Jagannath Temple Mystery

Jagannath Temple Mystery: शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, कलियुग में भगवान के चमत्कार के साक्षात उदाहरण हैं “चार धाम”। इन चारों धामों को चार तीर्थ भी कहा जाता है। सनातन धर्म को मानने वाले लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति इन चारों तीर्थों के मंदिरों का दर्शन कर लेता है उसे भगवान के चरणों में स्थान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनमें से एक धाम है उड़ीसा के पूरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर धाम।

हिंदू धर्म के सभी मंदिरों में भगवान की पत्थर से बनी हुई मूर्तियां मिलती है लेकिन जगन्नाथ मंदिर में श्रीकृष्ण और उनके भाई बहन की लकड़ी से बनी हुई बिना हाथ पैरों की अधूरी मूर्तियां स्थापित हैं। उड़ीसा राज्य में हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार मंगलवार 20 जून 2023 को जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई। तो चलिए जानते हैं धार्मिक ग्रंथों में बताए गए जगन्नाथ मंदिर के रोचक और रहस्य से भरे तथ्यों के बारे में।

श्री कृष्ण से जुड़ा है जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

Jagannath Temple Mystery
Jagannath Temple Mystery and History

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि पौराणिक ग्रंथ मत्स्य पुराण और ब्रह्म पुराण में यह वर्णन मिलता है कि जगन्नाथ मंदिर में स्थित भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण का ही रूप है। धार्मिक कथाओं के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर में श्रीकृष्ण की मूर्ति में श्रीकृष्ण का हृदय आज भी धड़कता है। इसी कारण जगन्नाथ मंदिर को धरती का बैकुंठ कहा जाता है। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने मालवा के राजा इंद्रद्युमन की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सपने में दर्शन दिया और उनसे कहा कि नदी में बह रहे लट्ठे से श्रीकृष्ण, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बनवाकर मंदिर में प्रतिष्ठित किए। श्रीकृष्ण के आदेश को मानकर राजा इंद्रद्युमन ने नदी में बहते हुए लट्ठे से मूर्तियां बनवाने का काम शुरू करवाया। राजा का कोई भी कारीगर मूर्तियां नहीं बना पा रहा था, तब श्रीकृष्ण की लीला से भगवान विश्वकर्मा जी एक बूढ़े कारीगर का वेश बनाकर राजा इंद्रद्युमन के महल गए और लकड़ी के लट्ठे से मूर्तियां बनाकर देने की बात कही।

शर्त टूटने के कारण रही मूर्तियां अधूरी

Jagannath Temple Mystery

तीनों लोकों के महान कारीगर विश्वकर्मा जी ने राजा इंद्रद्युमन के सामने एक शर्त रखी कि जब वो मूर्तियां बनाएंगे तब तक कोई भी उनके काम को देखने के लिए कमरे में नहीं आयेगा। राजा इंद्रद्युमन ने विश्वकर्मा जी की यह शर्त मान ली। जब विश्वकर्मा जी के कमरे में छैनी हथौड़ी की आवाजें आनी बंद हो गई, तब राजा को शक हुआ कि कमरे के अंदर कारीगर के साथ कुछ अनहोनी न हो गई हो। इसलिए राजा ने कारीगर बने विश्वकर्मा जी के कमरे को खोल दिया। जब राजा ने कमरे को खोला तब उन्होंने देखा कि कमरे कोई भी काम नहीं कर रहा है और लकड़ी की तीन मूर्तियां बनी हुई है।

जिसमें से एक मूर्ति भगवान श्रीकृष्ण की थी और दूसरी उनके बड़े भाई बलभद्र की थी। इन दोनों मूर्तियों के हाथ और पैरों की उंगलियां नहीं थी। तीसरी मूर्ति श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा की थी जिसके हाथ और पैर दोनों ही नहीं बने थे। अधूरी मूर्तियों को देखकर राजा को बहुत अफसोस हुआ। राजा सोचने लगे की अधूरी मूर्तियों को मंदिर में नहीं रखा जा सकता है। राजा की चिंता को देखते हुए श्रीकृष्ण ने उन्हें फिर से सपने में दर्शन दिया और कहा कि अधूरी मूर्तियों को ही मंदिर में रखवाकर मूर्तियों की पूजा आराधना का कार्य शुरू करवा दें। राजा ने श्रीकृष्ण के आदेश को मानकर मंदिर में अधूरी मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करवाई और सभी लोगों को मंदिर के दर्शन की अनुमति दे दी।

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