Legal Marriage Process: जब दो लोग एक ही दिशा में सोचते हैं तो मान लिया जाता है कि वे सोलमेट हैं और जब दोनों विवाह के सूत्र में बंध जाते हैं तो वे जन्मों-जन्मों के साथी बन जाते हैं। लेकिन कानून की दृष्टि से इसे मान्यता देना भी उतना ही आवश्यक है।
वर्तमान समय में विवाह केवल दो परिवारों का आयोजन नहीं, बल्कि आर्थिक योजना की बड़ी चुनौती बन गई है। हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, और मध्यम वर्ग भी लाखों का बजट रखता
है। यह अनुमानित खर्च 35 से 36 लाख रुपये तक का होता है और अगर लग्जरी शादियों की बात करें तो यह 50 से 1 करोड़ के ऊपर तक चला है। यह केवल वेन्यू की लागत है, ब्राइडल वियर, मेकअप, दानदहेज और गहनों इत्यादि का खर्च अलग है। विचार कीजिए, दिल्ली, मुंबई या पंजाब जैसे
महानगरों में एक औसत विवाह का खर्च किसी माध्यम वर्गीय परिवार के कई वर्षों के राशन के बराबर हो जाता है। और फिर भी इतनी भव्यता और खर्च के बीच, ऐसे शिक्षित और समझदार जोड़े हैं
जिन्होंने आज तक अपनी शादी का औपचारिक पंजीकरण कराना जरूरी नहीं समझा।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में 20.8′ पुरुष अविवाहित थे, जो 2019 में बढ़कर 26.1′ हो गए। इसी तरह, महिलाओं का अनुपात 13.5′ से बढ़कर 19.9′ हो गया। शहरी क्षेत्रों में लगभग 70.80′ और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 99′ शादियां पंजीकृत नहीं होती हैं। पंजीकरण के बिना पति-पत्नी को अपने विवाह के अधिकार साबित करने में भी परेशानी हो सकती है। आइए आगे इस लेख में जानते हैं कि आज के समय में शादी का पंजीकरण क्यों जरूरी है।
विवाह पंजीकरण: कानूनी मान्यता और सामाजिक सुरक्षा विवाह केवल दो व्यक्तियों का व्यक्तिगत
संबंध नहीं, बल्कि समाज और कानून दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण संस्था है। भारत में विवाह पंजीकरण का उद्देश्य इस संबंध को कानूनी मान्यता देना और पति-पत्नी के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अब सभी विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य है, ताकि
बाल विवाह, बहुविवाह और धोखाधड़ी जैसी अवैध प्रथाओं पर रोक लगाई जा सके।
विवाह पंजीकरण के कानूनी प्रावधान
भारत में विवाह पंजीकरण दो प्रमुख कानूनों के तहत किया जाता है, ‘हिंदू विवाह अधिनियम, 1955’ और ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख समुदाय के विवाह पहले अधिनियम के अंतर्गत आते हैं, जबकि अंतर-धर्म या गैरहिंदू विवाहों पर दूसरा अधिनियम लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट के 2006 के निर्णय (सीमा बनाम अश्विनी कुमार) के अनुसार विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने से विवादों का निपटारा सरल होता है और महिलाओं के अधिकार सुरक्षित रहते हैं।
भारत में विवाह पंजीकरण प्रक्रिया विवाह पंजीकरण दो तरीकों से किया जा सकता है- ऑनलाइन और ऑफलाइन।
ऑनलाइन पंजीकरण
1. अब अधिकांश राज्यों में ऑनलाइन विवाह पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध है। इसके लिए अपने राज्य की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
2. विवाह पंजीकरण फॉर्म भरें और आवश्यक विवरण दर्ज करें।
3. जानकारी सत्यापित कर फॉर्म सबमिट करें।
4. सबमिशन के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय से नियुक्ति की तिथि और समय प्राप्त होगा।
5. निर्धारित दिन पर दोनों पक्ष आवश्यक दस्तावेजों और 2-3 गवाहों के साथ कार्यालय पहुंचें।
