Kids Counseling: बच्चों में ज़िद का होना उनके विकास के दौरान होने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है। ज्यादातर बच्चे कम या ज्यादा अपने बचपन में ज़िद करते हैं। ज़िद के जरिए बच्चे अपने आप को प्रदर्शित करते हैं। अपनी बात को समझाने की कोशिश करते हैं तथा अटेंशन पाने के लिए भी बच्चे ज़िद का सहारा लेते हैं। लेकिन कई बार बच्चों की ज़िद बहुत अधिक बढ़ जाती है, जो उनके मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे का ज़िद करना नॉर्मल से ज्यादा है, जिससे उसका विकास प्रभावित हो रहा है तो आपको सतर्क होने की जरूरत है। आज इस लेख में बच्चों की ज़िद के उन संकेतों के बारे में बात करेंगे, जिसके नजर आने पर आपको बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर या काउंसलर से मिलना चाहिए।
किस अवस्था में डॉक्टर या काउंसलर से मिलें
जरूर से ज्यादा आक्रमक: अगर आपका बच्चा बार-बार गुस्सा करता है तथा गुस्से में खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। ज़िद के कारण अगर आपका बच्चा जानबूझ कर बहुत ज्यादा चीज तोड़ता है या दूसरों के साथ मारपीट करता है या छोटी-छोटी बातों पर तेज चिल्लाता है और हाथ पर चलता है। अगर आपके बच्चे में इस तरह के संकेत है तो सतर्क हो जाए उन्हें आपके प्यार और देखभाल की बहुत जरूरत है।
लंबे समय तक ज़िद करना: अगर आपका बच्चा लंबे समय तक छोटी-छोटी बातों को लेकर ज़िद करता है। समझाने के बाद भी समझता नहीं है। अपनी बात मनवाने के लिए रोता है, चिल्लाता है तथा लंबे समय तक गुस्सा रहता है तो यह दिक्कत की बात है। ऐसी अवस्था में आपको डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।
नींद और भूख से जुड़ी समस्या: अगर आपका बच्चा बहुत ज्यादा अकेले में लेटे रहता है या सोता है तथा रात को नींद में बार-बार डर कर उठ जाता है, तो यह परेशानी की बात है। अगर अचानक से बच्चा खाने-पीने से मन करता है या कम खाता है तो यह भी बच्चों के लिए एक खतरे का सिंबल है।

लगातार उदास, चिंतित तथा डरा हुआ रहना: अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा बहुत ज्यादा उदास तथा चिंतित रहने लगा है तथा वह हर समय डरा हुआ महसूस करता है तो आपको काउंसलर से संपर्क करना चाहिए।
इस स्थिति में माता-पिता क्या करें
माता-पिता याद रखें, आप अपने बच्चों के सबसे पहले दोस्त, साथी, गुरु हैं। यहां तक कि आप अपने बच्चों के पहले काउंसलर भी हैं। अगर आपको अपने बच्चों के अंदर यह सभी सिम्टम्स नजर आते हैं तो घबराएं नहीं। धैर्य से काम लें। अपने बच्चों की स्थिति को समझने की कोशिश करें। आप अपने बच्चों को समय दें, बातचीत करें, उनके साथ सकारात्मक व्यवहार करें। अगर जरूरत पड़े तो अपने परिवार के सदस्यों की तथा बच्चों के शिक्षक की मदद लें। अगर फिर भी आपको लगता है कि आपके बच्चे के व्यवहार में सुधार नहीं आ रहा तो डॉक्टर या काउंसलर से सलाह लें।
बचपन ऐसी अवस्था है, जिसमें बच्चा सब सीखने की कोशिश में होता है। बच्चों के अंदर निर्णय की क्षमता विकसित नहीं होती है, इसलिए वह हर बात का अनुकरण करता है। उसकी समझ में सब सही है। आपका बच्चा सही बातों का अनुकरण करें, इसके लिए जरूरी है कि आप उसे एक सकारात्मक माहौल प्रदान करें।
