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bhootnath by devkinandan khatri

ऊपर लिखी वारदात को गुजरे आज कई दिन हो चुके हैं। इस बीच में कहाँ और क्या-क्या नई बातें पैदा हुईं उनका हाल तो पीछे मालूम होगा, इस समय हम पाठकों को कला और बिमला की उसी सुन्दर घाटी में ले चलते हैं जिसकी सैर वे पहिले भी कई दफे कर चुके हैं।

उस घाटी के बीचोंबीच में जो सुन्दर बँगला है उसी में चलिए और देखिए कि क्या हो रहा है।

भूतनाथ नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

रात घंटे भर से कुछ ज्यादा जा चुकी है। बँगले के अन्दर एक कमरे में साफ और सुथरा फर्श बिछा हुआ है और उस पर कुछ आदमी बैठे आपस में बातें कर रहे हैं। एक तो इन्द्रदेव हैं, दूसरी कला, तीसरी बिमला और चौथी इंदुमति है, जिसका नाम आजकल ‘चंदा’ रखा गया है। खैर सुनिए कि इनमें क्या-क्या बातें हो रही हैं।

बिमला : (इन्द्रदेव से) आपका कहना बहुत ठीक है, मैं भी भूतनाथ से इसी तरह पर बदला लेना पसन्द करती हूँ, तभी तो उसे यहाँ से निकल जाने का मौका दिया, नहीं तो यहाँ पर उसको मार डालना कोई कठिन काम न था।

इन्द्रदेव : ठीक है, किसी दुश्मन को मार डालने से मेरी तबीयत तो प्रसन्न नहीं होती। मैं समझता हूँ कि मरने वाले को कई सायत तक की मामूली तकलीफ तो होती है मगर मरने के बाद उसे कुछ भी ज्ञान नहीं रहता कि उसने किसके साथ कैसा सलूक किया था और उसने किस तरह पर उससे बदला लिया। प्राण का संबंध शरीर से नहीं छूटता, उसे कोई-न-कोई शरीर अवश्य ही धारण करना पड़ता है। एक शरीर को छोड़ा तो दूसरा धारण करना पड़ा। यह उसकी इच्छानुसार नहीं होता बल्कि सर्वशक्तिमान जगदीश्वर के रचे हुए मायामय जगत् का यह एक अकाट्य नियम ही है और इसी नियम के अनुसार ईश्वर भले-बुरे कर्मों का बदला मनुष्य को देता है। एक देह को छोड़कर जब जीव दूसरी देह में प्रवेश करता है तब अपने भले-बुरे कर्मों का फल दूसरी देह में भोगता है, मगर इसका उसे कुछ भी परिज्ञान नहीं होता और उस सुख-दुःख का कारण न समझकर वह सहज ही में उस कर्म-फल को अथवा सुख-दुःख को भोग लेता है या भोग करता है। वह इस बात की नहीं समझ सकता कि पूर्व जन्म में मैंने यह पाप किया था जिसका बदला इस तरह पर मिल रहा है, बल्कि उसे वह एक मामूली बात समझता है, और दुःख को दूर करने का उद्योग किया करता है, यही कारण है कि वह पुन: पाप-कर्म में प्रवृत्त हो जाता है। अगर मनुष्य जानता कि यह दुःख उसके किस पाप-कर्म का फल है तो कदाचित् वह पुन: उस पाप-कर्म में प्रवृत्त होने का साहस न करता परन्तु उस महामाया की माया कुछ कही नहीं जाती और समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों होता है कदाचित् उस दयामय के दया भाव ही के कारण हो। इसी से मैं कहता हूँ कि दुश्मन को मार डालने से कोई फल नहीं होता। उसके पाप-कर्म का बदला ईश्वर तो उसे देगा ही परन्तु ‘मैं भी तो कुछ बदला दे दूँ” यही मेरी इच्छा रहती है। चाहे किसी मत के पक्षपाती लोग इसे भी ईश्वर की इच्छा ही कहें परन्तु मेरे चित्त को जो संतोष होता है वह विशेषता इसमें अधिक अवश्य है।

