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प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन को सही समय पर पहचान कर स्वस्थ रह सकते हैं मां और शिशु

प्रीटर्म प्रीमेच्योर रप्चर ऑफ मैम्ब्रेन यदि 37 सप्ताह से पहले पानी की थैली फट जाए तो इसे पी.वी.आर.ओ.एम. कहते हैं। इसकी वजह से शिशु का समय से पहले जन्म हो सकता है या उसे किसी तरह का संक्रमण हो सकता है। यह कितना सामान्य है? यह 3 प्रतिशत से भी कम मामलों में होता है। धूम्रपान करने वाली,एस.टी.डी. रोगों से ग्रस्त, योनि से रक्तस्राव होने के रोग या प्लेसेंटल एवरप्शन वाली महिलाओं को इसका खतरा ज्यादा होता है। यदि जुड़वां शिशु हों या बैक्टीरियल वैजिनिओसिस हो तो खतरा और भी बढ़ जाता है। आप जानना चाहेंगी यदि प्रीमेच्योर शिशु को आईसीयू में नवजात को भर्ती किया जाए तो आप कुछ ही दिनों में स्वस्थ नवजात के साथ घर-वापसी कर सकती हैं मेडीकल तकनीकों को धन्यवाद। आप जानना चाहेंगी पी.पी.आर.ओ.एम. को सही वक्त पर पहचानने व इलाज करने से माँ व शिशु स्वस्थ रहते हैं। शिशु का समय से पूर्व जन्म होने पर भी उसे आईसीयू में रख कर सुरक्षा दी जा सकती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? योनि से द्रव्य का स्राव होता है। मूत्र व एम्नियोटिक द्रव्य में फर्क जानने के लिए उसे सूंघ कर देखें। मूत्र की गंध अमोनिया जैसी होगी। यदि द्रव्य संक्रमित न हो तो उसकी गंध बुरी नहीं होती। यदि आपको इस बारे में कोई भी शक हो तो डॉक्टर को बताने में देर न करें। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं?:- यदि 34 सप्ताह के बाद मैम्ब्रेन फटी है तो शिशु की डिलीवरी कर दी जाएगी। यदि अभी डिलीवरी होना संभव नहीं है तो आपको अस्पताल में रखा जाएगा व संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाएँगे। शिशु के फेफड़े मजबूत करने के लिए स्टीरॉयड दिए जाएँगे।यदि शिशु डिलीवरी के लिए काफी छोटा है तो इस प्रक्रिया को रोकने की दवाएँ दी जाएँगी। ऐसा बहुत कम होता है कि मैम्ब्रेन अपने-आप ठीक हो जाए व द्रव्य का रिसाव बंद हो जाए। यदि ऐसा हो तो आपको घर जाने की इजाजत मिल जाएगी बस थोड़ा सावधान रहने को कहा जाएगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? :- यदि आप पी.पी.आर.ओ.एम. से अपना बचाव चाहती है तो योनि संक्रमण से बचें क्योंकि उसी वजह से यह होता है। प्रीटर्म या प्रीमेच्योर लेबर ऐसा प्रसव जो बीसवें सप्ताह के बाद लेकिन 37वें सप्ताह से पहले शुरू हो, प्रीटर्म लेबर कहलाता है। यह कितना सामान्य है? यह एक आम समस्या है। धूम्रपान, मदिरापान, मादक द्रव्यों के सेवन, कम वजन, ज्यादा वजन, अपर्याप्त पोषण, मसूड़ों के संक्रमण, एस.