शुचि को अपनी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ,मार्शल आर्ट्स सीखते देख ,जया जी ने तंज कसा तो जवाब मिला,
“आजकल अपनी सिक्यूरिटी के लिए ये सब सीखना ज़रूरी है माँ”!
“ज़रूरत क्या है घर से निकलने की? मर्दों की तरह तलवार चलाना या तलवार भाँजना ज़रूरी है क्या?”जया जी ने ठोस स्वर में कहा तो बेटी को, माँ की बात इतनी बुरी नहीं लगी जितनी पिता की चुप्पी खल गई,अगर माँ को डाँट नहीं सकते थे तो कम से कम समझा तो सकते ही थे.
बाद में पिता ने समझाया भी कि माँ के भावनात्मक व्यवहार को देखते हुए ही उन्होने चुप्पी साधी थी,पर शुचि तभी भी आश्वस्त नहीं हुई बल्कि मा़ के साथ पिता को भी दुश्मन समझ बैठी.
मां और बच्चों के यह संवाद हर घर में देखे जा सकते हैं। अधिकतर माओं को कहते हुए भी सुना है कि ,”हमने तो कभी अपने माता-पिता को कोई जवाब नहीं दिया। आंखों के इशारों से समझ जाते थे” और यह कहकर वह बच्चे को डराना चाहतीं हैं।
लेकिन वक्त बदल गया है। आपके जमाने से आज के जमाने में जमीन आसमान का फर्क है। इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखते हुए बच्चे और अपने बीच में बॉन्डिंग को मजबूत करें ना कि आपसी विवाद में पढ़कर दूरियां पैदा करें।
वैसे तो माँ का अपने हर बच्चे के साथ एक ख़ास हिस्सा होता है,लेकिन अपनी बेटी के जन्म के बाद से ही माँ उसमें ख़ुद अपनी परछाईं देखने लगती है.वो कैसे पढ़ती थी,सीती,पिरोती,खाना पकाती थी.बड़ों का आदर सत्कार ,सेवा सुश्रुषा करती थी. वग़ैरह वग़ैरह.
“ज़माना बदल गया उसी के साथ,रहन सहन का स्तर ,तौर तरीक़े ,लोगों की सोच,यहाँ तक कि जीवन के मूल्य भी बदल गए हैं”। जैसी बातों की तरफ़ कुछ माँओं का ध्यान ही नहीं जाता या फिर वो ध्यान देने की कोशिश नहीं करतीं ,और फिर शुरू हो जाता है माँ और बेटी के बीच शुरू में वादविवाद,फिर अनबन,यहाँ तक अबोले का सिलसिला.यदि थोड़ा बहुत मनमुटाव हो तो ,परेशानी की बात नहीं लेकिन जब ये सिलसिला लम्बा खिंच जाता है तो,माँ बेटी का ये प्यारा रिश्ता टूटने के कगार तक पहुँच जाता है.
इस रिश्ते को ख़ास कैसे बनाया जाए?
1-पहला क़दम ख़ुद बढ़ाएँ-माँ बेटी के स्पेशल रिश्ते से दूरियों की दीवार गिराने के लिए कभी भी एक दूसरे की पहल का इंतज़ार नहीं करना चाहिए,बल्कि यह सोचें कि हमने कहाँ और ऐसी कौन सी ग़ल्ती की जिससे रिश्ते में ग़लतफ़हमी पैदा हो गयी?
2-अपने आप को बदलें-अक्सर लोग अपनी की गई ग़ल्ती का ठीकरा भी दूसरों पर डाल देते हैं,लेकिन कभी भी इस सोच से किसी भी रिश्ते में सुधार नहीं लाया जा सकता.
3-कभी भी बातचीत बंद न करें- खुलकर आपस में,बातचीत करें क्योंकि इसी से एक दूसरे के नज़रिए को समझा जा सकता है.”ज़माना बदल गया” या “सभी यही कर रहें हैं” जैसी जड़ विचारधारा से ,रिश्तों में,दरार को खाई बनते देर नहीं लगेगी.
4-दूसरों को ध्यान से सुनें-सिर्फ़ अपनी अपनी ही न कहें.सबसे पहले सामनेवाले (चाहे माँ हो या बेटी) की सुनें.इसी से आप अपना पक्ष अच्छे से दूसरे को समझा पाएँगे.
5-संतुलित व्यक्तित्व और निकटता-किसी भी रिश्ते में परेशानी तब आती है जब हम उस रिश्ते को अपने तौर तरीक़े के अनुरूप ढालने की कोशिश करते हैं.काश जया जी ने समझने की कोशिश की होती की, “समयकी माँग को देखते हुए अगर शुचि मार्शल आर्ट सीख रही है तो कोई ग़लत काम नहीं कर रही?
“हम अक्सर ये भूल जाते हैं कि हर शख़्स का अपना व्यक्तित्व होता है. इसी तरह शुचि को भी समझना चाहिए था कि मॉ ने दुनिया देखी है. अगर वो उसे कुछ कह रही हैं तो इसमें उसकी भलाई है.फिर चाहे उदाहरण देकर वो अपनी माँ को समझा भी सकती थी.
यह भी पढ़ें-
आप अपने माता-पिता को पर्याप्त प्यार नहीं करने के लिए दोषी महसूस करते हैं