बिमला : निःसन्देह ऐसा ही है।

इन्द्रदेव : दुश्मन बहुत दिनों तक जीता रहकर पाप का प्रायश्चित भोगता रहे सो अच्छा, जितने ही ज्यादा दिनों तक वह पश्चात्ताप करे उतना ही अच्छा, उसके शरीर को जितना ही कष्ट भोगना पड़े उतना ही उत्तम वह अपने सच्चाई के साथ बदला देने वाले को प्रसन्न और हँसता हुआ देखकर जितना ही कुढ़े, जितना ही शर्मिन्दा हो और जितना दुःख पा सके उतना ही शुभ समझना चाहिए। इसी विचार से मैं कहता हूँ कि भूतनाथ को मारो मत, बल्कि उसे जहाँ तक बने सताओ और दुःख दो, भला वह समझे तो सही कि मेरे किस कर्म का यह क्या फल मिल रहा है!!

मगर एक बात और विचारने के योग्य है, वह यह कि इस तरह पर दुश्मन से बदला लेना कुछ सहज काम नहीं है, इसके लिए बड़े ही उद्योग, बड़े ही साहस और बड़े ही धैर्य की जरूरत है और इसके लिए अपने चित्त के भाव को बहुत ही छिपाना पड़ता है, सो ये बातें मनुष्य से जल्दी निभती नहीं, इसी से कई विद्वानों का मत है कि ‘दुश्मन को जहाँ तक हो सके जल्द मिटा देना चाहिए, नहीं तो किसी विचार से तरह दे देने पर कहीं ऐसा न हो कि मौका पाकर वह बलवान हो जाय और तुम्हीं को अपने कब्जे में कर ले’। यह सच है परन्तु यदि ईश्वर सहायक हो और मनुष्य धैर्य के साथ निर्वाह कर सके तो इस बदले से वह पहिला ही बदला अच्छा है जिसे मैं ऊपर बयान कर चुका हूँ

भूतनाथ के साथ इस तरह का बर्ताव करने से एक फायदा यह भी हो सकता है कि सच्चे और झूठे मामले की जाँच भी हो जाएगी। कदाचित् उसने तुम्हारे पति को धोखे ही से मारा हो जान-बूझकर न मारा हो, जैसा कि उसका कथन है! भूतनाथ ऐसा बुद्धिमान और धुरंधर यदि अपने कर्मों का प्रायश्चित पाकर सुधर जाय और अच्छी तरह राह पर लगे तो अच्छी ही बात है क्योंकि ऐसे बहादुर लोग दुनिया में कम पैदा होते हैं।

इन्द्रदेव की आखिरी बात कला और बिमला को पसन्द न आई मगर उन्होंने उनकी खातिर से यह जरूर कह दिया कि-‘आपका कहना ठीक है’।

कला : खैर अब तो भूतनाथ को मालूम ही हो गया है कि जमना और सरस्वती जीती हैं, देखें हम लोगों के लिए क्या उद्योग करता है।

इन्द्रदेव : कोई चिंता नहीं, मालूम हो गया तो होने दो, तुम होशियारी के साथ इस घाटी के अन्दर पड़ी रहो, किसी को यहाँ का रास्ता मत बताओ और जब कभी इस घाटी के बाहर जाओ तो उन अद्भुत हों को जरूर अपने साथ रखो जो मैंने तुम लोगों को दिये हैं।

बिमला : जो आज्ञा।

कला : यहाँ का रास्ता अभी तक तो सिवाय प्रभाकर सिंह के और किसी नए आदमी को मालूम नहीं हुआ, मगर इधर प्रभाकर सिंह जी की जुबानी यह जाना गया कि हम लोगों का कुछ हाल उन्होंने अपने दोस्त गुलाबसिंह को जरूर कह दिया है, मगर यहाँ का रास्ता, घाटी या इसका असल भेद उनको भी नहीं बताया है।

इन्द्रदेव : (कुछ सोचकर) प्रभाकर सिंह बुद्धिमान आदमी हैं, उन्होंने जो कुछ किया होगा उचित किया होगा, इसके विषय में तुम लोग चिंता मत करो। इसके अतिरिक्त गुलाबसिंह पर मैं भी विश्वास करता हूँ। वह निःसंदेह उनका सच्चा हितैषी है और साथ ही इसके साहसी और बहादुर भी हैं। यदि गुलाबसिंह को वे इस घाटी के अन्दर भी ले आवे तो कोई चिंता की बात नहीं है। (मुसकुराकर) और बेटी, तुमने तो प्रभाकर सिंह को यहाँ का राज्य ही दे दिया, यहाँ के तिलिस्म की ताली ही दे दी है।

बिमला : सो आपकी आज्ञा से, मैंने अपनी तरफ से कुछ भी नहीं किया, परन्तु फिर भी आपकी पसन्द पाये बिना वे कुछ कर न सकेंगे। हाँ, एक बात कहना तो मैं भूल ही गई।

इन्द्रदेव : वह क्या?

