गृहलक्ष्मी की कविता:
हम सब के अपने हिस्से हैं
सब अपने हिस्से का जीते हैं
कुछ को अमृत मिल जाता है, कुछ
जीवन भर विष पीते हैं ….
श्रीराम को जब था राज लिखा तब जा कर क्यों वनवास मिला?
सीता महलों में ब्याही गयी जीवन भर वन में पायी गयी पूछो सीय से कितने दिन उनके महलों में बीते हैं?
हम सब के अपने हिस्से हैं ,सब अपने हिस्से का जीते हैं ….
कुछ कर्म से मिलता है साथी कुछ किस्मत से मिल जाता है
जो सोचा वैसा हुआ नहीं सब अनजाना हो जाता है अपनी आँखों के आंसू को सब आँखों में ही पीते हैं
हम सब के अपने हिस्से हैं
सब अपने हिस्से का जीते हैं कुछ को अमृत मिल जाता है कुछ जीवन भर विष पीते हैं|