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सोच बदलों : देश बदलो

Soch Badlo Desh Badlo: इस देश को, इस समाज को, हमारी सभ्यता और संस्कृति को बचाने का स्वच्छता के अतिरिक्त और कोई दूसरा मार्ग अब शेष नहीं रह गया है। क्या हमारी स्वचेतना पर कोई असर पड़ रहा है क्या हम इस दिशा में प्रयाप्त संवेदनशील हो रहे हैं इतने विशाल खर्चे पर होने वाले […]

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क्यों श्रेष्ठï है भारतीय संस्कृति?

Why is Indian culture the best? भारत की संस्कृति ऐसी है कि जो भी इसके सम्पर्क में आता है इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह ऌपाता। भला ऐसा क्या खास है यहां की संस्कृति में, आइए जानें इस लेख के माध्यम से। भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में एक अद्ïभुत संस्कृति है। इसमें अनेक ऐसे महत्त्वपूर्ण […]

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विनाश को आमंत्रित करता विकास

आधुनिक युग में जिसे विकास माना जा रहा है, वह वास्तव में विनाश का मार्ग सिद्घ हो रहा है। यह कैसा विकास है, जिसने मात्र दो दशक में ही हमें उस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि आज हम वातावरण में खुलकर न तो सांस ले सकते हैं और न ही इस भूमि से शुद्घ अन्न, जल एवं खाद्य पदार्थों को प्राप्त कर उनका ही सेवन कर पा रहे हैं। मनुष्य को यह बात समझना होगी कि विकास मात्र औद्योगिक उत्पादन और विज्ञान व तकनीक नहीं है। जब ये सब नहीं था, तब भी यह सृष्टि और मानव सभ्यता जीवित थी।

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सबको समान अवसर मिलना चाहिए

भारत में शुरू से ही यह मान्यता रही है कि काम वाला मनुष्य छोटा और काम न करने वाला मनुष्य बड़ा और भाग्यशाली होता है। इस प्रकार की तुच्छ मानसिकता से बाहर आये बिना समाज का कल्याण संभव नहीं है। इससे समाज में असंतोष, अलगाव और वैमनस्य उत्पन्न होता है। यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि समाज का परिश्रमी और कामगार वर्ग पीड़ित, उपेक्षित और सभी प्रकार के अवसरों से वंचित रहे। ऐसी अवस्था में भारत वैश्विक मंच पर न तो सम्मान प्राप्त कर सकता है और न ही एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित हो सकता है।

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धर्म के नाम पर अधर्म

भारतीय राजनैतिक और सामाजिक जीवन में संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए धर्म का व्यापक पैमाने पर दुरुपयोग होता रहा है। धर्म के वास्तविक और आध्यात्मिक स्वरूप को ग्रहण करने के स्थान पर उसके प्रतीकों को अपनाया जाता है। इससे समाज में अनेक प्रकार की भ्रांतियां और सामुदायिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है। इसे रोके जाने की आवश्यकता है।

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आध्यात्मिक और धार्मिक सुधार की आवश्यकता

भारत में सामाजिक, आध्यात्मिक और धार्मिक सुधार की दिशा में आवश्यक पहल नहीं हो रही है। यही कारण है कि भारतीय अध्यात्म क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या में गलत तत्त्व प्रवेश कर गए हैं।

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