Holika Dahan 2025: होलिका दहन भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। पारंपरिक रूप से इस अनुष्ठान में लकड़ी की बजाय गोबर के उपलों (कंडों) का उपयोग किया जाता है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक और पारंपरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
क्या है धार्मिक महत्व?
पवित्रता का प्रतीक
हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना गया है और उसका गोबर अत्यंत शुद्ध माना जाता है। मान्यता है कि गोबर में सकारात्मक ऊर्जा होती है, जो वातावरण को पवित्र बनाए रखती है।
अग्नि देवता को समर्पण
होलिका दहन में अग्नि को विशेष महत्व दिया जाता है, और उपलों से जलने वाली अग्नि को शुद्ध और दिव्य माना जाता है।
धर्मग्रंथों में उल्लेख
वेदों और पुराणों में उल्लेख मिलता है कि पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में प्राकृतिक चीजों का उपयोग किया जाना चाहिए। इसलिए गोबर के उपलों का उपयोग किया जाता है।
नकारात्मकता का नाश
मान्यता है कि गोबर के उपलों से जलने वाली अग्नि बुरी शक्तियों को समाप्त करती है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देती है।
क्या है वैज्ञानिक महत्व?
पर्यावरण अनुकूलता
लकड़ी जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है, जबकि गोबर के उपलों को जलाने से कार्बन उत्सर्जन कम होता है।
कीटाणुनाशक गुण
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गोबर में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करते हैं।
मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि
गोबर जलने के बाद जो राख बचती है, वह प्राकृतिक खाद का कार्य करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
लकड़ी जलाने से हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं, लेकिन गोबर के उपलों से निकलने वाला धुआं तुलनात्मक रूप से कम हानिकारक होता है।

क्या है पारंपरिक महत्व?
पुरानी परंपरा का निर्वहन
प्राचीन काल से गाँवों में गोबर के उपलों का उपयोग विभिन्न धार्मिक कार्यों में किया जाता रहा है।
आर्थिक रूप से किफायती
लकड़ी की तुलना में उपले सस्ते और आसानी से उपलब्ध होते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव
गांवों में लोग मिलकर उपले एकत्रित करते हैं और होलिका दहन की तैयारी करते हैं, जिससे समाज में एकता और भाईचारे की भावना मजबूत होती है।
परंपरा जारी है
वृंदावन और मथुरा के मंदिरों में होली और होलिका दहन के दौरान विशेष रूप से गोबर के उपलों का उपयोग किया जाता है। उत्तर भारत के कई गाँवों में महिलाएँ गोबर से उपले बनाकर होलिका दहन के लिए एकत्रित करती हैं, जिससे न केवल धार्मिक कार्य पूरे होते हैं बल्कि आत्मनिर्भरता भी बढ़ती है। प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में गोबर को शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे इसकी उपयोगिता प्रमाणित होती है।
यूं तो बदलाव समय के साथ होता रहता है लेकिन कुछ बदलाव ज़रूरी नहीं है क्योंकि बेहतरी के लिए चलती आई परंपरा में रहस्य छुपा होता है। गोबर के उपलों से होलिका दहन करने की परंपरा केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और पारंपरिक कारण भी छिपे हैं। यह परंपरा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ समाज में एकता को भी बढ़ावा देती है। ऐसे में, आधुनिकता के दौर में भी हमें इस परंपरा को बनाए रखना चाहिए, ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर जीवंत रह सके और प्रकृति के साथ संतुलन बना रहे।
