Narak Nivaran Chaturdashi
Narak Nivaran Chaturdashi

Narak Nivaran Chaturdashi: नरक निवारण चतुर्दशी व्रत… 28 जनवरी 2025, मंगलवार को किया जाएगा। यह बिहार के मिथिलांचल का एक ऐसा व्रत जो बच्चे से लेकर बूढ़े कुंवारी कन्याएं, शादी शुदा औरतें और विधवा औरतें लगभग सभी इस व्रत को करती हैं साथ ही लड़के और पुरुष भी इस दिन व्रत रखते हैं।

भगवान शिव का प्रिय दिन

चतुर्दशी भगवान शिव का प्रिय दिन है। इस दिन भोलेनाथ की पूजा करने से वो अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन देवताओं ने शिव पार्वती के विवाह का शुभ मुहूर्त तय किया था। ठीक तीस दिन बाद फागुन मास की चतुर्दशी जो शिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है उसी दिन शिव पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन विवाह के लिए लड़की लड़का देखना और विवाह का दिन तय करना शुभ माना जाता है।

एक नरक चतुर्दशी भारत के कई राज्यों में दीवाली से एक दिन पहले भी मनाया जाता है जिसमें यम का दीप जलाकर परिवार की मंगलकामना के लिए पूजा की जाती है। मिथिला में यह नरक निवारण चतुर्दशी अधिक प्रसिद्ध है। इस व्रत के लिए बच्चों में भी एक अलग जोश देखने को मिलता है। माना जाता है कि गृहस्थ आश्रम में हम सभी से जाने अनजाने कुछ पाप हो ही जाता है जिससे मुक्ति पाकर सभी स्वर्ग में ही स्थान पाना चाहते हैं। कोई नरक नहीं जाना चाहता। बस अपने पापों से मुक्ति के लिए भगवान शिव का यह व्रत ठीक उसी तरह रखते हैं जिस तरह शिवरात्रि का व्रत रखते हैं। हर वर्ष शिवरात्रि से ठीक एक महीने पहले माघ मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। जो इस बार 2025 की 28 जनवरी, मंगलवार को है।

चतुर्दशी तिथि गणना कैसे करें

चन्द्र के दोनों पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की इस तिथि को शुभ कार्यो में प्रयोग नहीं किया जाता है। सूर्य, चन्द्र से जब 157 अंश से 168 अंशों के मध्य होते है, उस समय शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी चल रही होती है तथा कृष्ण पक्ष में सूर्य से चन्द्र 337 अंश से 348अंश के मध्य स्थित होते है।चतुर्दशी तिथि के रिक्ता संज्ञक होने से दोनों पक्षों की चतुर्दशी में समस्त शुभ कार्य त्याज्य है। इसे ‘क्रूरा’ भी कहा जाता है. चतुर्दशी तिथि की दिशा पश्चिम है। चतुर्दशी की अमृतकला का पाना महादेव शिव ही पीते हैं। चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्म तिथि है।

चतुर्दशी तिथि महत्व

चतुर्दशी तिथि में भगवान शिव का पूजन व व्रत करना बेहद उत्तम माना गया है। इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है तथा उसका सर्वत्र कल्याण होता है। यह माना जाता है, कि चतुर्दशी की चन्द्र कला का अमृत भगवान शिव स्वयं पीते है इसलिए इस दिन इनका ध्यान करना शुभ होता है। इस तिथि में रात्रि जागरण और शिव मंत्र जाप कार्य भी किये जाते हैं। शिव पार्वती के भजन गीत गा कर जागरण किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का व्रत और पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। जीवन में आने वाले बुरे समय और विपत्तियों को भी यह दूर करता है।

नरक निवारण चतुर्दशी व्रत से जुड़ी खास बातें:

  • इस दिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए साफ़ कपड़े पहनने चाहिए।
  • इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, बेर, सेम, और तिल चढ़ाने चाहिए
  • शिवलिंग पर दूध दही और जल चढ़ाना चाहिए।
  • इस दिन शिव चालीसा और रुद्राष्टक का पाठ करना चाहिए।
  • शिव पुराण की कथा का पाठ करना चाहिए।
  • पूजा के बाद शिवजी की आरती अवश्य करनी चाहिए।
  • इस दिन व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए और शाम में व्रत खोलना चाहिए।
  • व्रत खोलने के लिए सबसे पहले बेर का प्रसाद खाना चाहिए।

नरक निवारण चतुर्दशी व्रत की विधि:

  • इस दिन स्नान करके साफ़ कपड़े पहनें।
  • शिवजी का अभिषेक गंगाजल, दूध, शहद, घी, और दूध से करें।
  • अक्षत, चंदन, पुष्प, पुष्प माला, दूर्वा शिवलिंग पर अर्पित करें।

व्रत क्यों किया जाना चाहिए:

वैसे तो महीने में कम से कम एक व्रत अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से हम खुद पर संयम रख पाते हैं। साफ सफाई पूजा पाठ से मन शांत रहता है। नरक निवारण चतुर्दशी का व्रत करने के पीछे तो यह मान्यता चली आई है कि हमें नरक से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन हमें दूसरों के बारे में बुरा सोचना और झूठ कपट से बचना चाहिए। भोजन पानी त्यागना ही उपवास नहीं है। उपवास तो वह है जिसमें आपके मन में दूसरों के प्रति दया भाव और उनकी भलाई के विचार वास करें।

इस वजह से खास है माघ शिवरात्रि

नरक निवारण चतुर्दशी को माघ शिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माघ मास की शिवरात्रि के दिन पार्वती माता और भगवान शिव का विवाह तय हुआ था। इस तिथि के ठीक एक महीने के बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह समपन्न हुआ था। इसलिए माघ कृष्ण चतुर्दशी जिसे नरक निवारण चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है इसका खास महत्व है। वैसे तो हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव की पूजा के लिए श्रेष्ठ है लेकिन शास्त्रों के अनुसार माघ और फाल्गुन माह की चतुर्दशी शंकर भगवान को सर्वप्रिय है। जिस कारण इन दोनों ही तिथियों को शिवरात्रि के समकक्ष ही माना जाता है। इस दिन शिव ही नहीं शिव के साथ पार्वती और गणेश की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। और नरक से मुक्ति मिलती है।

नरक द्वार करता है बंद माघ शिवरात्रि का व्रत

हिंदू धर्म के अनुसार, मृत्यु के बाद अपने कर्मों के हिसाब से स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार जहां स्वर्ग में मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है वहीं नरक में अपने बुरे कामों के फलस्वरुप कष्ट झेलने पड़ते हैं। इससे मुक्ति पाने के लिए यह तिथि विशेष है। इसलिए इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन विधि विधान से पूजा करके नरक से मुक्ति मिलती है। नरक निवारण चतुर्दशी हमें यह सिखाती है कि पवित्रता, संयम, और ईश्वर की भक्ति से जीवन के हर संकट का समाधान संभव है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति का मार्ग दिखाता है, बल्कि हमें शुद्ध और सकारात्मक जीवन जीने की प्रेरणा भी देता है। नरक निवारण चतुर्दशी का पालन कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें और जीवन को कल्याणकारी बनाएं।