टी.डी., लेक्टीरियल,मूत्राशय मार्ग व एम्नियोटिक द्रव्य के संक्रमण, अक्ष्यम सर्विक्स, यूटेराइन की गड़बड़ी, माँ की लंबी बीमारी, प्लेसेंटल एवरशन व प्लेसंटाप्रीविया की वजह से इसका खतरा बढ़ जाता है। 17 से कम व 35 से अधिक आयु की महिलाओं, मल्टीपल शिशुओं की मांओं व प्रीमेच्योर डिलीवरी का इतिहास रखने वाली महिलाओं में भी इसका खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? :- इसमें निम्नलिखित लक्षण शामिल हो सकते हैं‒ आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? शिशु जितने दिन कोख में रहता है उसके स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिहाज से अच्छा ही होता है इसलिए प्रसव को रोकना ही प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए। यदि संकुचन भी हो रहा हो तो डॉक्टर स्थिति के हिसाब से अंदाजा लगाएँगे कि आपको घर पर ही आराम करना है या अस्पताल में रह कर दबाएँ व इंजेक्शन लेने हैं। आपकी स्थिति के हिसाब से दवा व इंजेक्शन दिए जाएँगे। यदि डॉक्टर को ऐसा लगे कि डिलीवरी रोकने से आपको या शिशु को किसी भी तरह का खतरा हो सकता है तो वे उसे स्थगित करने का कोई उपाय नहीं करेंगे। क्या इससे बचाव हो सकता है? सभी प्रीटर्म बर्थ रोके नहीं जा सकते क्योंकि उनके कारणों पर हमारा बस नहीं चलता। हालांकि प्रसव-पूर्व अच्छी देखभाल, बढ़िया खान-पान दांतों की प्रीटर्म लेबर का पता लगाना आजकल कई प्रकार के टेस्टो, जांच की मदद से प्रीटर्म लेबर का अनुमान लगाया जा सकता है। गर्भाशय या योनि के स्राव एफएफ एन की मदद से इसका पता चलता है।यदि जांच में पॉजिटिव नतीजा आए तो प्रीटर्म लेबर को रोकने के कदम उठाने चाहिए। यह टेस्ट उन्हीं महिलाओं में किया जाता है, जिन्हें इसका ज्यादा खतरा हो।इसके अलावा सर्विक्स की लंबाई मापने कास्क्रीनिंग टेस्ट भी होता है इसमें अल्ट्रासांउड की मदद से सर्विक्स की लंबाई मापी जाती है अगर वह छोटी हो या खुल रही हो तो उसे रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। अच्छी देखभाल , कोकेन व मदिरा जैसे नशीले पदार्थों के त्याग, जांच व संक्रमण से बचाव के उपाय अपनाकर डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करके, काफी हद तक प्रीटर्म बर्थ को रोक सकते हैं। जिन महिलाओं को पहले से भी यह समस्या रही हो, उनके लिए भी कोई न कोई उपाय किया जा सकता है। यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में मिसकैरिज से जुड़े इन फैक्ट्स की जानकारी होनी चाहिए

