Art of Living: यदि आप चाहते हैं कि सभी कर्मचारी आपको समझें और आपके मन के अनुसार काम करें तो इसमें आपको भारी निराशा ही हाथ लगेगी। यह स्थिति इसलिए पैदा नहीं हुई कि दूसरे लोग आपको समझ नहीं पाए, बल्कि इसलिए उत्पन्न हुई कि आप दूसरों को समझ नहीं पाए।
संसार में दूसरों के साथ आपका रिश्ता कैसा है, यह आपके जीवन का निर्णय करने वाले घटकों में प्रमुख स्थान रखता है। यहां आपको नाना प्रकार के लोगों से पाला पड़ता है। सैकड़ों कर्मचारियों
को निभाने की नौबत आने पर आपको कई विचित्र अनुभव मिलेंगे। बेशक आप प्रमुख व्यक्ति हो सकते हैं। मगर यदि आप चाहते हैं कि सभी कर्मचारी आपको समझें और आपके मन के अनुसार काम करें तो इसमें आपको भारी निराशा ही हाथ लगेगी। यह स्थिति इसलिए पैदा नहीं हुई कि दूसरे लोग आपको समझ नहीं पाए, बल्कि इसलिए उत्पन्न हुई कि आप दूसरों को समझ नहीं पाए। कर्मचारियों से ही क्यों, निकट के कई संबंधियों से भी कई बार आपको निराशा
मिली होगी।
एक बार किसी महिला ने महीनों तक ‘कोमा’ की स्थिति में चले गए अपने पति की बड़ी निष्ठï और लगन के साथ सेवा की। जब पति को एक दिन होश आया, उसने अपनी पत्नी को पास में बुलाया।
‘संकट की हर घड़ी में तुमने मेरा साथ दिया है। जब मेरी नौकरी चली गई तुमने आशाजनक वचन बोलकर मुझे दिलासा दिया। फिर मैंने अपना बिजनेस शुरू किया, उसमें नुकसान-दर-नुकसान होने पर तुमने रात-दिन काम करके पैसा कमाया और परिवार चलाया था। मुकदमें में जब हमारे
मकान की कुर्की हो गई तब भी मन छोटा किये बिना तुम मेरे साथ छोटे घर में रहने के लिए चली आई। आज अस्पताल के इस बिस्तर में भी तुम मेरे साथ रहती हो। पता है, तुम्हें देखते हुए मेरे मन में कौन-सा ख्याल आता है? वह धीमी आवाज में बोल रहा था।
पत्नी की आंखों में आनंद के आंसू थे, गद्-गद् होकर उसने पति के हाथों को पकड़
लिया।
पति ने कहा… ‘मुझे लगता है तुम हमेशा मेरे साथ रहती हो, इसी वजह से मेरे ऊपर एक के बाद एक संकट के पहाड़ टूट रहे हैं। इस तरह बातों को उल्टे दिमाग से गलत ढंग से समझने वाले लोगों के साथ कौन-सा रिश्ता स्थाई रह सकता है? रिश्तों को कैसे निभाना है? हम उन्हें कैसे निभा रहे हैं?
चाहे कितना ही घनिष्ठ मित्र हो, हमने उसके और अपने बीच एक सीमा रेखा खींच रखी है। दोनों में से कोई भी उसे लांघे तो विरोध का झंड़ा उठा देते हैं कोई एक उदारता पूर्वक झुक जाए तभी कड़वाहट दूर हो सकती है।
दुनिया में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति हो, उनके पास ऐसे गुण होंगे जो आपको पसंद हों, ऐसे गुण भी होंगे जो आपको पसंद न हों।
दोनों तरह के गुणों को समान रूप से स्वीकार करने की परिपक्वता आ जाए तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएं।
इसके विपरीत जरूरत पड़ने पर दूसरों पर लाड़-प्यार बरसाने और जरूरत खत्म होने पर उन्हें दुतकारने का रवैया जब तक रहेगा, अनबन और मन-मुटाव का माहौल बना ही रहेगा। एक बात समझ लें, हमारे चारों ओर के लोग बहुत ही अच्छे हैं, उनमें कोई ऐब नहीं है। संभव है, एकाध मौकों पर पागलों जैसा व्यवहार हो गया हो। उन्हें तूल देना उचित नहीं है।

आप क्यों ऐसी प्रतीक्षा करते हैं कि वे बदल जाएं? आप बदलिए न। जहां जिन-जिन से जैसा व्यवहार करना चाहिए, वैसा बरतने के लिए तैयार रहिए।
अगले व्यक्ति से निपटने के लिए जो युक्ति कारगर रहेगी उसका प्रयोग कीजिए। जिंदगी अपनी विभिन्नताओं के कारण ही दिलचस्प लगती है।
यूं इंतजार मत कीजिए कि प्रत्येक व्यक्ति आपकी इच्छानुसार अपने को ढाल ले, बल्कि अगले आदमी को उसी रूप में अपनाइए। ऐसा करने पर चाहे दूसरे लोग आपके मनमाफिक न बदलें, जिंदगी आपके मन माफिक बन जाएगी।
