अधिकमास को क्यों कहते हैं पुरुषोत्तम का महीना? जानिए यह पौराणिक कथा: Purushottam Month 2023
Purushottam Month 2023

Purushottam Month 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर तीन साल में एक अधिकमास होता है। इस बार सावन के महीने में अधिकमास पड़ रहा है। हिंदू वर्ष के कैलेंडर में तिथियों का बड़ा महत्व होता है। इसलिए तिथियों के समायोजन के लिए अधिकमास की व्यवस्था की गई है। अंग्रेजी कैलेंडर में पूरे 12 महीने होते हैं, लेकिन हिंदू वर्ष में तिथियों के अनुसार गणना करने पर प्रत्येक तीन साल में या 32 महीने के अंतराल पर 13 महीने होते हैं। सनातन संस्कृति में अधिकमास को धर्म की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। अधिक मास में किए जाने वाले पूजा पाठ और धर्म कार्यों से से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पा लेता है और बैकुंठ को प्राप्त करता है। अधिकमास को मलमास, खर मास या पुरुषोत्तम का महीना भी कहते हैं। अधिक मास को पुरुषोत्तम का महीना कहने के पीछे एक रोचक पौराणिक कथा का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। आइए पंडित इंद्रमणि घनस्याल से उस पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं।

क्यों होता है अधिक मास

Purushottam Month 2023
Purushottam Month

हिंदू धर्म शास्त्रों और वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार, हिंदू पंचांग के हर साल में एक चंद्र वर्ष और एक सूर्य वर्ष के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। हर तीन साल में यह अंतर 33 दिनों का हो जाता है। तीन साल में चंद्र वर्ष के अधिक हुए 33 दिनों को चंद्र वर्ष में जोड़ दिया जाता है। जिसके कारण हर तीसरे साल में या 28 महीनों के बाद और 36 महीने से पहले एक अधिक मास माना जाता है। तीसरे साल में एक अधिक मास जोड़ने से तिथियों का निर्धारण सही तरीके से हो जाता है और काल चक्र की गणना में असंतुलन उत्पन्न नहीं होता।

विष्णु जी से जुड़ा है पुरुषोत्तम महीने का इतिहास

Purushottam Month 2023
History of Purushottam Month

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, साल के 12 महीने सूर्य अपनी 12 राशियों में प्रवेश करते हैं। जिस वर्ष में अधिक मास होता है तो उस अधिक मास में सूर्य किसी भी राशि में प्रवेश नहीं करते। चंद्रवर्ष और सूर्य वर्ष में दिनों के अंतर के कारण यह अधिक मास अलग रह जाता है। अधिक मास होने और सूर्य के प्रवेश के अभाव में इस मास को मलिन नाम दिया गया। साल के सभी महीनों के स्वामी कोई न कोई देवता है। अधिक मास होने और मलिन होने के कारण कोई भी देवता अधिक मास का स्वामी बनाने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में ऋषि मुनियों ने विष्णु जी से अधिक मास का स्वामी बनकर अधिक मास को पवित्र बनाने की प्रार्थना की। विष्णु जी ने ऋषि मुनियों की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और अधिक मास को अपना पुरुषोत्तम नाम दिया। विष्णु जी के आशीर्वाद से अधिक मास को मलमास होने के साथ साथ पुरुषोत्तम का महीना होने का वरदान भी प्राप्त हुआ। तभी से अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाने लगा।

विष्णु जी मिले वरदान के कारण मलमास, धर्म कर्म. दान पुण्य और सेवा धर्म जैस कार्यों के लिए बहुत ही श्रेष्ठ मास बन गया। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से पुरुषोत्तम महीने में विष्णु जी की आराधना करता है उसे भगवान के चरणों में स्थान मिलता है। सनातन संस्कृति की मान्यता है कि पुरुषोत्तम के महीने में किसी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। अधिक मास में किए जाने वाले दान पुण्य का फल भी अधिक मिलता है।

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