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प्रेगनेंसी में क्या होता है कोरियोएमनिओनिटिस, ओलिगोहाइड्रामनिओस व हाइड्रमनिओस

कोरियोएमनिओनिटिस यह क्या है?  यह एम्नियोटिक मैम्ब्रेन व द्रव्य का संक्रमण है जो कि शिशु की सुरक्षा करता है। यह बैक्टीरिया की वजह से होता है। इसे ही प्रीमेच्योर डिलीवरी व मैम्ब्रेन करने की वजह माना जाता है। यह कितना सामान्य है? यह 1 से 2 प्रतिशत गर्भावस्था में होता है। मैकब्रेन जल्दी फटने के बाद इस संक्रमण का खतरा बढ़ जाता सकता है क्योंकि योनि से बैक्टीरिया वहां प्रवेश कर सकते हैं। जिन महिलाओं को पहली गर्भावस्था में यह संक्रमण हो चुका हो, उन्हें दूसरी गर्भावस्था में भी ऐसा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं ? :- संक्रमण की उपस्थिति की जांच के लिए कोई सादा टेस्ट नहीं किया जाता। इसके लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं :-   बुखार   गर्भाशय में दर्द   शिशु व आपकी हृदय गति बढ़ना आप जानना चाहेंगी यदि सही समय पर कोटियोएमनिओनिटिस को पहचान कर इलाज किया जाए तो माँ व शिशु दोनों के लिए खतरा घट जाता है।  मैम्ब्रेन फटने पर, एम्नियोटिक द्रव का रिसाव  मैम्ब्रेन न फटने पर, दुर्गंधयुक्त योनिस्राव  सफेद रक्तकणों की संख्या बढ़ना आप व आपका डॉक्टर क्या कर सकते हैं? किसी भी तरह के दुर्गंधयुक्त स्राव का पता चलते ही डॉक्टर को बताएँ ताकि संक्रमण रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जा सकें। जल्दी से डिलीवरी की जाएगी व उसके बाद भी शिशु व आपको एंटीबायोटिक्स दिए जाएँगे ताकि आपको व शिशु को दोबारा संक्रमण न हो सके।  ओलिगोहाइड्रामनिओस यह क्या है? इस अवस्था में शिशु के आसपास एम्नियोटिक द्रव्य की कमी हो जाती है। यह तीसरी तिमाही के अंत में होता है हालांकि ऐसा पहले भी हो सकता है। वैसे तो ऐसी महिलाओं की गर्भावस्था सामान्य होती है बस गर्भ नाल की वजह से थोड़ी परेशानी हो सकती है। कई बार इसकी वजह से यह भी पता चलता है कि शिशु की बढ़त में कोई कमी है। यह कितना सामान्य है? प्रायः 4 से 8 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में यह रोग पाया जाता है। यदि प्रसव की अनुमानित तिथि निकल जाए तो ऐसे मामलों की संख्या 12 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? माता में कोई लक्षण नहीं दिखते किंतु गर्भावस्था का आकार सामान्य से छोटा होता है। एम्नियोटिक द्रव्य की मात्रा भी कम होती है। कुछ मामलों में शिशु की हलचल भी थोड़ी घट सकती है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ढेर सा आराम करें व खूब पानी पीएं। एम्नियोटिकद्रव्य की मात्रा का ध्यान रखा जाएगा। यदि मामला न संभले तो डॉक्टर जल्दी डिलीवरी की सलाह भी दे सकते हैं। हाइड्रमनिओस यह क्या है? शिशु के आसपास एम्नियोटिकद्रव्य की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाती है। हालांकि बिना किसी इलाज के इसका संतुलन कायम हो जाता है। यदि जमाव ज्यादा हो तो यह शिशु में स्नायु तंत्र, गैस्टेशनल विकृति या निकलने की क्षमता में कमी का सूचक हो सकता है। इससे मैम्ब्रेन जल्दी फटने, प्रीटर्म लेबर, प्लेसेंटलएवरप्शन, ब्रीच या गर्भनाल के प्रोलैप्स होने का खतरा बढ़ जाता है। यह कितना सामान्य है? :- यह उसे 4 प्रतिशत गर्भावस्थाओं में होता है। यदि शिशु जुड़वां हो या माँ की मधुमेह का इलाज न हो तो, ऐसा हो सकता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? :- इसके कुछ खास लक्षण नहीं होते‒   शिशु की हलचल का ज्यादा पता नहीं चलता   गर्भाशय का आकार काफी बढ़ जाता है   पेट के निचले हिस्से में तकलीफ   अपच   टाँगों में सूजन   सांस लेने में तकलीफ   गर्भाशय संकुचन   डॉक्टर द्वारा भीतरी जांच या अल्ट्रासाउंड के दौरान इसका पता चलता है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? जब तक द्रव्य का जमाव ज्यादा रहेगा आपको लगातार डॉक्टर के पास जांच के लिए जाना होगा यदि जमाव गंभीर हुआ तो आपको एमनियोसेंटेसिस करवाना पड़ सकता है। यदि लेबर से पहले ही पानी की थैली फट जाए तो डॉक्टर को बुलाने में देर न करें।

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प्लेसेंटा प्रीवीया और प्लेसेंटल एबरप्शन, दोनों ही मामलों में करना पड़ता है सी-सेक्शन

