नोएडा की रहने वाली मिसेज कपूर आज किटी पार्टी में अपनी सहेलियों से शिकायत कर रही थी कि उनका 8 साल का बेटा शौर्य पूरा दिन मोबाइल पर गेम खेलता रहता है या फिर यू-ट्यूब पर वीडियो देखता रहता है। कितना भी मना करो, मानता ही नहीं है। खाना भी मोबाईल में कार्टून देखते-देखते ही खाता है। यदि मोबाइल छिपा दो तो रो-रोकर बुरा हाल कर लेता है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर अपने बच्चे को मोबाईल से कैसे दूर रखें। मिसेज कपूर ने जो समस्या अपने बच्चे के बारे में बताई, वही समस्या आजकल लगभग हर मां-बाप के साथ है। तकनीक के इस युग में बड़ों से लेकर बच्चों तक में मोबाईल, लैपटॉप, टैब व अन्य गैजेट्स की लत बढ़ती जा रही है। बच्चे तो इस कदर स्मार्टफोन, वीडियो गेम्स के आदी होते जा रहे हैं कि उनकी यह लत छुड़ाने के लिए बाकायदा मनोचिकित्सक के पास ले जाया जा रहा है। सबसे अजीब बात ये होती है कि अभिभावकों को इस बात का एहसास ही नहीं हो पाता है कि उनका बच्चा गैजेट्स का आदी होता जा रहा है। 

जानें गैजेट्स की लत के कारण और उसके दुष्प्रभाव 

पटना की जानी-मानी मनोचिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह के अनुसार, जब हम किसी भी चीज का इस्तेमाल 24 घंटे करने लगते हैं तो वह एक आदत बन जाती है और व्यक्ति उसके बिना रह नहीं पाता है। ठीक इसी तरह जब बच्चे मोबाइल, सेलफोन, टैबलेट और स्मार्टफोन जैसे गैजे्टस का इस्तेमाल दिन भर करने लगते हैं और उसके बिना उनका मन किसी दूसरे काम में ना लगे तो समझ जाएं कि आपके बच्चे को गैजट्स की लत लग चुकी है। आज के समय का यह एक बहुत बड़ा सच है कि, तकनीक ने एक तरफ हमारे जीवन को बहुत  आसान बना दिया है, वहीं वह दूसरी तरफ लोगों को अपना गुलाम भी बना चुकी है। खासतौर से बच्चे तो इन गैजेट्स की लत का बड़ी तेजी से शिकार हो रहे हैं। इसकी लत कोई और नहीं, अनजाने में उनके अभिभावक ही लगाते हैं। 

अभिभावक बच्चे को व्यस्त रखने के मकसद से बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन पकड़ा देते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा जितनी देर व्यस्त रहेगा, वे अपना कुछ काम निपटा लेंगे या फिर आराम कर लेंगे। फिर बाद में होता ये है कि बच्चों की दुुनिया इन्हीं गैजेट्स तक सीमित हो जाती है। 

गैजेट्स की लत से होने वाले नुकसान

डॉ. बिंदा सिंह के अनुसार, जब बच्चे गैजेट्स के आदी हो जाते हैं तो वे उनसे किसी भी कीमत पर दूर नहीं रहना चाहते हैं। उन्हें छोड़कर ना तो बाहर जाकर अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलना पसंद करते हैं और ना ही अपने घर में किसी से बात करना चाहते हैं। बस उन्हें तो सोते-जागते वीडियो गेम खेलना, सोशल मीडिया पर आभासी दुनिया में व्यस्त रहने में ही मजा आता है। गैजेट्स एडिक्शन का प्रभाव छोटे बच्चों पर बड़ों की तुलना में 4-5  गुना अधिक तेजी से होता है और उनके स्वाभाविक विकास में कई प्रकार की दिक्कतें पैदा करता है।

गैजेट्स की लत लगने से बच्चों का विकास, व्यवहार और उनकी सीखने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है। उनमें एकाग्रता की कमी होने लगती है। वे किसी भी काम में अपना पूरा ध्यान नहीं लगा पाते हैं। 

