गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कविता

उन्हें भी तो इतना दर्द हुआ होगा
पर इस बात का साक्षी केवल वह विधुर होगा
उसकी भी बगिया सूख गई
उसका भी चमन उजड़ गया
जिसके संग होती थी भोर
और गुजरती थी रंगीन शाम
उसके नैनो के कोरों से अश्रु भी बह गया
वह तो ठहरा बेचारा मर्द
उसको भी हुआ होगा वैसा ही दर्द
अधिकार नहीं उसे रोने का
कैसे करें वह दर्द बयां
अपने प्रियवर के खोने का
दबी जुबां सहमा सा दिल
कहां कोई उसके काबिल
सब अपने कामों में व्यस्त हुए
निस- दिन वह ख्वाब सारे ध्वस्त हुए

जो देखा था प्रियवर के संग
उनमें अब लग गई है जंग
हर निशा ताके आसमान
करें कैसे वह दर्द बयां
चूर-चूर उसका सपना होगा
काली बैरन रातों में
क्या कभी वह सोता होगा
उसका साक्षी वह नितांत अकेला
सिर्फ और सिर्फ विधुर होगा…

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