प्लेसेंटा प्रीविया यह क्या है? इस अवस्था में प्लेसेंटा सर्विक्स को थोड़ा या फिर पूरी तरह से ढक लेता है।अर्ली प्रेगनेंसी में प्लेसेंटा नीचा ही होता है लेकिन ज्यों-ज्यों गर्भावस्था के साथ-साथ गर्भाशय का आकार बढ़ता है तो प्लेसेंटा सर्विक्स के आगे से हट जाता है। यदि यह वहाँ से न हटे या सर्विक्स को थोड़ा ढक ले तो यह‘पार्शियल प्रीविया’ कहलाता है। यदि यह सर्विक्स को पूरी तरह ढक ले तो इसे टोटल प्रीविया कहते हैं। इन दोनों की वजह से शिशु का जन्मयोनि मार्ग से नहीं हो पाता। इससे गर्भावस्था में अंत में या डिलीवरी के समय रक्तस्राव भी हो सकता है। प्लेसेंटा सर्विक्स के जितना पास होगा रक्तस्राव की संभावना उतनी ज्यादा होगी। यह कितना सामान्य है? हर 200 गर्भावस्थाओं में से 1 मामला ऐसा होता है। यह 20 से कम व 30 से ज्यादा अधिक आयु की महिला में होता है या फिर उस महिला का डी एंड सी,या सी सैक्शन हुआ हो। धूम्रपान व जुड़वां बच्चों के जन्म से भी यह खतरा बढ़ जाता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? यह आमतौर से लक्षणों से नहीं पहचाना जाता। दूसरी तिमाही के अल्ट्रासाउंड में इसका पता चलता है कई बार तीसरी तिमाही में रक्तस्राव से भी स्थिति पता चल जाती है। रक्तस्राव इसका एक मात्र लक्षण है, जिसके साथ कोई दर्द नहीं होता। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। तीसरी तिमाही के आखिर तक प्लेसेंटा प्रीविया के कई मामले अपने-आप सुलझ जाते हैं। यदि प्रीविया के साथ रक्तस्राव न हो तो कई बार किसी इलाज की भी जरूरत नहीं होती। यदि रक्तस्राव होगा तो बैडरैस्ट की सलाह दी जाएगी, सेक्स की मनाही होगी व आपकी ज्यादा बेहतर देखभाल की जाएगी। यदि समय से पूर्व प्रसव का खतरा लगा तो आपके शिशु के फेफड़े परिपक्व करने के लिए स्टीरॉयड के इंजेक्शन देने होंगे। चाहे आपको कोई और तकलीफ न हो, किंतु आपके शिशु की डिलीवरी सी सैक्शन से की जाएगी। प्लेसेंटल एबरप्शन :- यह क्या है? जब प्लेसेंटा डिलीवरी से पहले, गर्भावस्था के दौरान ही यूटेराइन वॉल से अलग हो जाता है तो इसेप्लेसेंटल एवरप्शन कहते हैं। यदि यह अधिक मात्रा में नहीं है तो थोड़े से इलाज व सावधानी के साथ माँ व शिशु को ज्यादा खतरा नहीं रहता। यदि यह गंभीर हो तो शिशु को थोड़ा खतरा रहता है। इसका मतलब है कि प्लेसेंटा अलग होने के बाद शिशु को ऑक्सीजन व पोषण नहीं मिलेगा। यह कितना सामान्य है? :- ऐसा 1 प्रतिशत से भी कम गर्भावस्था में होता है। यह अक्सर तीसरी तिमाही के आसपास होता है। यह किसी के भी साथ हो सकता है लेकिन जिन महिलाओं के यहाँ जुड़वाँ होने वाले हों, ऐसा पहले भी हो चुका है, धूम्रपान या मादक द्रव्यों का सेवन करती हों या गैस्टेशनल मधुमेह की मरीज हों।इसके अलावा प्रीक्ले पसिंया या रक्तचाप की वजह से भी ऐसा हो सकता है। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? ये निम्नलिखित हैं :   भारी या कम रक्तस्राव   पेट के निचले हिस्से में ऐंठन या दर्द   पीठ या पेट में दर्द आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं गर्भावस्था के बीचोंबीच ऐसा कोई भी रक्तस्राव या पेट में ऐंठन होते ही डॉक्टर को सूचना दें।मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, उसकी हालत, संकुचन व शिशु की प्रतिक्रिया देखने के बाद ही कोई फैसला लिया जाता है। अल्ट्रासाउंड से मदद मिल सकती है, केवल 25 प्रतिशत एबरप्शन ही इसकी पकड़ में आते हैं। यदि पता चल जाए कि प्लेसेंटापूरी तरह से अलग नहीं हुआ तो आपके सिर्फ आराम की सलाह दी जाएगी। यदि रक्तस्राव जारी रहे तो आई वी फ्ल्यूड देना पड़ सकता है यदि डिलीवरी जल्दी करनी हो तो स्टीरॉयड के इंजेक्शन दिए जाएंगे। ताकि शिशु के फेफड़े मजबूत हो सकें। यदि एवरप्शन जारी रहे तो फिर सी-सैक्शन का उपाय ही बचता है। यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में अगर सामना करना पड़े अर्ली मिसकैरिज का

