विज्ञान का तात्पर्य है वह ज्ञान जो विषय को विशिष्टता प्रदान करे। अर्थात प्रकृति का कर्मानुसार सम्यक पूर्ण ‘विशिष्ट ज्ञान’ ज्योतिष शास्त्र ससम्मान मान्यतापूर्ण संज्ञत: सम्बोधित है, जिससे यह शास्त्र शिक्षण संस्थाओं में विज्ञान की प्रथम श्रेणी में बिना किसी आपत्ति या विलम्ब के शामिल करना चाहिए।

यह सत्य है कि आधुनिक वर्तमान युग में अभी तक भौतिक तथा रसायन अथवा अन्य शास्त्रीय विज्ञानों की भांति परीक्षण अथवा प्रयोग के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में ज्योतिष विशेषज्ञों के अधीन कोई प्रमाणिक प्रयोगशाला सहित सुनिश्चित पाठ्यक्रमों का नितांत अभाव है। जिससे ‘सजीव’ अथवा निर्जीव वस्तु (पदार्थ) पर होने वाले प्रभाव को भविष्य का प्रयोग परीक्षण करके प्रत्यक्ष समझाया दिखाया जा सके। क्योंकि ज्योतिष शास्त्र भी निस्संदेह विज्ञान तो है ही, वरन विज्ञान से भी सर्वोपरि है। परन्तु आज भी जनमानस की अज्ञानता वश यह अभी भी उपेक्षित व संदिग्ध है।

मानव प्राणी पर ही नहीं वरन् देवी देवता, राक्षस, रावण भी इस सत्य के प्रमाणिक उदाहरण हैं एवं सारे सजीव, निर्जीव चराचर जीवों पिण्डों पदार्थों, पर प्रतिफल, प्रतिक्षण, प्रतिपग पड़ने वाले ग्रह मण्डल, राशि तथा नक्षत्र मंडल की बहु विधि विशेषताओं से सम्भूत प्रभाव का क्रमबद्घ अध्ययन करने वाले मानव ज्ञान की विभिन्न शाखाओं – प्रशाखाओं के अन्तर्गत यह ‘विज्ञान’ ज्योतिष शास्त्र के नाम से मानव संस्कृति के प्रारम्भिक (काल) से ही मान्यता पूर्ण, लोकप्रियता प्राप्त करके वर्तमान सभ्यता संस्कृति के साथ विश्वसनीयता के साथ जीवित है यह विज्ञान सदैव शाश्वत स्थायी एवं अनिवार्य रूप से आलोकित रहेगा, प्रमाणित होता रहेगा। भूतल पर स्थित सारे सजीव निर्जीव, जीव, जन्तु, जानवर, पेड़-पौधे आदि वास्तव में ‘नवग्रह’ – द्वादश राशि – सत्ताइस नक्षत्रों से प्रत्यक्षत: अप्रत्यक्षत: प्रभावित हुए थे, वर्तमान में भी प्रभावित होते हैं एवं भविष्य में प्रभावित होंगे। ‘आदृश्य’ अथवा ‘निराकर’ सत्ता तो अंधकार का ही प्रतिरूप है। किसी ‘सजीव’ या निर्जीव पिण्ड (पदार्थ) का भविष्य भी आद्रश्य होता है। भूतल पर भूगर्भ शास्त्र द्वारा जितने भी अनुसंधान तथा आविष्कार हुए हैं सभी की पृष्ठभूमि में ‘विज्ञान’ का ही चमत्कार रहा है। विज्ञान भी एक प्राकृति सुनिश्चित उपज अनुसंधान है, जो पहले से ही अदृश्य गुप्त वस्तु का बोध प्रत्यक्ष कराता है, वहीं अन्वेषण (अविष्कार) द्वारा सर्वथा नूतन वस्तु का जन्म एवं बोध होता है भूत (काल) का अर्थ है बीता हुआ, भविष्य (काल) का अर्थ है आने वाला दिन/अंधकार में लीन अदृश्य को भविष्य वाणित करने की आधारशिला आने वाला समय (काल) ही होता है अर्थात ज्योतिष शास्त्र का प्रतिपादप विषय मानव प्राणी ही नहीं है वरन् निर्जीव पदार्थ तथा मानवेतर अन्य सजीव (वस्तु) भी होते हैं। ज्योतिष शास्त्र का प्रकाश स्तम्भ ‘विज्ञान’ ही है। क्योंकि ज्योतिष का अर्थ प्रकाश से सम्बन्धित समाज शास्त्र है। इस प्रकाश ज्योति से अनभिज्ञ अथवा अज्ञानी अपरिचित मानव पृथ्वी पर अवस्थित सारे सजीव निर्जीव वस्तुओं के भोगार्थ परिचय लाभ करता है तथा अन्य सजीव निर्जीव पदार्थों को भी समान लाभ के लिए प्रयत्न करता है। ग्रहों, राशियों तथा नक्षत्रों के आकार प्रकार विस्तार, गुण प्रभाव क्षेत्र का क्रमबद्घ, पूर्ण तथा सूक्ष्म अध्ययन करने में हमें जो विज्ञान (अथवा विशिष्ट ज्ञान) प्रशाखा समर्थ व सक्षम बनाती है। उसी विज्ञान को हम ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। अंधकार (अज्ञान) को दूर करने में प्रकाश ही सामर्थ्यवान होता है। इसलिए प्रकाश वाला (नेत्र दृष्टि सम्भूत) यह शास्त्र वेदों का अंग होने से ‘वेदांग’ की संज्ञा से संगति है।

