Hawan Samagri: यज्ञ-हवन अपने इष्ट देवता को प्रसन्न कर उनसे अभीष्ट फल की प्राप्ति व सुख-शांति के लिए किया जाता है। परन्तु यदि इसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री अधूरी व अपवित्र होगी तो यज्ञ-हवन की सार्थकता संभव नहीं है। इसलिए यहां हम आपको बता रहे हैं हवन सामग्री तैयार करने की विधि।
किसी भी कर्मकांड, यज्ञ अथवा पूजा-अर्चना में अग्नि प्रज्जवलित करने के लिए हवन सामग्री प्रयोग में लाई जाती है। यह सामग्री यज्ञों में बड़े पैमाने पर ज्यादा मात्रा में बनाई जाती है जबकि पूजा आदि के उद्यापन में थोड़ी मात्रा में बनाई जाती है।
ऐसी मान्यता है कि इन्हीं हवन सामग्री के द्वारा देवताओं आदि की तृप्ति होती है। और जो चीज पवित्र देवताओं के लिए बनाई जाती है, अगर वो शुद्ध, पवित्र तथा विधि से न बनाई जाए तो निश्चित रूप से फलीभूत नहीं होगी।
वैसे तो हवन सामग्री में मुख्यत: दशांग काले तिल, जौ, चावल व घी को प्रमुख माना जाता है। नवरात्र पूजा के अंतिम दिन रामनवमी के उद्यापन के दिन जो हवन सामग्री होती है, उसमें ज्यादा मात्रा में दशांक और जौ तथा घी ही अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन बड़े यज्ञों में हवन सामग्री में जौ, चावल तथा काले तिल मुख्य माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार तिल की मात्रा जितनी हो उसके आधे भाग के बराबर चावल और चावल के आधे के बराबर जौ की मात्रा लेनी चाहिए। और जौ की मात्रा से आधी मात्रा शर्करा की और थोड़ी मात्रा में घी लेने के लिए कहा गया है।
लेकिन कुछ शास्त्रों के अनुसार घी चारों सामग्रियों से चौगुनी मात्रा में लेना चाहिए।
इसका एक वैज्ञानिक कारण भी है कि घी से वातावरण की शुद्धि होती है। इसका प्रमाण स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी दिया था। उन्होंने कहा था, हिन्दू की चिंता जब जलती है, तो उसमें सबसे अधिक मात्रा में घी डाला जाता है, जिससे अग्नि प्रज्जवलन में भी मुश्किल नहीं होती साथ ही साथ लकड़ी भी अच्छी तरह से जल जाती है और इससे वातावरण की शुद्धि होती है।
वस्तुगत तरीके से तिल, घी तथा शर्करा की अधिकता उत्तम मानी जाती है। तिल की अधिकता से लक्ष्मी की प्राप्ति, जौ की अधिकता से दरिद्रता की, घृत से मुक्ति तथा शर्करा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।
पांच हिस्सा तिल, तीन हिस्सा चावल, दो हिस्सा गेहूं तथा एक हिस्सा गुग्गुट आदि घी में डालकर आहुति दें। ज्यादातर गाय का घी सर्वमान्य है। अगर यह न मिले तो भैंस, बकरी या भेड़ का भी घी ले सकते हैं।
त्रिमधु (मिश्री, शहद व घी), खीर, दाख, विजौरा, नींबू, ईख नारियल तथा आम व केले के मधुर फलों से हवन करने पर सर्व सिद्धियां मिलती हैं। ये चीजें बिल्कुल शुद्ध व पवित्र होनी चाहिए क्योंकि यज्ञ में कूड़ा, करकट, कीड़े आदि जन्तुओं से युक्त हवन सामग्री अपवित्र होती है।
वैसे जितनी भी हवन सामग्रियों को प्रयोग में लाया जाता है, इन सभी को किसी अच्छे पुरोहित के पास जाकर लिखवाकर ही लें तो उचित होगा।
ऐसा करने से सामग्री भी सही व उचित दाम पर उपलब्ध होगी।
इन सामग्रियों को अगर आप सुबह के समय खरीदें तो उचित होगा।
अत: उपरोक्त बातों पर अच्छी तरीके से ध्यान रखें तो आप अच्छी हवन सामग्री तैयार कर सकते हैं और अपने आराध्य को प्रसन्न कर सकते हैं।
यज्ञ-सामग्री- अलग-अलग प्रकार के यज्ञ के लिए अलग-अलग सामग्री होती है, जिनके प्रभाव से अभीष्ट की सिद्धि एवं अनिष्ट का निवारण होता है।
शास्त्रों मे निम्न सामग्री का वर्णन मिलता है।
सतोगुण की प्राप्ति हेतु सामग्री- श्वेत चन्दन, अगर, छोटी इलायची, शंखपुष्पी, लौंग, शतावरी, ब्राह्म, खस, शीतलचीनी, आंवला, इन्द्रजौ, वंशलोचन, जावित्री, गिलोय, वच, मुलेठी, कमल केसर, बड़ की जटाएं, नारियल, बादाम, मखाने, जौ, मिश्री आदि।
रजोगुण की प्राप्ति हेतु सामग्री- देवदारु, बड़ी इलायची, केसर, छार-छवीला, पुनर्नवा, जीवन्ती, कचूर, तालीस पत्र, रास्ना, नागरमोथा, तालमखाने, मोचरस, सौंफ, चित्रक, दालचीनी, पद्माख, छुआरा, किसमिस, चावल, खांड आदि।
तमोगुण की प्राप्ति हेतु सामग्री- रक्त चन्दन, तगर, अश्वगंधा, जायफल, कमल गट्टा, नागकेसर, पीपल बड़ी, कुटकी, चिरायता, अपामार्ग, काकडासिंगी, पोहकरमूल, कुलंजन, मूसलीस्याह, मेथी के बीज, काकजंधा, भारंगी, अकरकरा, पिस्ता, अखरोट, चिरौंजी, तिल, उड़द, गुड़ आदि।