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शिशु को पर्याप्त पोषण न मिलने पर बन सकती है आई.यू.जी.आर की स्थिति

इंट्रायूटेराइन ग्रोथ रिसट्रिक्शन यह क्या है? आई.यू.जी.आर.उस शिशु के लिए कहते हैं, जो सामान्य शिशुओं की तुलना में छोटा होता है। यदि शिशु का वजन उसकी गर्भाशय के 10 प्रतिशत से भी कम हो तो आई.यू.जी.आर. का पता चलता है। यदि शिशु को पर्याप्त पोषण न मिल रहा हो तो ऐसी स्थिति बन सकती है। यह कितना सामान्य है? यह तकरीबन 60 प्रतिशत गर्भावस्था में होता है। यह पहली,पांचवीं व उसके बाद की गर्भावस्था, 17 से कम व 25 से अधिक आयु की महिलाओं या पहले कम वजन वाले शिशु को जन्म दे चुकी महिलाओं या प्लेसेंटा व यूटेराइन की असमानताओं वाली महिलाओं में होता है। यदि महिला का वजन भी जन्म के समय कम रहा हो तो इससे उससे यहाँ की कम वजन वाले शिशु के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। यदि शिशु के पिता का वजन भी जन्म के समय कम था तो खतरा और भी ज्यादा हो जाता है। आप जानना चाहेंगी एक बार कम वजन वाले शिशु को जन्म देने वाली माँ के लिए अगली बार का भी खतरा बढ़ जाता है। हालांकि पहले से वजन का कुछ फर्क होता है पर आपको इस बारे में काफी ध्यान देना चाहिए। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? भ्रूण की लंबाई-ऊंचाई मापते समय, डॉक्टर को पता चलता है कि शिशु अपनी गर्भावधि की तुलना में छोटा लग रहा है। अल्ट्रासाउंड से भी कमबढ़त वाले शिशु का पता लग सकता है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? जन्म के वजन से ही शिशु की सेहत का पता चलता है। यदि शिशु का वजन कम होगा तो उसे कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं तभी इस समस्या का पहले पता चलना जरूरी है ताकि शिशु की सेहत का खास ध्यान रखा जा सके।यदि हर तरह के प्रयत्न व दवा के बावजूद शिशु का विकास न हो तो उसके थोड़ा परिपक्व होते ही डिलीवरी कर दी जाती है ताकि उसे बेहतर देखभाल दी जा सके। क्या इससे बचाव हो सकता है? सही मात्रा में पोषण दें व गलत आदतों को त्याग दें, जैसे धूम्रपान, मदिरापान, मादक द्रव्यों का सेवन व अन्य रक्तचाप आदि। इस तरह परहेज व चिकित्सा के बावजूद कम वजन वाला शिशु पैदा हो तो नियोनेटल देखभाल से उसकी हालत सुधारी जा सकती है। आप जानना चाहेंगी जन्म के समय कम वजन वाले 90 प्रतिशत शिशु एक-दो साल में ही सामान्य शिशुओं जितना वजन पा लेते हैं। यह भी पढ़ें –डिलीवरी के बाद मां को हो सकता है संक्रमण