मानव जीवन के उद्भव से अस्त तक (जन्म, मृत्यु, विवाह) की सारी घटनाओं, का सम्यक विधिवत, अध्ययन ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से ही होता है राष्ट्रीय तथा अंतराष्ट्रीय भविष्य कथन और ज्योतिष शास्त्र के युग – युगान्तर से अनुमोदित सम्पुष्ट आर्ष सूत्रों तथा सिद्घान्तों नियमों के आधार पर बने पंचांगों के आधार पर होती है।

जिनका विवरण प्रतिशत सच व सटीक सिद्घ होता है राष्ट्र एवं अंतराष्ट्रीय की बहुविधि भविष्य वाणियां (प्राकृतिक-शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक, सामरिक, ऋतुपरक, राजनीतिक, कूटनीतिक, सम्यतापरक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, कृषि परक, औद्योगिक, राजनीतिक तथा कूटनीतिक आदि) भविष्य वाणियां ज्योतिष शास्त्र के आधार पर की जाती है। इसलिए इसका अध्ययन शोध कार्य विद्यालयों – विश्वविद्यालयों – संस्थाओं – संस्थानों में प्रयोगशाला सहित आवश्यक है।

दैनिक जीवन की शुभ-अशुभ घटनाओं का विशद व सूक्ष्म अध्ययन ज्योतिष शास्त्र की आधारशिला पर होता है। गुप्त एवं अप्रकाशित अंधकारमय वातावरण में किसी का उद्घाटन करके प्रकाश में लाना – सद्परामर्श देकर बोध कराना ही इस शास्त्र का प्रमुख कार्य है। जो इसमें निहित विज्ञान के दृष्टिकोण पर निष्पादित होता है। कई बार अनेक प्रयोगों के परिणाम अशुभ या अपूर्ण ही रह जाते हैं। काल (भूत) के प्रतिपादित सूत्र सिद्घान्त आज के परिप्रेक्ष्य में बदल जाते हैं। डॉक्टरों चिकित्सकों की चिकित्सा के फलस्वरूप, रोगों का निदान नहीं हो पाता है तथा अनेकों बार रोगी मर जाते हैं रोगों का निदान नहीं हो पा रहा है तथा अनेक रोगी नियोजन के अभाव में मर चुके हैं। ऐसी अवस्था में भी वैज्ञानिकगण – वैज्ञानिक बने रहते हैं एवं चिकित्सक चिकित्सक बने रहते हैं। (अत: ज्योतिष शास्त्र को मनगढन्त व कपोल कल्पित कहने वाले ही निर्मल निराधार तर्क प्रस्तुत करते हैं। विज्ञान हमें निराधार तर्क प्रस्तुत करते हैं। विज्ञान हमें भाग्यवादी नहीं बनाता है वरन् सदा कर्म की प्रेरणा प्रदान कर सदा कर्त्तव्य परायण बनने की शिक्षा दे रहा है) ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन – अनुसंधान अनादिकाल से होता आया है। वर्तमान में ज्योतिष शास्त्र ‘विज्ञान’ के रूप में अन्वेषण व शोध का प्रमुख विषय है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति का ज्योतिष के प्रति एक गहरे विश्वास के साथ सुनिश्चित रूप से भविष्य सुरक्षित रख सकेगा।