एकाग्रता की कमी के चलते वे ठीक से पढ़ाई में अपना ध्यान नहीं लगा पाते हैं, जिसके चलते एग्जाम के टाइम में उन्हें सिरदर्द, चक्कर व घबराहट होने लगती है, जिसे मेडिकल भाषा में ‘पैनिक अटैक’ कहते हैं। ऐसी हालत देखकर अभिभावक समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर बच्चे को अचानक हुआ क्या है। 

पढ़ाई के नाम पर देर रात तक बच्चे मोबाइल या लैपटॉप पर कुछ ना कुछ करते रहते हैं। अभिभावक ये सोचकर खुश होते हैं कि उनका बच्चा बड़ी मेहनत से पढ़ाई कर रहा है। देर रात तक जागने का असर यह होता है कि बच्चों की सुबह नींद नहीं खुलती है और उन्हें जबर्दस्ती उठाना पड़ता है। नींद पूरी नहीं होने का असर उनके पूरे दिन पर पड़ता है। वे हमेशा थका-थका  महसूस करते हैं। 

आजकल सस्ते स्मार्टफोन और सस्ते इंटरनेट ने गैजेट्स के इस्तेमाल की आदत को और भी ज्यादा बढ़ा दिया है। बच्चे वे चीजें भी देख रहे हैं, जो उन्हें नहीं देखनी चाहिए। इसका बुरा असर उनके दिमाग पर पड़ता है, लेकिन अधिकतर मां-बाप इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं कि उनका बच्चा स्मार्टफोन पर क्या कर रहा है।

दिनभर एक कमरे में बैठकर गैजेट्स पर चिपके रहने से दिमाग में एक हार्मोन निकलता है, जिससे बच्चे में चिड़चिड़ापन विकसित हो जाता है और जब भी कोई उनसे बात करना चाहता है तो हमेशा गुस्से में जवाब देते हैं। उसके अंदर हिंसा उत्पन्न होने लगती है। 

कैसे बचाएं गैजेट्स की लत से

मनोचिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह बताती हैं कि यदि मां-बाप ये चाहते हैं कि उनके बच्चे इन गैजेट्स से दूर रहें तो उन्हें सबसे पहले खुद को इन गैजेट्स से दूर रखना चाहिए। पहले वे सेल्फ कंट्रोल करे, ताकि बच्चों को समझा सकें कि गैजेट्स का इस्तेमाल करना उनके लिए ठीक à¤¨à¤¹à¥€à¤‚ है।

अभिभावक, बच्चों को शुरू से ही स्मार्टफोन, टैब व लैपटॉप इत्यादि ना दें। चाहे बच्चा कितनी भी जिद क्यों ना करे। आप बच्चों को पहले से गैजेट्स से दूर रखेंगे तो उनमें गैजेट्स की लत लगेगी ही नहीं। 

अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ समय बिताएं। उनके साथ बैठकर टीवी देखें। उन्हें खुद शाम को पार्क में लेकर जाएं। खुली हवा में खेलने-कूदने से उनका शारीरिक व मानसिक विकास भी सही तरीके से होगा, जिससे बच्चे का मन एकाग्र होगा और वह पढ़ाई भी ठीक से कर पायेगा। 

यदि अभिभावकों को बच्चों को पढ़ाई के लिए लैपटॉप-कम्प्यूटर देना भी पड़े तो घर में उन्हें ऐसी जगह रखें, जहां आपकी नजर उसकी स्क्रीन में रह सके, यानी बच्चे à¤²à¥ˆà¤ªà¤Ÿà¥‰à¤ª पर क्या कर रहे हैं, आप आसानी à¤¸à¥‡ देख सकें। 

गैजेट्स इस्तेमाल करने का एक निश्चित समय रखें। देर रात तक बच्चों को गैजेट्स इस्तेमाल करने पर पूरी तरह पाबंदी रखें। 

खाली समय में बच्चों को गैजेट्स देने की बजाय अभिभावक उन्हें स्टोरी बुक लाकर दें। उन्हें किताबे पढ़ने के लिए प्रेरित करें। 

इन्हीं सब बातों को अभिभावक यदि ध्यान में रखेंगे और बच्चों के साथ समय बिताकर उन्हें प्यार से हैंडल करेंगे तो आपके बच्चों को गैजेट्स की बुरी लत नहीं लगेगी।

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