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गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू हो सकता है गैस्टेशनल डायबिटीज

यह क्या है? ऐसा मधुमेह गर्भावस्था में ही होता है जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनता। यह गर्भावस्था के 24 से 28 सप्ताह के दौरान शुरू होता है। तभी इस दौरान ग्लूकोज़ स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। यह डिलीवरी के बाद भी जारी रहता है। यदि मधुमेह का कोई भी प्रकार गर्भधारण से पहले होता है तो इसे नियंत्रित करने पर मां या भ्रूण को कोई हानि नहीं होती लेकिन यदि माँ के रक्त में जरूरत से ज्यादा शर्करा घुल जाए तो यह प्लेसेंटा तक पहुँचकर, माँ व शिशु दोनों के लिए घातक हो सकता है। वे शिशु भी काफी बड़े होते हैं,जिनकी वजह से गर्भावस्था जटिल हो जाती है।तब प्रीक्लैंपसिया होने का भी डर रहता है।मधुमेह का इलाज न हो तो शिशु को जन्म के बाद पीलिया, सांस लेने में तकलीफ या ब्लडशुगर के घटे हुए स्तर की समस्या हो सकती है हो सकता है कि वह आगे चलकर मोटापे व टाईप-2 मधुमेह का भी शिकार हो जाए।   यह कितना सामान्य है? 4 से 7 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में यह हो सकता है। मोटापे की वजह से यह रोग भी बढ़ता जा रहा है। यदि परिवार में पहले से मधुमेह की हिस्ट्री हो, माँ की उम्र ज्यादा हो तो जी.डी. का खतरा और भी बढ़ जाता है।   इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? हालांकि इसके लक्षण अस्पष्ट ही होते हैं।   अचानक प्यास लगना   बार-बार मूत्र आना   थकान (गर्भावस्था की थकान से अलग)   मूत्र में शुगर। (जांच से पता चलेगा)   आप व डॉक्टर क्या कर सकते हैं? 28वें सप्ताह में आपकी ग्लूकोज स्क्रीनिंग जांच की जाती है यदि ज्यादा जरूरी लगे तो तीन घंटे की ग्लूकोज़ टॉलरेंस जांच भी कर सकते हैं।यदि इस जांच से जी.डी. का पता चले तो डॉक्टर आपको विशेष डाइट व व्यायाम की सलाह देंगे। आपको घर पर भी ग्लूकोज़ मीटर से अपने ग्लूकोज का स्तर जांचना होगा।   यदि डाइट व व्यायाम से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित न हो तो आपको इंसुलिन देना पड़ सकता है। इसके इंजेक्शन के अलावा ग्लोब्यूराइड दवा के तौर पर दे सकते हैं।   हालांकि सही तरीके से ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित हो जाए तो गर्भावस्था की जटिलताएँ खत्म की जा सकती हैं। आपको अच्छी चिकित्सा देखभाल की जरूरत होगी।  आप जानना चाहेंगी यदि गैस्टेशनल मधुमेह नियंत्रित रहे तो चिंता की कोई बात नहीं है आपकी गर्भावस्था सामान्य रहेगी व शिशु को भी कोई नुकसान नहीं होगा। क्या इससे बचाव हो सकता है? गर्भावस्था से पहले व इसके दौरान अपने वजन पर नजर रखें। बढ़िया खानपान पर ध्यान दें। पोषक आहार के साथ-साथ व्यायाम को भी न भूलें। फॉलिक सीसा की पूरी मात्रा लें। इस तरह जन्म लेने वाले शिशु को भी आगे चलकर मधुमेह का खतरा नहीं रहेगा। याद रखें कि गर्भावस्था में जी.डी. होने पर, गर्भावस्था के बाद टाईप-2 मधुमेह का डर बढ़ जाता है। अपना आदर्श आहार लें, वजन पर नजर रखें व शिशु के जन्म के बाद भी व्यायाम करती रहें ताकि खतरे को टाला जा सके। यह भी पढ़ें –कल्की से लें प्रेगनेंसी में स्टाइलिश फोटो क्लिक करवाने के आइडियाज

