भगवान शिव के पांच मुखों का कारण व काम जानें
पांच मुखों की वजह से भगवान शिव को पंचानन भी कहा जाता है। इन पांचों मुखों के अलग- अलग नाम व काम बताए गए हैं। शिव पुराण सहित कई ग्रंथों में इसका जिक्र है।
Panchmukhi Mahadev: भगवान शिव को पंचानन भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है पांच मुख वाले। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के इन पांच मुखों में से चार मुख चारों दिशाओं में है। जिनके बीच में पांचवा मुख्य मुख है। इन पांचों मुखों के कार्य भी अलग-अलग बताए गए हैं। शिव पुराण में खुद भगवान शिव ने भगवान ब्रह्मा और विष्णु को पंच मुखों के कार्य बताए हैं। आज हम आपको उसी बारे में बताने जा रहे हैं।
पांच कार्यों के लिए पांच मुख

पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार शिव पुराण के अनुसार भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव से सृष्टि की रचना आदि पांच कार्यों के बारे में पूछा था। इस पर भगवान शिव ने उन्हें अपने कर्तव्यों के साथ पांच तरह के कार्य बताए थे। जिनमें सृष्टि यानी ब्रह्मंड की रचना, स्थिति, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह शामिल हैं। इनमें संसार की रचना को भगवान शिव ने सृष्टि या सर्ग बताया। वहीं, सृष्टि का पालन करने पर उसके स्थिर रूप को स्थिति, सृष्टि के विनाश को संहार, प्राणों के उत्क्रमण को तिरोभाव तथा इन सब से छुटकारा मिलने पर प्राप्त होने वाले मोक्ष को अनुग्रह कहा। इन पांच तरह के कार्यों को करने के लिए ही भगवान शिव ने अपने पांच अलग- अलग मुख होने की बात कही।
पांच मुखों का पंच तत्व से संबंध

पंडित जोशी के अनुसार भगवान शिव के पांच मुखों का पंच तत्व यानी भूमि, जल, अग्नि, वायु व आकाश से भी संबंध है। शिव पुराण में भगवान शिव ने बताया कि उनके पांचों कार्यो में से सृष्टि का भूमि, स्थिति का जल, संहार का अग्नि, तिरोभाव का वायु और अनुग्रह का आकाश से संबंध है। इस तरह इन पांच तत्वों का संबंध में भगवान शिव के पांच मुखों से है। इस तरह पंच तत्वों सहित पूरे ब्रह्मंड की रचना, पालन व संहार में भगवान शिव के हाथों में माना गया है।
पांच मुखों के नाम, रंग व ऊं से संबंध

भगवान शिव के पांच मुख सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान कहलाते हैं। इनमें पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक की तरह शुद्ध और विकार रहित है। उत्तर दिशा का मुख वामदेव विकारों का नाश करने वाला, दक्षिण मुख अघोर यानी निंदित कर्म को शुद्ध करने वाला, पूर्व की दिशा का तत्पुरुष मुख आत्मा में स्थिति और बीच का मुख ईशान सबके स्वामी होने का प्रतीक है। इनमें ईशान मुख दूध, तत्पुरुष पीत यानी पीला, अघोर मुख नील वर्ण, सद्योजात श्वेत और वामदेव कृष्ण वर्ण का होने की मान्यता है। शिव पुराण के अनुसार प्रणव अक्षर ऊं भी इन पांचों मुखों से ही निकला है। उत्तर मुख से ‘अ‘ कार का पश्चिम मुख से ‘उ‘कार, दक्षिण मुख से ‘म‘कार, पूर्व मुख से बिंदु और बीच के मुख से नाद प्रकट हुआ। इन पांचों के एक होने पर ऊं मंत्र अस्तित्व में आया।
भगवान विष्णु का रूप देखने की कथा

भगवान शिव के पांच मुखों के संबंध में एक कथा भी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने बहुत सुंदर किशोर रूप धारण किया तो भगवान चार मुख वाले ब्रह्मा, हजार नेत्र वाले इंद्र आदि देवताओं ने एकमुख वाले भगवान शिव के मुकाबले उस रूप का ज्यादा आनंद लिया। यह देख भगवान शिव ने भी मन में सोचा कि अनेक भी कई मुख होते तो वे भी भगवान विष्णु के किशोर रूप का अधिक दर्शन कर पाते। भगवान शिव के मन में ये संकल्प आने पर वे पंचमुखी हो गए।