बिमला : भूतनाथ की घाटी का रास्ता मैंने बंद कर दिया है, अब भूतनाथ अपने स्थान पर नहीं पहुँच सकता और उसके साथी और दोस्त लोग उसी के अन्दर पड़े-पड़े सड़ा करेंगे।

यह कहकर बिमला ने अपनी बेईमान लौंडी चंदो की मौत और भूतनाथ की घाटी का दरवाजा बंद कर देने तक का हाल पूरा-पूरा इन्द्रदेव से बयान किया।

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इन्द्रदेव : (कुछ सोच कर) मगर यह काम तो तुमने अच्छा नहीं किया! तुम लोगों को मैंने इस घाटी में इसलिए स्थान दिया था कि अपने दुश्मन भूतनाथ का हाल-चाल बराबर जाना करोगी? वह इस घाटी के पड़ोस में रहता है और यहाँ से उस घाटी का हाल बखूबी जाना जा सकता है, इसी सुबीते को देखकर मैंने तुम लोगों को यहाँ छोड़ा था, सो सुबीता तुमने अपने से बिगाड़ दिया। यद्यपि भूतनाथ के संगी-साथी इससे परेशान होकर मर जाएंगे मगर इससे भूतनाथ का कुछ नहीं बिगड़ेगा। वह इस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह चला जाएगा, फिर तुम्हें उसके काम-काज की भी कुछ खबर नहीं मिला करेगी। तुम ही सोचो कि यदि वह तुम्हारे किसी साथी या दोस्त को गिरफ्तार करता तो जरूर इस घाटी में ले आता और तुम्हें उसकी खबर लग जाती, तब तुम उसको छुड़ाने का उद्योग करतीं, मगर अब क्या होगा? अब तो अगर वह तुम्हारे किसी साथी को पकड़ेगा तो दूसरी जगह ले जाएगा और ऐसी अवस्था में तुम्हें कुछ भी पता न लगेगा।

बिमला : (सिर झुका कर) बेशक् यह बात तो है। कला : निःसन्देह भूल हो गई!

इंदुमति : गहरी भूल हो गई। आखिर हम लोग औरत की जात, इतनी समझ कहाँ अब इस भूल का सुधार क्यों कर हो?

इन्द्रदेव : अब इस भूल का सुधार होना जरा कठिन है, भूतनाथ जरूर चौकन्ना हो गया होगा और अब वह अपने लिए दूसरा स्थान मुकर्रर करेगा। (कुछ विचार कर) मगर खैर एक दफे मैं इसके लिए उद्योग जरूर करूँगा, कदाचित् काम निकल जाय।

कला : क्या उद्योग कीजिएगा?

इन्द्रदेव : सो अभी से कैसे कहूँ? वहाँ जाने पर और मौका देखने पर जो कुछ बन जाय। यदि भूतनाथ इस घाटी में बना रहेगा तो बहुत काम निकलेगा।

बिमला : तो क्या आप अकेले भूतनाथ की तरफ या उस घाटी में जाएँगे?

इन्द्रदेव : हाँ, जा सकता हूँ क्योंकि वे लोग मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते और न मुझे भूतनाथ की कुछ परवाह ही है, मगर मेरा इरादा है कि इस काम के लिए दलीपशाह को भी अपने साथ लेता जाऊँ।

इतना कहकर इन्द्रदेव उठ खड़े हुए और उस कमरे में चले गए जो यहाँ नहाने-धोने के लिए मुकर्रर था।

भूतनाथ-खण्ड-2/ भाग-6 दिनांक 28 Feb 2022 समय 06.00 बजे साम प्रकाशित होगा

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