Online study
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Online study : कोरोना महामारी ने भारत में बच्चों की जिंदगी बदल दी। पहले बच्चों के कंधों पर किताबों से भरे बैग का बोझ होता था, लेकिन अब ये बोझ कंधों से उनके दिमाग तक पहुंच गया है और ये बोझ है ऑनलाइन पढ़ाई का। जिन चीजों से कोसों दूर रहने की बात माता-पिता, शिक्षक और डॉक्टर तक करते थे, आज वही दुश्मन आंखों में बस गया है।

सुबह सो कर उठने के साथ ही आंखें मोबाइल, लैपटॉप और कम्प्यूटर पर गड़ जा रही है और देर शाम होने तक गड़ी रह रही है। बच्चों को पता ही नहीं चल रहा है कि कब सुबह हुई और अब शाम ढली।

देश का यह भविष्य अगर ऐसे ही घरों में कैद होकर छह इंच के मोबाइल फोन के स्क्रीन पर सिमट गया तो आगे क्या होगा? हो सकता है कि इस कोरोना काल में पढ़ाई का यह तरीका ठीक हो, पर बच्चों के खेलने-कूदने और स्कूल में मिलने वाली सामाजिक चेतना का क्या होगा? उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का बोझ वह जीवन में कैसे उठा पाएंगे?

ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर शिकायत

हाल ही में 6 साल की एक बच्ची का वीडियो सामने आया। इस बच्ची ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर अपनी शिकायतों का एक वीडियो बनाया और कहा कि इतने छोटे बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई का ये बोझ सही नहीं है। बच्ची की इस मासूमियत में कई गंभीर सवाल भी छिपे थे इसीलिए ये वीडियो वायरल हुआ और अब जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के हस्तक्षेप के बाद नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।

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Complaint about online education

इसके तहत पहली से आठवीं तक की ऑनलाइन क्लास डेढ़ घंटे की होगी। नौवीं से बारहवीं की ऑनलाइन क्लास 3 घंटे की होगी और पांचवीं तक ऑनलाइन क्लास में कोई होमवर्क नहीं दिया जाएगा। इस वीडियो का सार ये है कि आज बच्चों पर ऑनलाइन पढ़ाई का दबाव काफी बढ़ गया है।

संक्रमण के खतरे की वजह से अभी बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, इसीलिए स्कूल बंद हैं। टीचर उन्हें ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं। वैसे तो कई स्टडी कहती हैं कि बच्चों को मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और लैपटॉप से दूर रहना चाहिए, लेकिन अब यही मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और लैपटॉप उनके भविष्य की सीढ़ी बन गए हैं। आज अगर किसी बच्चे के पास इन तीनों में कोई एक चीज न हो तो वो शिक्षा हासिल ही नहीं कर पाएगा।

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Online study’s effects

सोचिए कोरोना वायरस ने शिक्षा के सिद्धांत को ही बदल दिया। पहले कहा जाता था कि स्कूल नहीं होंगे तो बच्चे अशिक्षित रहेंगे और अब कहा जाता है कि मोबाइल फोन नहीं होंगे तो बच्चे अशिक्षित रहेंगे। हालांकि यहां सवाल ये है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा उतनी प्रभावशाली है, जितनी स्कूली शिक्षा होती है?

सबसे बड़ा नुकसान

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Biggest loss of social interaction

पिछले डेढ़ वर्ष में ऑनलाइन पढ़ाई का जो सबसे बड़ा नुकसान सामने आया है, वो है- सोशल इंटरेक्शन। डॉक्टर्स मानते हैं कि एक बच्चे के विकास में सोशल इंटरेक्शन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। वह बाहर जाता है, अपने दोस्तों से मिलता है, शिक्षक से संवाद करता है और ऐसी सामाजिक स्थितियों में वो कई बातें सीखता है, जैसे- वो सहयोग करना सीखता है, मदद करना सीखता है, व्यवहार और स्वभाव के गुण और अवगुण समझता है और अनुशासन में रहना सीखता है।

आपने देखा होगा कि बच्चों को एक तय समय पर स्कूल पहुंचना होता है। फिर तय समय पर ही उनको ब्रेक मिलता है, प्ले टाइम होता है और फिर स्कूल से छुट्टी भी तय समय पर मिलती है। यानी स्कूल में रहते हुए बच्चे अनुशासन में रहना सीखते हैं और शिक्षक भी उन्हें इसका महत्व समझाते हैं। स्कूल में सिर्फ बच्चों को ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि वो जीवन का विज्ञान भी स्कूलों से ही सीखते हैं।

बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव

  • हमारे देश में तो लोग ये भी कहते हैं कि जैसा स्कूल होगा, वैसा ही बच्चा होगा, लेकिन कोरोना वायरस और ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों को सोशल इंटरेक्शन से दूर कर दिया है।
  • दूसरी ओर ऑनलाइन पढ़ाई का एक और बड़ा नुकसान है कि इसमें बच्चे एक सीमा तक ही किसी भी विषय के बारे में अपनी सीख और समझ को बढ़ा पाते हैं। अक्सर बच्चों की यही शिकायत रहती है कि वो ऑनलाइन पढ़ाई में कुछ समझ नहीं पाते और जितना समझते हैं, वो पर्याप्त नहीं होता। यही नहीं सिलेबस पूरा करने के चक्कर में कई बार बच्चों को अधिक समय तक ऑनलाइन क्लास लेनी पड़ती है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
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Negative impact on children

अमेरिकी संस्था सीपीआर द्वारा की गई एक स्टडी के मुताबिक, लगातार लैपटॉप, कम्प्यूटर या मोबाइल फोन के सामने बैठने से बच्चों की आंखों और उनके दिमागी विकास पर असर पड़ता है। डब्ल्यूएचओ का तो यहां तक कहना है कि बच्चों को ऐसी स्थिति में हर 20 मिनट के बाद एक छोटा-सा ब्रेक लेना चाहिए, लेकिन सवाल है कि क्या ये सम्भव है? सोचिए एक बच्चे की एक घंटे की क्लास है तो क्या वो 20 मिनट बाद ब्रेक ले सकता है? अभी की स्थिति में नहीं ले सकता और इसी से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

एक स्टडी ये भी कहती है कि बच्चे जितनी छोटी स्क्रीन पर ऑनलाइन पढ़ेंगे, उनकी आंखों पर उतना ज्यादा इसका गलत असर होगा और इस समय हमारे देश में ज्यादातर बच्चे मोबाइल फोन पर पढ़ रहे हैं, क्योंकि भारत में सभी माता-पिता के लिए अपने बच्चों को लैपटॉप या कम्प्यूटर देना सम्भव नहीं है। कई माता-पिता ने तो अपना मोबाइल फोन अपने बच्चों को पढ़ने के लिए दे दिया है, लेकिन सोचिए ये मोबाइल फोन बच्चों की आंखों और उनके दिमागी स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर डाल सकते हैं।

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There is also a lack of confidence.
  • मोबाइल फोन पर बहुत ज्यादा समय बिताने से बच्चों का स्लीप पैटर्न भी बिगड़ जाता है। अगर आपके घर में भी बच्चे पूरी नींद नहीं ले पा रहे हैं तो आपको इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।
  • ऑनलाइन पढ़ाई के कारण बच्चों के अंदर आमने-सामने संवाद करने का गुण भी विकसित नहीं हो पाता। ऐसे में बच्चे ज्यादा शर्माते हैं, बात करने में डरते हैं और उनमें आत्मविश्वास की भी काफी कमी होती है।
  • ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों को अकेलेपन की तरफ धकेलती है। स्कूल में बच्चे एक कक्षा में साथ बैठ कर पढ़ते हैं, जबकि ऑनलाइन क्लास में ऐसा संभव नहीं होता। ऐसे में ये दूरी उन्हें अकेलेपन की तरफ धकेलती है और बच्चों के अंदर इससे मायूसी बढ़ती है।

इंटरनेट पर हानिकारक जानकारियां

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Harmful information on the internet

ऑनलाइन पढ़ाई का एक बहुत बड़ा नुकसान ये भी है कि इंटरनेट पर कई सारी हानिकारक जानकारियां भी उपलब्ध हैं और मोबाइल फोन पर ज़्यादा समय बिताने से बच्चे ऐसी जानकारियों के सम्पर्क में आ सकते हैं, जिससे उनके विकास पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इंटरनेट पर ड्रग्स से जुड़ी जानकारियां हैं, हिंसक सामग्री है और अश्लील तस्वीरें भी हैं। ऐसे में बच्चों को इंटरनेट के इन खतरों से बचाना भी बड़ी चुनौती है।

हम ये नहीं कह रहे कि ऑनलाइन पढ़ाई गलत है। आज जब कोरोना वायरस की वजह से स्कूल खुल नहीं सकते, तब इंटरनेट ही बच्चों की शिक्षा के लिए एक बड़ा टूल बन पाया है, लेकिन हमें यहां ये भी ध्यान रखना है कि ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों के दिमाग पर बोझ बढ़ा दिया है और बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ये बोझ सही नहीं है।

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