फूल चुनने का मौसम-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Prem Kahaniya
Phool Chunne ka Mausam

Prem Kahaniya: नन्दिनी …..पति राजवीर की  रौबदार आवाज़ के साथ नन्दिनी का किसी जिन की तरह प्रगट होना तय होता।

वरना दिनभर वह और उसका रूखापन उसे दिन तो दिन  रात को भी चैन  न लेने देता।

मेरी ज़रूरी फाइल्स  और कुछ कपड़े बैग में रख देना दो दिनों के लिए ऑफिस की ट्रेनिंग पर जाना है लखनऊ के लिए ,बॉस मिस्टर मित्तल के साथ।

उसने खामोशी से हाँ में सिर हिला दिया और बिना कोई सवाल जबाब किये उसकी सभी चीजें जब तक वो वॉशरूम से आया सेट करके बैग को  ओपन करके छोड़ दिया जिससे वो उन्हें जाँच सके और  रसोई की तरफ़ बढ़ गयी।

नन्दिनी एक पढ़ाकू लड़की थी जिसकी शादी माता पिता ने ही  की थी,फ़र्ज़ की घुट्टी में भला प्रेम कब पनपता।

ऊपर से राजवीर का उसके साथ  बेहद सख्त  रवैया पारम्परिक परिवार,फ़र्ज़  की ठंडी पड़ी बर्फ़ में उसके अरमान भी अब  सोने लगे थे।

शादी के पहले साल में चहकने वाली नन्दिनी अब मात्र एक आज्ञापूरी करने वाली लड़की में न जाने कब बदल गयी।

न उसे अपने सजने सँवरने का होश रहता न ख़ुद पर कोई ध्यान देने का ,कभी  कभी उसे आईना देखते हुए याद आता अपनी माँ का दुलार ।
राजवीर  से मिली तारीफ़ को तो उसके कान तरस गए थे,चेहरा अब  मुरझाने लगा था।

पहले तो उसने शुरू में अपनी सखी-सहेलियों की बातें सुनकर कभी कहा भी राजवीर से  कहीं साथ में घूमने को।

मगर उसके मज़ाक उड़ाने के रवैये से वो अपने ही खोल में सिमटती गयी ,उसके साथी थे घर के ही एक हिस्से में उगे कुछ रजनीगन्धा और गुलाब के पौधे और एक हरसिंगार।

जिससे वो बहुत कम समय के लिए मिले एकांत में  में अपने मन की बातें किया करती।

उसके सुबह झड़े हुए फूलों में वो अपने अरमान मानो बटोर लेती और उन्हें अपनी डायरी में कहीँ संजो लेती।

राजवीर को ऑफिस में  उसके काम के घण्टों में फ़ोन करना भी पसन्द न था,शुरू के जो भी कल्पना में घुले रोमांटिक सपने थे कपूर की तरह उड़ गए।

उधर लखनऊ में राजवीर अपने बॉस को देखता  जिनकी पत्नी का ठीक  साढ़े सात बजे फ़ोन आता,सारे हाल चाल लेते देते और लौटने से पहले क्या लूँ यहाँ से उसकी योजना बनाते।

अगली सुबह उन्हें साथ मे ही वापस लौटना भी था। शाम को दोंनो  आउट हाउस के रास्ते पर एकसाथ हो लिए।

,रास्ते में पड़ती थी एक प्रसिद्ध कॉस्मेटिक वाले  की दुकान वो अन्दर गए और  वापसी में लौटे तो उनके हाथोँ में था एक लाल खूबसूरत बिन्दी का पत्ता और एक सुर्ख लाल लिपस्टिक।

राजवीर के होठों पर मुस्कान तैर गयी, सोचने लगा कि इस उम्र में भी जब इनके बच्चे बराबर के हैं बड़ी केयर है इन्हें मैम की।

तुम कुछ नहीं खरीदोगे?अचानक उनकी  इस आवाज से वो जैसे दुनिया में वापस लौट आया …

न नहीँ उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

नन्दिनी का रूखापन,चिड़चिड़ाहट इन दिनों कुछ ज्यादा ही हो रहा था,सो मन भी न  होता था अन्दर से।

एक बात कहूँ अगर बुरा न मानो तो ,उन्होंने बेझिझक कहा ।

जी अभी तो तुम्हारे पास एक ही  बच्चा है और कोई विशेष जिम्मेदारी भी नहीँ हैं,फ़िर इतना ठण्डा व्यवहार किसलिये डियर।

समझा नहीँ सर ….

