Shagun ka Lifafa: हमारे देश की संस्कृति परम्पराओं और रीति रिवाजों पर निर्भर करती है। हर समारोह और उत्सव अनूठा है और उसमें सम्मिलित होने वाले अतिथियों का आदर सत्कार भी पूरी मान मर्यादा से साथ किया जाता है। चाहे उपहार हो यां शगुन महमानों को खाली हाथ नहीं भेजा जाता है। खासतौर से मांगलिक कार्यों पर शगुन देने की एक खास परंपरा है और उन्हें चाहे शगुन में कम पैसे दें यां ज्यादा एक रूपये का सिक्का ज़रूर लगया जाता है। मगर अब सवाल ये है कि 50ए 100ए 200 और 500 के शगुन लिफाफे पर लगने वाला एक का सिक्का किस बात का प्रतीक है। हांलाकि इस बात को लेकर कई प्रकार के तर्क दिए जाते हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसे कारण और महत्व जो इस बात की गहराई को समझाते हैं कि एक रूपये का सिक्का
शगुन के लिफाफे पर लगाना क्यों अनिवार्य है।
एक रूपये का सिक्का भले ही कोई बड़ी रकम नहीं है, मगर इसे एक शुभ संख्या के तौर पर देखा जाता है। दूसरी तरफ शून्य को अशुभ संख्या माना जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि जीरो की संख्या में दिया गया शगुन अपशगुन होता है, जिससे नज़दीकी रिश्ते टूट जाते हैं। इसी कारण लोग नेग देने के लिए लिफाफे में धनराशि के साथ एक रूपया अवश्य रखते है। इसके अलावा आजकल बाज़ार में बिकने वाले लिफाफों पर एक रूपया पहले से भी लगा रहता है, ताकि रिश्तों में अपनापन बना रहे।
यूं तो हमारा गणित शून्य के बगैर अधूरा है। मगर शून्य अंत की प्रतीक माना जाता है। यदि आप अपने रिश्तों में शून्यता नहीं लाना चाहते हैं और चाहते हैं कि वे सदैव यूं ही फलते फूलते रहें, तो शगुन में 1 रुपये का सिक्का लगाना अनिवार्य है, जिससे आने वाले अतिथिगण शून्य के पार आ जाएं और रिश्तों में प्यार बना रहे।
शगुन में लोग आजकल 101ए 501ए जैसी रकम देते हैं, जो अविभाज्य हैं। इसका अर्थ ये है कि जब हम स्नेह और आशीर्वाद के तौर पर 1 रुपये लगाकर देते हैं, तो हमारी शुभकामनाएं भी परिपूण हो जाती हैं यानि वो आपके पास बंट कर आने की बजाए पूर्ण रूप से आएंगी। इस प्रकार लिफाफे पर लगा एक रूपया प्राप्तकर्ता के लिए वरदान बन जाता है।
शगुन के लिफाफे पर चिपका हुआ 1 रुपया प्राप्तकर्ता के लिए एक वरदात मात्र होता है। इसका अर्थ ये है कि शगुन के वक्त हम ये कामना करते हैं कि जिसके पास भी ये धनराशि जाए, उसका धन और समृद्धि और बढ़े। ये एक विकास का बीज है, जो प्रियजनों के जीवन में खुशियां लेकर आता है। दरअसल, एक के सिक्के को मां लक्ष्मी का आर्शीवाद माना जाता है। ध्रनराशि के साथ एक का सिक्का देने से दान देने वाले और दान लेने वाले दोनों का सौभाग्य बढ़ता है।
लिफाफे में दिया एक रूपये का सिक्का उस कर्ज का भी प्रतीक हैजिसे चुकाने के लिए प्राप्तकर्ता को दोबारा दानदाता से मिलने के लिए मजबूर कर देता है। ये दुनियादारी की एक ऐसी मिसाल है, जो सदियों तक हमें अपने प्रियजनों के साथ प्रेम के बंधन में बांधे रखती है। दरअसल, 1 रुपये को देने का मतलब है कि प्राप्तकर्ता अब कर्जदार हो गया है और अपना कर्ज उतारने के लिए उसे दानदाता के पास जाना होगा, जिससे मेलजोड़ बढ़ता है।
दुख के मौके पर नहीं दिया जाता एक्स्ट्रा सिक्का
कोई त्योहार, उत्सव, शादी समारोह यां अन्य खुशी के पलों में जहां शगुन के लिफाफों में एक रूपया लगाकर दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर दुख की घड़ी में एक रूपये को दान में नहीं दिया जाता। दरअसल, किसी श्राद्ध, बरसी, तर्पण और तेरहवीं जैसे दुख के मौकों पर राशि को बए़ाकर देना अपशगुन माना जाता है। ताकि ये दुख की बेला फिर लौटकर न आए।