भाई साहब मैं तो अपने पड़ोस में रहने वाले मिस्टर पॉजिटिव से बड़ा परेशान हूं। पता नहीं वह अभी तक आप से मिले हैं या नहीं, अगर नहीं मिले हैं, तो मैं दुआ करता हूं कि आपकी उनसे मुलाकात न ही हो तो अच्छा है।
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एक तरफ उसका घर – गृहलक्ष्मी कहानियां
कान में इयरफोन लगाना, दुनिया को सुनने से इनकार कर देना है। तमाम अनपेक्षित, अवांछित आवाज़ों से खुद को काट लेना है।
प्रारंभ का अंत – गृहलक्ष्मी कहानियां
वीरेंद्र शान्त खड़ा था, अचला कह रही थी – – मैंने तुम्हे कभी प्यार नहीं किया था, तुम्हारी तरफ देख क्या लिया ,तुम-से बात क्या कर ली- – तुमने उसे प्यार समझ लिया? और मुझे बदनाम कर बैठे।
मृत्यु गीत
“मम्मी ,काकी अभी तक नहीं आईं?”अकुलाकर द्वार की ओर
देखते हुये मुदिता ने कहा.
वह कबसे सजी संवरी सहेलियों के साथ बैठी थी.पड़ोस की औरतें साड़ियों
जानिए हिंदी भाषा पर महान व्यक्तियों के विचार – गृहलक्ष्मी कहानियां
हिंदी ना सिर्फ एक भाषा है बल्कि ये हमारी राष्ट्रीयता की पहचान भी है, ऐसे में हिंदी की महत्ता को लेकर देश के महान शख्सियतों ने काफी कुछ कहा है, जिसे जानना हम सबके लिए काफी उपयोगी है।
दीप -पर्व मनाएँ पारम्परिक अंदाज में
आज की भागदौड़ और रफ्तार से भागती जिंदगी में हमारी खुशियां और रिश्ते सब पीछे छूटते जा रहे हैं। व्यस्त दिनचर्या के चलते चाहते हुए भी हम अपने और अपनों के लिए वक्त नहीं निकाल पाते। ऐसे में त्योहारों का आना एक बहाना बन जाता है। खुशियों के पल जीने का।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : दंगे वाली दुल्हन
मेरे दर्द से आपा का दर्द कुछ कम नहीं था, मगर मैं क्या करूं…? जिस दर्द को मैं भूलना चाहती थी, उसे कोई मुझे भूलने ही नहीं देता।
घर की लक्ष्मी – गृहलक्ष्मी कहानियां
माया को उसके सास-ससुर बात-बात पर ताने मारते। उसका पति तो उसे अधिक दहेज न लाने के कारण रोज तानों के साथ-साथ थप्पड़-मुक्के भी मारने लगा। माया की सुबह गलियों से शुरू होती और शाम लात-घूसे लेकर आती। ये सब सहना तो माया की अब नियति बन गया था। रोज-रोज की दरिंदगी को सहते-सहते माया के आंसू सूख चुके थे…
मृगतृष्णा का दंश – गृहलक्ष्मी कहानियां
वो पेट की भूख, जल्दी और ज्यादा कमाई का लालच ही था जो देवू और बीरू ने चोरी के भुट्टे बेचने का धंधा करने की सोची। उन्हें ये नहीं पता था कि यह लालच आने वाले समय में उन्हें कैसा समय दिखाने वाला है।
सपनों की उड़ान – गृहलक्ष्मी कहानियां
बचपन से एक सपना था, आईआईटी में एडमिशन लेने का, एक विश्वास कि- हां! कुछ करना है। इस विश्वास ने कब जुनून का रूप ले लिया, इसका मुझे खुद भी पता नहीं चला।