यह सिर झुकेगा नहीं-21 श्रेष्ठ लोक कथाएं उत्तराखण्ड: Senapati Story
Yaha Seer Jhukega Nahi

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Senapati Story: बहुत पुरानी बात है। तब गढ़वाल बावन गढ़ों में बंटा हुआ था, पर धीरे-धीरे सारे गढ़ टूटते जा रहे थे। अजयपाल अपनी शक्ति का लोहा अपने आस-पास मनवा चुका था। बड़ी धूमधाम से उसने अपने राज्याभिषेक की घोषणा की और बचे-खुचे गढ़ों के सरदारों ने उसकी अधीनता स्वीकार करते हुए, उसमें सम्मिलित होकर उसे सम्मान दिया। सब आये पर उप्पू गढ़ का सरदार कफ्फू चौहान वहां नहीं आया। राजा अजयपाल के क्रोध की सीमा न रही। अपना अपमान किसे नहीं खलता? आखिर वह गरम चूंट पी गया। उसने कफ्फू को बुलावा भेजा, पर वह फिर भी न आया और कहला भेजा, ‘मैं पशुओं में शेर और पक्षियों में बाज की तरह हूं। मैं तुम्हें क्या समझता हूं? बात यहीं पर खत्म न हुई। अजयपाल अबकी बार और भी चिढ़ उठा। उसने अपने दूत भेजकर कफ्फू को सावधान किया कि अगर वह अपनी अकड़ पकड़े रहा तो उसके गढ़ पर हमला बोला दिया जाएगा। डरना तो दूर रहा, कफ्फ ने उल्टी धमकी दी कि वह अजयपाल की राजधानी को ही उखाड़ फेंकेगा। अजयपाल अपना यह अपमान न सह सका। उसने तुरन्त अपनी फौज को तैयार किया और उप्पू गढ़ को रवाना हो गया।

गंगा के पार उप्पू गढ़ था। कफ्फू की मां ने झरोखे से शत्रुओं की सेना को देखा। वह सहम गई। कफ्फू को सब कुछ पहले से ही मालूम था। ‘यह क्या है बेटा?’ आंखिर मां ने पूछा।

कफ्फू ने बताया, ‘यह अजयपाल की सेना है मां! वह चाहता है मैं अधीनता स्वीकार कर लूं। पर मैं जीते जी यह न होने दूंगा। मां ने सुना और फूट-फूटकर रोने लगी। ‘तूने यह क्या कर दिया बेटा।’ कफ्फू ने मां को शांत होने को कहा किन्तु मां का ममत्व आग्रह बनकर उपस्थित हुआ, ‘माफी मांग ले बेटा! तू अकेले ही इतनी मुसीबत कैसे झेलेगा?’

‘मैं इतना नहीं झुक सकता मां! कफ्फू शेर की तरह गरजा, ‘कायर क्यों बनूं? मैं सच्चा क्षत्रिय हूं, अपने पिता का पुत्र हूं।’ उसकी भुजाएं फड़क उठीं, मूछों के बाल उठ खड़े हुए और आंखों में खून चढ़ आया। उस वीर ने अपने फौजी वस्त्र पहने, हथियार सजाए, घोड़े पर चढ़ा और शत्रुओं का सामना करने चल दिया। वह बांका भड़ था। घोर युद्ध हुआ। अपनी तलवार की धार से उसने शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया। धरती लाशों से ढक गई और खून के नाले बह चले। कफ्फू ने चैन की सांस ली और गंगा के किनारे विश्राम करने बैठ गया।

उधर उसकी मां और रनिवास की स्त्रियां शंकित हृदय से उसकी प्रतीक्षा करती रही। कफ्फू न लौटा। कफ्फू की फौज का एक सरदार सेना की एक टुकड़ी लेकर दूसरी जगह लड़ रहा था। शत्रु ने उसे पराजित कर मार दिया। कफ्फू की मां को जब यह संदेश मिला तो उसे बड़ा दुःख हुआ और अपने पुत्र की हार निश्चित समझकर उसने गढ़ को आग लगा दी और सारी स्त्रियां सती हो गई। कफ्फ जब लौटा तो उसका गढ जल रहा था, वह स्तब्ध रह गया। स्नेह से छलछलाती आंखों से उसने अपनी मां को खोजा, किंतु सारा महल ढह चुका था।

तो क्या मेरी मां, मेरी रानियां, जल मरी!’ कफ्फू चिल्लाया, ‘मां! मां!’ और सहसा वह मूर्च्छित हो उठा।

तभी अजयपाल की फौज वहां उपस्थित हुई। कफ्फू को शोक की उस अवस्था में देखकर अजयपाल बड़ा खुश हुआ और एक बार फिर उसने उसे चरणों में झुकने को कहा। कफ्फू की चेतना लौटी और वह एकदम वीर की तरह सिर ऊँचा करके खड़ा हुआ। अबकी बार भी उपेक्षा की एक मुस्कराहट उसके होठों पर खेल गई। अजयपाल के लिए यह एक चुनौती थी। उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि कफ्फू का सिर इस तरह काट डालो कि वह मेरे पैरों में आ गिरे।

एक सिपाही उठा और उसने कफ्फू के सिर पर तलवार चलाई। कफ्फू ने गुस्से में सिर इस तरह झटका कि कहते है, जब कफ्फू का सिर कटा तो वह अजयपाल के चरणों में गिरने के बजाय उसके सिर पर टकराया।

अजयपाल सन्न रह गया। कफ्फू का स्वाभिमान देखकर उसने सिर झुका लिया।

मनुष्य मर जाता है, उसका यश रह जाता है। वीरों के सिर कभी नहीं झुकते। वे कटते है। पर अपना स्वाभिमान निभाते हैं।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’