yashoda jayanti 2025
yashoda jayanti 2025

Overview:

माता यशोदा ने भले ही श्री कृष्ण को जन्म नहीं दिया था, लेकिन फिर भी दुनिया उन्हें यशोदा नंदन के नाम से पुकारती हैं। ऐसे में यह साफ है कि यह दिन मां और संतान के लिए बहुत ही खास माना जाता है। माना जाता है कि जो मां यशोदा जयंती पर अपने बच्चों के लिए व्रत रखती हैं, उनकी संतान को लंबी आयु मिलती है।

Yashoda Jayanti 2025: हिंदू धर्म में ही नहीं, पूरे भारत में मातृत्व का जब भी जिक्र होता है तब-तब माता यशोदा का नाम जरूर लिया जाता है। माता यशोदा श्री कृष्ण की मां होने के साथ ही अपनत्व, त्याग और समर्पण की देवी मानी जाती हैं। हर साल फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है। इस बार यशोदा जयंती 18 फरवरी, 2025 को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है, क्योंकि इसे मैया यशोदा और भगवान श्री कृष्ण के अटूट रिश्ते के रूप में देखा जाता है। आइए जानते हैं किन महिलाओं को यशोदा जयंती पर पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए।

इसलिए महत्वपूर्ण है यशोदा जयंती

माता यशोदा ने भले ही श्री कृष्ण को जन्म नहीं दिया था, लेकिन फिर भी दुनिया उन्हें यशोदा नंदन के नाम से पुकारती हैं।
Even though Mother Yashoda did not give birth to Shri Krishna, the world still calls him Yashoda Nandan.

माता यशोदा ने भले ही श्री कृष्ण को जन्म नहीं दिया था, लेकिन फिर भी दुनिया उन्हें यशोदा नंदन के नाम से पुकारती हैं। ऐसे में यह साफ है कि यह दिन मां और संतान के लिए बहुत ही खास माना जाता है। माना जाता है कि जो मां यशोदा जयंती पर अपने बच्चों के लिए व्रत रखती हैं, उनकी संतान को लंबी आयु मिलती है। इससे बच्चों का भविष्य संवारने में मदद मिलती है और उन्हें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। वहीं जो महिलाएं इस खास दिन पर माता यशोदा और भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं, उन्हें संतान प्राप्ति होती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता यशोदा की गोद में बैठे श्रीकृष्ण के बाल रूप की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

इस विधि विधान से करें पूजा

यशोदा जयंती पूजन के कुछ आसान नियम हैं, जिन्हें अपनाकर महिलाएं शीघ्र संतान प्राप्ति कर सकती हैं। साथ ही हर मां अपनी संतान के लिए सुखी जीवन व दीर्घायु की कामना करती है। इसके लिए यशोदा जयंती के दिन सुबह उठकर स्नान करें। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी लें, इसपर भगवान श्री कृष्ण और माता यशोदा की प्रतिमा स्थापित करें। आप तस्वीर भी रख सकती हैं। अब इनका पंचामृत से अभिषेक करें। पीले फूलों की माला अर्पित करें और दीपक व धूप बत्ती जलाएं। माता यशोदा और श्री कृष्ण को गोपी चंदन और कुमकुम का तिलक लगाएं। फिर माखन मिश्री, फल और मिठाई का भोग लगाएं। गोपाल मंत्र ‘ऊं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:’ का 108 बार तुलसी माला से जाप करें। फिर यशोदा जयंती की कथा करें। कथा पूर्ण होने पर माता यशोदा और श्री कृष्ण का ध्यान करके अपनी मनोकामना बोलें। पूरे दिन व्रत रखें और अगले दिन पूजा में चढ़ाए गए प्रसाद से व्रत का पारण करें।

यशोदा जयंती व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद से ब्रज में स्थित सुमुख नाम के गोप और उनकी पत्नी पाटला के यहां कन्या रूप में यशोदा का जन्म हुआ था। उनका विवाह ब्रज के राजा नंद से हुआ था। अपने पूर्व जन्म में माता यशोदा ने भगवान श्री विष्णु की कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। तब माता यशोदा ने भगवान विष्णु से यह वरदान मांगा कि वे उन्हें संतान रूप में प्राप्त हों। भगवान श्री विष्णु ने उनका वरदान स्वीकार करते हुए उन्हें यह वचन दिया कि वे कृष्ण रूप में माता देवकी और वासुदेव के घर जन्म लेंगे। लेकिन उनका पालन-पोषण मां यशोदा के घर पुत्र के रूप में होगा। समय आने पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म माता देवकी के गर्भ से हुआ। देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, लेकिन कंस के भय से वासुदेव ने उन्हें कारागार से मुक्त कर माता यशोदा के घर पहुंचा दिया। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण का पालन-पोषण और लालन-पालन माता यशोदा ने किया। मां यशोदा जैसा बेटा सभी माताओं को मिले।

मैं अंकिता शर्मा। मुझे मीडिया के तीनों माध्यम प्रिंट, डिजिटल और टीवी का करीब 18 साल का लंबा अनुभव है। मैंने राजस्थान के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के साथ काम किया है। इसी के साथ मैं कई प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों की एडिटर भी...