Parenting tips : बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए संयुक्त परिवार अच्छा है या फिर एकल परिवार 

Parenting tips : बच्चों की परवरिश एक बेहद संजीदा विषय है, जिसे लेकर हर कोई चिंतित तो नजर आता है, मगर जिम्मेदारी लेने से कतराता है। अगर हम संयुक्त परिवार की बात करते हैं, तो उसमें पांच से लेकर दस सदस्य तक एक साथ रहते है, मगर सभी अपने अपने कामों में व्यस्त होते हैं। अगर माता-पिता वर्किंग है, तो बच्चों की देखरेख एक बड़ा विषय बन जता है। फिर चाहे वो संयुक्त परिवार हो या एकल। आइए जानते हैं एकल और संयुक्त परिवार के कुछ फायदे और नुकसान :

बच्चों के इर्द गिर्द बसती है दुनिया

एकल परिवार में माता-पिता दोनों की दुनिया केवल बच्चे ही होते हैं। उनके खाने से लेकर उनके सोने तक हर चीज का बारीकी से ख्याल रखा जाता है। उनके सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सभी काम नियम से होते हैं। मगर वहीं संयुक्त परिवारों में बच्चों की परवरिश भली प्रकार से नहीं हो पाती है। मां हर वक्त घर के कामों में उलझी रहती है और बाकी सदस्य भी बच्चों को संभालने की बजाय अलग-अलग कार्यों में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में बच्चे की सम्पूर्ण देखभाल नहीं हो पाती है। नतीजतन बच्चे रोते बिलखते नजर आते हैं।

हर सुख सुविधा की जाती है प्रदान

बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके खेलने तक माता-पिता हर चीज के लिए सतर्क रहते हैं। इसके अलावा बाकी एक्टिविटिज के लिए भी बच्चों की तैयारी करवाते हैं। फिर चाहे स्विमिंग क्लास हो, म्यूजिक क्लास हो या पेंटिंग, बच्चों के स्किल्स को बढ़ाने के लिए भी माता-पिता प्रयासरत रहते हैं। जो संयुक्त परिवारों में संभव नहीं हो पाता है।

पढ़ाई पर पड़ता है असर

अगर हम संयुक्त परिवार में रहते हैं, तो बच्चों को नियम से पढ़ाई करवाई जाती है। मगर संयुक्त परिवारों में अक्सर महमानों का तांता लगा रहता है, जिससे हर वक्त रहने वाले शोरगुल में बच्चों को एकाग्रता प्राप्त नहीं होती है। नतीजतन बच्चों का मन पढ़ाई में न लगना। वहीं एकल परिवारों में बच्चों को पढ़ाई के लिए पूरा समय मिलता है। वे एक क्रम के हिसाब से पढ़ते भी है और खेलते भी है, जिससे उनका मानसिक विकास होता चला जाता है।

बच्चों के साथ वक्त बिताना है संभव

अगर आप एकल परिवार में है, तो आप बच्चों को समय-समय पर आउटिंग पर ले जा सकते हैं। उनकी रूचि के हिसाब से उन्हें घुमा सकते है। उनके साथ पार्क जा सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा समय बिता सकते हैं। इससे माता-पिता और बच्चों का रिश्ता मजबूत होता चला जाता है। वहीं संयुक्त परिवारों में परिवार के बाकी सदस्यों की देखभाल के चक्कर में बच्चों के साथ माताएं अक्सर समय नहीं बिता पाती, जिसके चलते बच्चों और माता-पिता के मध्य एक कम्यूनिकेशन गैप बढ़ता चला जाता है।

बच्चों की पैरवी के लिए कई लोग मौजूद

जहां बच्चों में पनपने वाली बुरी आदतों का ठीकरा माता-पिता के सिर पर फोड़ दिया जाता है, तो वहीं अच्छी आदत के लिए परिवार के अन्य सदस्य खुद को सहयोगी बताते हैं। साथ ही अगर माता पिता बच्चे को गलती के लिए डांट भी दें, तो वहीं अन्य सदस्य बच्चों को गलती का एहसास करवाने की बजाय उनके सपोर्ट में खड़े हुए नजर आते हैं। जो बच्चों के व्यवहार को खराब करता है।  

बच्चों को होती है रिश्तों की समझ

जब बच्चे अपने दादा-दादी और नाना-नानी के साथ रहते हैं, तो वो रिश्ते नातों से न केवल जुड़ते हैं बल्कि उन्हें समझने भी लगते है, जो एकल परिवारों में संभव नहीं हो पाता। बच्चा मान सम्मान और अनादर के बीच का फर्क समझने लगता है। वे जानता है कि किस व्यक्ति से कैसा व्यवहार करना है। इन सब चीजों की समझ खुद-ब-खुद बच्चों के अंदर आने लगती है। 

हर चीज़ को दूसरों में बांटना सीख जाते है

एकल परिवारों में बच्चे केवल मेरा शब्द से वाकिफ होते है। मगर वहीं संयुक्त परिवारों में बच्चे हर काम और हर चीज को हमारा कहकर संबोधित करते हैं। इससे बच्चे में अपनापन, एकता और अखण्डता की भावना पैदा होती है। जो उसमें अच्छे संस्कार भरने के लिए जरूरी है। वहीं एकल परिवारों में बच्चे हर चीज को अपना मानते हैं और अगर माता-पिता का एक ही बच्चा है तो वे शेयरिंग कभी सीख नहीं पाता है।

कुसंगत में नहीं घिरते

एकल परिवारों में अक्सर माता-पिता वर्किंग होते है, जिससे बच्चे स्कूल से आने के बाद घर में अकेले रहते है। अब इस दौरान बच्चा किसी कुसंगत का शिकार हो सकता है और किसी भी बुरी आदत को अपना सकता है। मगर वहीं संयुक्त परिवारों में अगर माता-पिता कामकाजी भी हों, तब भी बच्चे की पूरी निगरानी रहती है। उसके कहीं भी आने जाने से लेकर खाने-पीने तक का पूरा ख्याल रखा जाता है।

दूसरों से आसानी से घुल मिल जाते हैं

अब अगर बच्चा पूरे परिवार के साथ रहेगा, तो वो आसानी से किसी भी माहौल में जाकर घुल-मिल जाएगा। मगर वहीं बच्चा अगर अकेला रहने लगेगा, तो उसे दूसरों से सम्पर्क साधने और एडजस्ट होने में वक्त लगता है। अकेले रहते हुए वो दूसरों के व्यवहार को आसानी से अपना नहीं पाता है, जो आगे चलकर जिंदगी में परेशानी का कारण भी बनता है।

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