समझाता हूँ चलो कॉफ़ी शॉप से एक एक कॉफी पीते हैं।


राजवीर

ने हॉट कॉफ़ी ऑर्डर की और मिस्टर मित्तल ने कोल्ड,दस मिनट में वो फुरसत हो गए फिर मिस्टर मित्तल ने कहा।

आकाश जरा मेरे ग्लास की तरफ ध्यान दो,उसने अचकचा कर उनकी तरफ देखा।

सर ठीक तो है सब …

हाँ डियर देख फुल क्रीम दूध में पड़ी हुई बर्फ़ ने इसकी चिकनाई को किनारों पर जमा दिया है और हम ऊपर के झाग में ही ख़ुश हैं।

आकाश को उनकी बात का मतलब समझ में नहीं आ रहा था।

मिस्टर मित्तल थोड़ा ठहर कर बोले,प्यारे अक्सर हम समर्पण और परवाह को प्यार कह बैठते हैं जिसका रँग सफ़ेद यानि शांत कहा गया है।

तुम्हें पता है इसे गुलाबी कौन बनाता है?

प्यार का लाल रँग जो आजकल तेरे चेहरे से गायब है।

इस वो मुँह लटका कर बोला ,नन्दिनी ने आजकल  चिड़चिड़ाहट की हद कर रखी है ,सर ज़िम्मेदारियाँ भी हैं और बच्चा भी छोटा है। ज़िन्दगी  इस कदर एक पैटर्न पर सेट है कि मन भी नहीं होता कुछ,ऑफिस और घर के अलावा कुछ दिमाग मे ही नहीं आता।

कभी यही सोच मेरी भी हो गयी थी,और तेरी भाभी भी मुझसे  आस लगाते लगाते ख़ुद को कुंठित कर चुकीं थीं।

पता है मैं बड़े-बड़े सपने में खोकर छोटी खुशियों को नजरअंदाज कर रहा था,मुझे लगता था कि हर बात का एक निश्चित तरीका होना चाहिए।

और इस सोच के चलते मैं बड़ी खुशियों के लिए बस अपने बैंक के खाते भरने लगा।

एक दिन मन्दिर के बाहर फूलमाला खरीदते समय ख्याल आया कि उसके पास एक गजरा है ले लूँ पर उसने तिगुनी कीमत के लालच पर भी मना कर दिया और बोला ये मेरी पत्नी के लिए है।

नज़र झुकाकर  बोला एक रोज ले जाता हूँ उसके लिए दिन भर की मेहनत और इन्तज़ार का इनाम साहब ।

पैसा हो न हो घरवाली के चेहरे का सुकून कमा लेता हूँ। किसी स्त्री का  ख़ुश चेहरा बता देता है कि उसका जीवनसाथी कैसा है।

उस दिन मुझे समझ आया कि प्रेम छोटी खुशियों में बसता है और नज़रिया बदल लिया।

सुकून से राजवीर को नन्दिनी का उदास चेहरा याद आ गया।वो मिस्टर मित्तल से बोला  चलिए वापस उधर चल कर देखते हैं कुछ।

गुड बॉय कहकर वो मुस्कुरा दिए,नन्दिनी उसे लाल रँग में बहुत अच्छी लगती थी,एक सुर्ख ड्रेस ,बिंदी और लिपस्टिक के साथ उसकी शॉपिंग पूरी हो गयी।

रात को जब नन्दिनी कमरे में पहुँची तो राजवीर ने बैग को खुला हुआ ही छोड़ा था,बेड पर शादी के एलबम के साथ कुछ गुलाब भी रखे थे।

उसके प्यार भरे अपनेपन के स्पर्श से नन्दिनी की आँखे छलछला  उठीं।

सुनो अब इस चेहरे पर बस मुस्कान होनी चाहिए,अब सब ठीक कर दूँगा उसने उसकी ठोड़ी को उँगली से उठाकर कहा।

उदासी  की सफेद बर्फ़ न जाने कब तड़ककर पिघलने लगी:उसमेँ घुल रहा था प्रेम की किश्त का बूँद-बूँद लाल रँग और सफ़ेद मौसम गुलाबी होने  लगा।

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