‘‘स्कूल जाने तक तो मुझे पता होता था कि उसे क्या चाहिए, चाहे मैं उससे सहमत नहीं भी होती थी लेकिन अब तो समझ ही नहीं आता कि उसे क्या चाहिए। उसे मेंरा दिया खाना नहीं भाता और जो वह खाना चाहती है, वह मेरे पल्ले नहीं पड़ता। लगता है मानो वह किसी दूसरे ग्रह की भाषा बोलने लगी है मैं तो तंग आ गई हूं । ” पूनम की मां ने तो हाथ खड़े कर दिये कि उसे समझ नहीं आता कि उसकी बेटी क्या खाना चाहती है और क्यों खाना चाहती है? 

वैसे तो ग्यारह साल की उम्र के बाद के बच्चों को संभालना काफी चुनौतीपूर्ण होता है, बच्चों के लिए भी ये दौर काफी मुश्किल होता है। उनके खानपान की आदतों से भी यही झलकता है। उनके लिए क्या अच्छा है, वे स्लिम कैसे दिखेगें और दोस्तों में कूल कैसे दिखेंगें, वे इन्हीं बातों के बीच उलझ कर रह जाते हैं। अब ऐेसे में माता-पिता क्या करें, तो सही सलाह ये है कि खाने की योजना बनाने से पहले, आप इन बातों पर ध्यान दें।

1. स्वयं से पूछें

क्या आपका गुस्सा जायज़ है? आप अपनी किशोरवस्था में यही सब नहीं करते थे? हो सकता है कि आपने ऐसी चीजें न मांगी हो लेकिन बगावत का रवैया तो यही था। यदि हां, तो निश्चित रहें, बच्चा आपके ही नक्शेकदमों पर हैं। वह भी वक्त के साथ खान-पान की स्वस्थ आदतें अपना लेगा।

2. बच्चे की पसंद

नापसंद को सम्मान दें। चाहे आपको उसकी पसंद अटपटी ही क्यों न लगे पर समय-समय पर उसे कहें कि उसकी पसंद काफी अच्छी है। उसके लिए फैसले न लें। उसे विकल्प दें लेकिन आखिरी फैसला भी उसके ही हाथ में हो। बिना किसी दबाव या सुधार के, फैसला तो उसे खुद ही लेने दें। 

 

3. यह भी याद रखें 

अब दोस्तों के बीच चमकने व उनसे प्रतियोगिता रखने की उसकी भावना भी काफी प्रबल होगी। बच्चा अपने दोस्तों में नीचा ना दिखाने के लिए किसी हद तक भी जा सकता है, यहां तक कि आपसे खुले आम बहस भी कर सकता है। ध्यान रखें कि आपकी हर चीज़ खाने की जिद के कारण उसे दोस्तों के बीच खिल्ली न उड़वानी पड़ें। माना आपके बेेटे के बर्गर से ज्यादा पौष्टिक है, आपका परांठा, लेकिन हर बार वही देने की जिद न करें। आपको उसके स्तर का भी ध्यान रखना होगा। वह कभी नहीं चाहेगा कि दोस्त उसे हल्के स्तर का समझें। खान-पान की आदतों के कारण उसे नहीं आएगा।

4.बात का मान रखें

वहीं दूसरी ओर, उसकी बात का मान रखने का मतलब यह नहीं कि आप अपना हक छोड़ दें। कभी-कभी आपको उसकी जिद तोड़नी भी होगी,खासतौर पर जब कुछ चीजें उसकी सेहत के लिए काफी नुकसान दायक हो। जैसे जब वो कोला के सिवा कुछ लेना ही न चाहे। उसकी पसंद का मान करें लेकिन अपना अधिकार न छोड़े । घबराएं नहीं, वह जो कुछ भी खाता है, उसमें सुधार हो सकता है। जरा शांत रहें, हड़बड़ाहट या डर न जताएं। इससे आसमान नहीं टूटने वाला क्योंकि ये हर दूसरे घर की कहानी है। ठंडा पानी पीएं, लंबी सांस लें, फिर बच्चे से उसकी खानपान की इन आदतों पर चर्चा करें। उसे खानपान की आदतों के कारण मोटा भैंसा या ‘कामभगोड़ा’ जैसे नाम भी न दें।

5. बच्चों को ब्लैकमेल न करें

रो कर, धमका कर या खुद को चोट पहुंचाकर उसे इमोशनली ब्लैकमेल न करें। वह बात न माने तो सुविधाएं न रोकें, जैसे उसकी जबखर्ची न देना। बाइक की चाबी रख लेना, इससे तो उसकी बगावत और भी बढ़ जाएगी। घर के बने खाने से उसका मन पूरी तरह से हट जाएगा।

 

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