अनजाने में हम बच्चों के सामने तो नहीं कर रहे ये गलतियां: Parenting Mistakes Impact
Parenting Mistakes Impact

Parenting Mistakes Impact: हम पेरेंट्स चाहते हैं कि हमारे बच्चे जब बड़े हों तो एक बेहतरीन इंसान के तौर पर सामने आएं। वैसे भी एक इंसान कैसे चलता है उठता है बैठता है दूसरों के साथ उसका किस तरह का व्यवहार है यह बहुत हद तक मां-बाप की परवरिश का एक आइना होता है। लेकिन कई बार मां-बाप अनजाने में ही सही कुछ गलतियां कर जाते हैं जो बच्चे के दिमाग में रेसिस्म को बढ़ावा देती है। तो चलिए जानते हैं हमारी नजर में कुछ साधारण से बोले जाने वाले कमेंट जो बच्चे के दिमाग में घर कर जाते हैं और कहीं न कहीं बच्चे उन्हें दोहराने लगते हैं।

चाय पीने से काले हो जाते हैं

उफ्फ…. इस वाक्य में तो आपने हर घर में कहीं न कहीं सुना ही होगा। कि चाय पीने से काले हो जाते हैं और दूध पीने से दूध की तरह हो जाते हैं। चाय नुकसान करती है या दूध फायदा करता है। इस बात पर फिलहाल चर्चा नहीं कर रहे। बात इस बात की है बच्चे को दूध पीने के लिए क्या हम कुछ और बात नहीं कह सकते। हो सकता है कि हमारा बच्चा दूध पी ले और उसकी सेहत अच्छी बनी रहे। लेकिन उसके दिमाग की सेहत का क्या होगा? बरसों से जो हमारे दिमाग में रंगभेद है हम पीढ़ी दर पीढ़ी उसे बढ़ाते जा रहे हैं। साइंटिफिक तौर पर भी आप देखें तो दूध का काले और गोरे से कोई लेना-देना नहीं। बल्कि सच है कि हिंदुस्तानी हमेशा से दूध पीते आए थे और गोरों यानी अंग्रेजों ने उन्हें चाय का जायका दिया है। इसलिए अपने दिमाग से भी इस बात को मिटा दें कि चाय पीने से काले होते हैं।

पकौड़े जैसी नाक

भाई हम हिंदुतानी लोग नाक को लेकर कुछ ज्यादा ही सचेत रहते हैं। इसके अलावा नाक की पकौड़े के साथ उपमा तो हम दे ही देते हैं। यहां तक कि आपको हैरानी होगी कि अगर एक नए पैदा हुए बच्चे की नाक चौड़ी होती है तो दूसरे अनुभवी महिलाएं आकर नई मां को सलाह देती हैं कि नाक के आस-पास मालिश कर उसे शेप दे। ऐसा करना बच्चे के लिए कितना हानिकारक है यह तो आप सोच भी नहीं सकते लेकिन बच्चा जब पकौड़े जैसी नाक को बार-बार सुनता है तो वह इस पाठ को अपने दिमाग में बैठाकर उसे याद कर लेता है। बाद में वो भी चौड़ी नाक को पकौड़े से ही जोड़ने लगता है।

पर्सनालिटी के हिसाब से नामकरण

Name Mistake
Name Mistake

अगर कोई लंबा होता है तो उसे लंबू बोल दिया जाता है जिसकी हाइट कम हो तो उसे ठिंगू कहने में बहुत लोगों को हिचक नहीं होती। कई बार हम बच्चे को ही कह रहे होते हैं वो सामने वाली मोटी आंटी के यहां फलां चीज दे आओ। या किसी के घर में अगर लोग सभी लोग नजर के चश्में लगाते हों तो हम उसे चश्मिश फैमिली का नाम दे देते हैं।

क्यों कर रहे हैं ऐसा

कभी सोचा है कि इस तरह के रेसिज्म को बढ़ाने से क्या होगा। आप बच्चे को यह क्यों नहीं बता पाते कि ऊपर वाले ने हम सभी को बनाया है। हम सब अपने रूप-रंग से परे बहुत सुंदर हैं। काले का अपना जादू है गोरे की अपनी चमक है। साइंस चांद पर जीवन को तलाश करने में है और हम चांद की सुंदरता के जादू से ही आगे नहीं आ पा रहे। हम विकसित हो रहे हैं रेसिज्म से परे एक जीवन के लिए खुद को और अपने बच्चों को तैयार करें।

उपमाओं से बच्चों को रखें दूर

मुझे याद है जब 90 के दौर में कटे हुए बालों वाली महिलाओं को परकटी कहा जाता था। इसका मतलब हम समझते थे कि वो एक महिला है जिसने अपने बालों की चोटी नहीं गूंथी वो बालों को खुला और छोटा रखती है। लेकिन शुक्र है कि आज यह शब्द शब्दावली से लगभग गायब हो चुका है। हम ऐसे ही दूसरी उपमाओं को भी दूर कर सकते हैं। शुरुआत अपने आप से करें। बच्चे को कुछ भी बोलने से पहले सोचें कहीं आपको कोई एक शब्द या वाक्य रेसिस्म को बढ़ावा तो नहीं दे रहा।