आधुनिक युग में जिसे विकास माना जा रहा है, वह वास्तव में विनाश का मार्ग सिद्घ हो रहा है। यह कैसा विकास है, जिसने मात्र दो दशक में ही हमें उस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि आज हम वातावरण में खुलकर न तो सांस ले सकते हैं और न ही इस भूमि से शुद्घ अन्न, जल एवं खाद्य पदार्थों को प्राप्त कर उनका ही सेवन कर पा रहे हैं। मनुष्य को यह बात समझना होगी कि विकास मात्र औद्योगिक उत्पादन और विज्ञान व तकनीक नहीं है। जब ये सब नहीं था, तब भी यह सृष्टि और मानव सभ्यता जीवित थी।
