जगन्नाथ पुरी की यात्रा में क्यों होते हैं तीन रथ, जानें प्रसाद और यात्रा से जुड़ी कई अनोखी बातें: Jagannath Rath Yatra
Jagannath Rath Yatra

Jagannath Rath Yatra: रथ यात्रा, भव्यता और आस्था का एक ऐसा मेला है, जो सदियों से लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है। यह केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि इतिहास, परंपरा और भक्ति का एक अनूठा संगम है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की दिव्य यात्रा, जगन्नाथ मंदिर, पुरी के पवित्र प्रांगण से आरंभ होकर, न सिर्फ भक्तों का हृदय जीत लेती है, बल्कि वैष्णव धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान भी है।

रथ यात्रा, एक त्योहार नहीं, बल्कि भक्ति, संस्कृति और इतिहास का एक ऐसा संगम है, जो सदियों से लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की दिव्य यात्रा, जगन्नाथ मंदिर, पुरी के पवित्र प्रांगण से शुरू होकर, भक्तों के हृदयों को छू लेती है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य रथ यात्रा 2024 में रविवार, 7 जुलाई को शुरू होगी। यह यात्रा 9 दिनों तक चलेगी और 16 जुलाई को बहुदा यात्रा के साथ इसका समापन होगा।

हर साल, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन के लिए पुरी आते हैं। भगवान इन रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और अपनी प्रजा का हालचाल जानते हैं। रथ यात्रा का मुख्य आकर्षण निस्संदेह विशाल और कलात्मक रथ हैं। 45 फीट ऊँचे नंदीघोष, 44 फीट ऊँचे बलभद्र रथ और 42 फीट ऊँचे देवदास रथ, श्रद्धा और भव्यता का प्रतीक हैं। हजारों भक्त इन रथों को खींचते हैं, जो भक्ति और सामूहिकता का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं। रथ यात्रा नौ दिनों तक चलती है, और इस दौरान अनेक धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पारंपरिक नृत्य, संगीत, भजन और कीर्तन पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।

Also read: Jagannath Temple: इस मंदिर की मूर्ति में है भगवान कृष्ण का दिल, चौंक जाएंगे जगन्नाथ मंदिर से जुड़े इन रहस्यों को जानकर

रथ यात्रा का महत्त्व

Jagannath Rath Yatra
Jagannath Rath Yatra Importance

स्कंद पुराण, हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक, रथ यात्रा के धार्मिक महत्व का उल्लेख करता है। ग्रंथ के अनुसार, जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करते हुए रथ यात्रा में शामिल होता है, उसे अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है, वह पुनर्जन्म-पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है। रथ यात्रा में भगवान के नाम का कीर्तन करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। रथ यात्रा में शामिल होने और भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रथ यात्रा में शामिल होने से अनेक धार्मिक पुण्य प्राप्त होते हैं। रथ यात्रा में शामिल होने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और भगवान के प्रति भक्ति भाव बढ़ता है।

क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा ?

एक मनमोहक कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने कभी नगर देखने की इच्छा जताई थी। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, भगवान जगन्नाथ ने उन्हें रथ पर सवार कर नगर भ्रमण कराया था। माना जाता है कि यही कारण है कि हर साल रथ यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा उस दिव्य नगर भ्रमण का एक वार्षिक पुनःस्थापन है, जो भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। रथ यात्रा धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक वैभव का एक अद्भुत मिश्रण है। विशाल और कलात्मक रथ, जिन्हें नंदीघोष, बलभद्र रथ और देवदास रथ के नाम से जाना जाता है, श्रद्धा का केंद्र होते हैं। हजारों भक्त इन रथों को खींचते हुए जयकारे लगाते हैं, जो भक्ति और सामूहिकता का एक अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करता है।

यात्रा में होते हैं तीन रथ

three chariots
There are three chariots in the journey

जगन्नाथ रथ यात्रा में तीन रथ निकाले जाते हैं, जिसका धार्मिक और पौराणिक दोनों महत्व है। ये रथ भगवान जगन्नाथ, उनके बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित हैं, जो त्रिमूर्ति का भी प्रतीक माने जाते हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा तीनों अलग-अलग रथों पर विराजमान होते हैं। बलराम जी का रथ सबसे आगे चलता है, सुभद्रा जी का रथ बीच में होता है और जगन्नाथ जी का रथ सबसे पीछे चलता है। प्रत्येक रथ विशालकाय और भव्य होता है, जिसे नीम की लकड़ी से बनाया जाता है। रथों में 16 पहिये होते हैं और इन्हें शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाता है। रथ निर्माण में कील का प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार आध्यात्मिक कार्यों में कील या कांटे का प्रयोग अशुभ माना जाता है। साथ ही, यह रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की मां गुंडिचा के घर 15 दिन की यात्रा और कृष्ण लीलाओं को भी दर्शाती है। कुल मिलाकर, ये तीन रथ भक्ति, कथा और परंपरा का एक अद्भुत संगम हैं।

महाप्रसाद का महत्त्व

उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम है। यहां की रसोई, दुनिया की सबसे बड़ी रसोई के रूप में प्रसिद्ध है, जो न केवल महाप्रसाद तैयार करती है, बल्कि सैकड़ों भक्तों के लिए भोजन भी प्रदान करती है। यहां की मान्यता है कि रसोई का संचालन स्वयं माता लक्ष्मी करती हैं। सैकड़ों की संख्या में सेवादार, रोज सुबह उठकर सबसे पहले रसोई को साफ करते हैं और फिर विशेष पोशाक पहनकर भोजन तैयार करने में जुट जाते हैं।

यह भोजन न केवल स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है, बल्कि इसे “महाप्रसाद” के रूप में जाना जाता है, माना जाता है कि इस पर भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद है। रसोई की खासियत है इसमें बनने वाले 56 भोग। ये 56 तरह के व्यंजन ताजे फल, सब्जियों, अनाज और दूध से तैयार किए जाते हैं। प्रतिदिन भगवान जगन्नाथ को ये 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान इस रसोई का विशेष महत्व होता है। रथ यात्रा में रथों पर विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को इसी रसोई से तैयार भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद, प्रसाद को सभी भक्तों में वितरित किया जाता है। हजारों भक्तों का एक साथ प्रसाद ग्रहण करना, एक अद्भुत अनुभव होता है। हजारों भक्तों का एक साथ प्रसाद ग्रहण करना, किसी उत्सव से कम नहीं होता।

कभी खत्म नहीं होता महाप्रसाद

जगन्नाथ मंदिर की रसोई अद्भुत भंडार होने के साथ ही अटूट आस्था का भी प्रतीक है। मान्यता है कि यहाँ का महाप्रसाद कभी खत्म नहीं होता, भक्तों की संख्या चाहे कितनी भी हो प्रसाद लेने के बाद भी इसकी मात्रा कम नहीं होती। रसोई में बनने वाली सामग्री भी अक्षय मानी जाती है, कभी बेकार नहीं जाती। भगवान जगन्नाथ की कृपा से रसोई सदैव भरी रहती है और महाप्रसाद न सिर्फ स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है बल्कि भक्तों को पूर्ण तृप्ति भी प्रदान करता है। यह रसोई भौतिक भोजन से कहीं ज्यादा, आध्यात्मिक अनुभव और दिव्य आशीर्वाद का स्रोत है।