड़कर अब हर भारतीय सदा के लिए स्वतंत्रता प्राप्त कर लेना चाहता था। …………..
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सहसा घोड़ों की टापों से यात्री बौखलाकर इधर-उधर भागने लगे। एक तेज शोर हुआ। जिसको जहां शरण मिली, दुबक गया। बाबा ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया। उन्होंने देखा, जहां देशभक्तों ने इतना बड़ा कार्य किया था, वहां देश के गद्दारों ने भी उससे पूरा-पूरा लाभ उठाया। वे आते ही यात्रियों पर टूट पड़े। जि़ंदा-मुर्दा जिस किसी के पास भी जो बहुमूल्य वस्तु मिली, छीन ली, गहने, घड़ियां, रुपया-पैसा, जो भी हाथ लगा उसे नहीं छोड़ा। कुछेक साहसी लोगों ने उनका सामना करना चाहा तो अपने बचाव में ये डाकू गोलियां चलाने से भी नहीं चूके। बाबा ने देखा कि एक हष्ट-पुष्ट अधेड़ जवान इन डाकुओं का सामना करते-करते घायल होकर उन्हीं के समीप आ गिरा। डाकुओं के जाते ही बाबा ने उस घायल पुरुष की सहायता करनी चाही कि तभी एक सुंदर लड़की आकर उसकी छाती से लिपट गई।
‘पिताजी-पिताजी!’ वह ज़ोर से चीख़ी और फूट-फूटकर रो पड़ी।
बाबा अपनी बेटी समेत उसके और समीप आया। झुककर चांदनी में देखा ‒ घायल व्यक्ति कोई बड़ा आदमी था, शायद कोई ज़मींदार या ज़ागीरदार था।
‘हम आपकी कोई सहायता कर सकते हैं?’ उन्होंने सहानुभूति प्रकट की।
लड़की ने सिर ऊपर उठाकर बूढ़े बाबा को देखा, फिर उसके साथ खड़ी लड़की को। फिर बोला‒‘क्या यहां कहीं पानी मिल सकेगा? थोड़ा-सा ही।’
‘राधा बेटी…’ वह झट अपने साथ की लड़की से बोला‒ ‘तू यहीं ठहर, मैं अभी आया।’ और फिर वह अपनी आयु से अधिक स्फूर्ति के साथ एक ओर लपक गया।
राधा अपना घाव भूलकर वहीं बैठ गई… घुटनों को मोड़कर‒ पंजों के बल और फिर उसने उस लड़की को देखा। परेशान अवस्था में भी वह आशा की एक सुंदर उपमा थी। तीख़ी आंखों पर शबनम के समान आंसू कांप रहे थे। कुछ देर बाद एक ओर से पांच लड़के आ निकले, हट्टे-कट्टे, जवान, ताकतवर, आकर वे भी इस घायल व्यक्ति के समीप बैठकर शोक प्रकट करने लगे।
‘निकम्मे-डरपोक!’ घायल व्यक्ति की छाती से लगी लड़की अचानक ही उन पर बरस पड़ी, ‘काश! तुम लोग मेरे सगे भाई होते तो आज यह दिन तो नहीं देखना पड़ता। न वहां ही कोई जबान खुल सकी और न यहां इन लुटेरों का सामना कर सकें। जाकर चूड़ियां क्यों नहीं पहन लेते?’
उन लड़कों ने अपनी गर्दन शर्म से झुका लीं।
वहां? वहां कहां? राधा ने सोचा। शायद इस लड़की को और कहीं भी इन नवयुवकों ने धोखा दिया है। ये नवयुवक उसके भाई हैं, परंतु सगे नहीं। ऊंह होगी कोई बात! उसे क्या मतलब? उसने देखा, बेल-बूटेदार रेशमी कुर्ते-पाजामे में यह किसी जागीरदार के बेटे नहीं, भड़वे दिखाई दे रहे थे।
तभी बाबा वहां आ पहुंचा। उसके हाथों में एक सुराही थी। जाने किस यात्री की उठा लाया था। फिर भी लड़की ने कृतज्ञ होकर इसे स्वीकार किया। फिर हाथों में पानी निकालकर अपने पिताजी के मुखड़े पर छींटे मारे। कुछ पल बाद उन्हें होश आया तो उठने का प्रयत्न करते हुए उन्होंने सब पर दृष्टि डाली। राधा सिरहाने ही बैठी थी। उसने हाथ बढ़ाकर उन्हें सहारा दिया‒ अनज़ाने तौर पर ही। उनकी बेटी ने सुराही आगे बढ़ाई तो वह उसे मुंह से लगाकर गटागट जाने कितने घूंट पी गए। ………….
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