आवश्यक दस्तावेज (उदाहरण) दिल्ली
1. आयु प्रमाण: जन्म प्रमाणपत्र या 10वीं की अंकतालिका
2. पहचान प्रमाण: आधार, पैन कार्ड या पासपोर्ट
3. पता प्रमाण: मतदाता पहचान पत्र, बिजली का बिल या किरायानामा
4. विवाह फोटो या निमंत्रण पत्र
5. दोनों पक्षों की पासपोर्ट आकार की फोटो
6. गवाहों के पहचान पत्र
ऑफलाइन पंजीकरण
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955: यदि विवाह हो चुका है, तो दंपती स्थानीय उप-पंजीयक कार्यालय में जाकर पंजीकरण करा सकते हैं।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954: इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह से 30 दिन पूर्व नोटिस देना आवश्यक है। यदि इस अवधि में कोई आपत्ति नहीं आती, तो विवाह पंजीकृत कर दिया जाता है।
ऑनलाइन पंजीकरण और कोर्ट मैरिज में भिन्नता
कोर्ट मैरिज और विवाह पंजीकरण एक ही प्रक्रिया नहीं हैं। कोर्ट मैरिज विवाह की शुरुआत में कानूनी मान्यता देती है, जबकि विवाह पंजीकरण बाद में उस विवाह को वैधानिक रूप से दर्ज कराता है।
ऑनलाइन विवाह पंजीकरण
भारत के अधिकांश राज्यों में अब विवाह पंजीकरण ऑनलाइन किया जा सकता है। फॉर्म भरने और सबमिट करने की प्रक्रिया डिजिटल है, लेकिन अंतिम चरण में रजिस्ट्रार कार्यालय में दोनों पक्ष और गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।
विवाह पंजीकरण के आवश्यक कारण
विवाह पंजीकरण केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि कानूनी सुरक्षा और सामाजिक व्यवस्था के लिए आवश्यक कदम है। यह विवाह को सरकारी मान्यता देता है, जिससे पति-पत्नी के अधिकार, संपत्ति, अभिरक्षा और गुजारा भत्ते से जुड़े मामलों में प्रमाण उपलब्ध होता है। साथ ही पासपोर्ट, वीजा, बैंक खाते और बीमा जैसी प्रक्रियाओं में सहूलियत मिलती है।
कोर्ट मैरिज (विशेष विवाह अधिनियम, 1954)
1.कोर्ट मैरिज का मतलब है विवाह को कानूनी रूप से कोर्ट में संपन्न कराना। इसके लिए
आवश्यक है
2. विवाह से कम से कम 30 दिन पहले नोटिस देना नोटिस के दौरान किसी भी आपत्ति का समय निर्धारित दिन पर दोनों पक्ष और गवाहों की उपस्थिति
3. सभी औपचारिकताओं और दस्तावेजों का सत्यापन
विवाह पंजीकरण
वहीं विवाह पंजीकरण का उद्देश्य है पहले से संपन्न विवाह (धार्मिक या सामाजिक रीतिरिवाजों से) को कानूनी मान्यता दिलाना है।
विवाह पंजीकरण: अनिवार्यता और समयसीमा
अनिवार्यता: 14 फरवरी, 2006 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि विवाह पंजीकरण के नियम बनाए जाएं और सभी धर्मों पर लागू हों। इसके बाद भारत में विवाह पंजीकरण अनिवार्य हो गया।
जुर्माना: विवाह पंजीकरण में देरी पर जुर्माना लगाया जा सकता है, जो राज्यवार भिन्न होता
है। उदाहरण के लिए- दिल्ली में यदि विवाह 60 दिनों के भीतर पंजीकृत न हो, तो 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसलिए विवाह पंजीकरण समय पर कराना हमेशा बेहतर रहता है।
विवाह पंजीकरण के फायदे

कानूनी सुरक्षा: विवाह प्रमाणपत्र कानूनी दस्तावेज के रूप में मान्यता प्राप्त करता है।
अधिकारों की रक्षा: संपत्ति, गुजारा भत्ता और बच्चों की अभिरक्षा में सहायक।
सरकारी व प्रशासनिक काम में सुविधा: पासपोर्टए वीजा, बैंक खाता आदि में आवश्यक।
सामाजिक न्याय: बाल विवाह और धोखाधड़ी रोकने में मददगार।
सटीक आंकड़े: सरकार को सही जनसांख्यिकीय डेटा उपलब्ध कराता है।
(आलेख मोहिनी प्रिया, एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया) से बातचीत पर आधारित है)