श्री मद्भागवत्गीता के दशम अध्याय विभूति योग का वर्णन करते हुए भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रियमित्र अर्जुन से कहते हैं कि मैं – ‘ज्योतिषां रविरंशुमान’ अर्थात् ज्योतिषियों में किरणों वाला सूर्य हूं।

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूवत्, छन्द, ज्योतिष वेद के इन छ: अंगों में ज्योतिष का नाम आता है। जिसका अर्थ प्रकाश है। – ‘भूत भविष्यं भवदं च सर्व वेदान्प्रसिधति’

भूत, भविष्य तथा वर्तमान काल की बातें वेद के इसी छठे अंग ज्योतिष द्वारा ‘हस्तामलकवन’ प्रकाश में आ जाती है। – ‘प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्र साक्षिणी चन्द्र भास्करों’ अत: ज्योतिष शास्त्र प्रत्यक्ष है इसके साक्षी चन्द्र और सूर्य हैं। ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार प्रतिदिन होने वाले पंचाग प्रकरण का स्मरण करते समय जब पतित पावनी भगवती भागीरथी के स्थान का फल प्राप्त हो जाता है। तब फिर वेद के अंग ज्योतिष विज्ञान के जानकार को भला कितना फल प्राप्त होगा वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। अत: ज्योतिष शास्त्र को ‘विज्ञान’ के रूप में नयी उपलब्धि विकसित करके शिक्षा निरंतर शोध किया जाना चाहिए। वेदांग ज्योतिष का उद्भव हमारी संस्कृति के भूतकाल से ही है। इसका विकास सदैव अपनी उत्कृष्टता पर रहा किन्तु कालान्तर में राष्ट्रीयकरण, संरक्षण एवं प्रश्रय के अभाव तथा कई अनेक कारणों से इसका अस्तित्त्व क्षीण हुआ है। विदेशों में राजकीय एवं सार्वजनिक संस्थाओं ने इसे प्रश्रय देकर प्रगति के आयाम दिए परिणामत: विदेशों में ज्योतिष की लोकप्रियता बढ़ गई है। जिसका प्रयोग – उपयोग साम्यवादी देशों में हो रहा है। भारत के जन-जन में ज्योतिष व्याप्त हो चुकी है। चाहे वह राशिफल, शकुन, मुहूर्त, मिलान, कुण्डली मेलायक के ही रूप में क्यों न हो किन्तु यहां पर शोषण व उपेक्षा की शिकार – राष्ट्रीय मान्यता व राजाश्रय के अभाव में ज्योतिष विज्ञानी – चिंतन-अध्ययन अनुसंधान से विमुख होकर मात्र व्यवसाय व आजीविका ही बनाए हैं। भारत वर्ष में असंख्य विद्वान-विभूतियां हैं जिनके ज्ञान-अनुभव-अनुसंधान-शोध सामग्री का उपयोग करने पर हमें मौसम, प्राकृतिक, स्थिति तथा अन्य उपयोगी जानकारी मिलती है। ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान के रूप में शिक्षा में शोध-अध्ययन से अधकचरे तथा अंधविश्वास फैलाने वालों का भी शमन होगा तथा भारतीय ज्योतिष को सम्पूर्ण विश्व में पुन: प्रतिष्ठï मिलेगी तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को विविध प्रकार सुरक्षा, सहायता, अयोग्यता-समृद्घि सम्पन्नता का लाभ सदैव प्राप्त होता रहेगा। 

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