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प्लेसेंटा के नीचे ब्लड जमने के बावजूद हेल्दी बेबी को जन्म दे सकती है मां

जानिए सब कोरियोनिक ब्लीड के बारे में – यह क्या है?  इसे ‘सब कोरिओनिक टीमाटोमा’ भी कहते हैं। इसमें यूटेराइन लाइनिंग व कोरियन के बीच या प्लेसेंटा के नीचे खून जम जाता है। हालांकि ऐसे मामले में भी ज्यादातर महिलाएँ स्वस्थ शिशुओं को जन्म देती हैं लेकिन प्लेसेंटा के नीचे रक्त की वजह से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। यह कितना सामान्य है? करीब 1 प्रतिशत मामलों में ऐसा होता है। पहली तिमाही में होने वाले रक्तस्राव में 20 प्रतिशत मामले इसी के होते हैं। इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? पहली तिमाही में रक्तस्राव इसका लक्षण हो सकता है लेकिन कई बार बिना किसी लक्षण के भी रुटीन अल्ट्रासाउंड में इसका पता चलता है। आप जानना चाहेंगे सब कोरिओनिक रक्तस्राव से शिशु को हानि नहीं होती। टीमाटोमो का सुधार अपने-आप ही हो जाता है। आप व आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि ऐसा रक्तस्राव हो तो डॉक्टर को बुलाएं।वे जांचेंगे कि किस वजह से और किस जगह पर रक्तस्राव हो रहा है। ये भी पढ़े- जब टूटे एक मां बनने का सपना, तब क्या करें

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प्रेगनेंसी में मिसकैरिज से जुड़े इन फैक्ट्स की जानकारी होनी चाहिए

आप जानना चाहेंगी आम गर्भावस्था में व्यायाम, सैक्स, भारी सामान उठाना, भावनात्मक तनाव, गिरने के डर, या पेट पर दबाव पड़ने से मिसकैरिज नहीं होता। मॉर्निंस सिकनेस से भी नहीं होता यदि एक बार मिसकैरिज हो भी जाए तो आगे आने वाली गर्भावस्था सामान्य होती है। आप सीखना चाहेंगी ? कई बार स्वस्थ गर्भावस्था में […]

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भावी पिता को सताती है पत्नी के प्रसव व डिलीवरी की चिंता

‘‘मैं शिशु के जन्म को लेकर काफी उत्साहित हूँ लेकिन इस वजह से काफी तनाव भी है।” बहुत कम पिता ऐसे होते हैं, जिन्हें इस बारे में तनाव न होता हो। यहां तक कि सैकड़ों डिलीवरी करवाने वाले डॉक्टर भी अपने शिशु के जन्म के समय घबरा जाते हैं। लेकिन वे सब अपनी घबराहट पर काबू […]

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प्रसव के बाद के पहले छह सप्ताह

अब तक तो आपको शिशु की देखभाल करना काफी अच्छे तरीके से आ गया होगा।साथ ही आप अपने बड़े बच्चों की माँगे भी पूरी कर पा रही होगीं हालांकि दिन–रात आपका पूरा ध्यान उस नन्हे शिशु की ओर होगा। शिशु अपनी देखरेख नहीं कर सकते लेकिन वे यह नहीं कहते कि आप अपना ध्यान रखना […]

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प्रसव के दौरान ट्राई करें ये मुद्राएँ 

‘‘मैं जानती हूँ कि प्रसव के दौरान पीठ केबल सीधा नहीं लेट सकते लेकिन कौन सी पोजीशन ठीक रहती है? आपको प्रसव के दौरान पीठ के बल लेटने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह तरीका ज्यादा कारगर भी नहीं होता, इस तरह कई रक्त नलिकाएँ दबने का डर होता है और गुरुत्वाकर्षण की मदद भी […]

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