Holika Dahan: प्राचीन काल से होली का त्योहार देश में बड़ी धूमधाम और पूरे रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस साल 17 मार्च को होलिका दहन और 18 मार्च को होली खेली जाएगी। भाई-चारे और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक यह पर्व ढ़ेर सारी मान्यताओं और प्रथाओं से पूर्ण है।
ऐसी मान्यता है कि होलिका दहन के साथ ही सभी नकारात्मक शक्तियां ध्वस्त हो जाती हैं। इस साल होलिका दहन का शुभ महूर्त 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा ज्योतिष की दृष्टि से भी इस बार होली का खास महत्व है। इस बार होली पर वृद्धि योग और अमृत योग के अलावा और भी अच्छे योग बनने जा रहे हैं। इस बार होली पर बुध, गुरू, आदित्य योग भी होली पर बनने जा रहा है, जो घर में सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
होलिका की राख का महत्व

होलिका दहन के बाद बचने वाली राख बेहद खास होती है। जो हमें कई तरह की समस्याओं से निजात दिलाने में महत्वपूण साबित होती हैं। होलिका दहन से न केवल हमारी सामाजिक समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि आर्थिक समस्याओं से मुक्त करने में भी हमारी मदद करती है। जहां कुछ लोग आर्थिक संपन्न्ता के लिए होलिका दहन की राख को अपने पर्स में रखते हैं, तो कुछ इसे लाल रंग की पोटली में बांधकर अपनी तिजोरी में भी रखते हैं।
होलिका दहन की तैयारियां

होलिका दहन के पर्व की तैयारियां कई दिन पहले से ही आरंभ हो जाती है। होलिका दहन के मौके पर कई चीजों की आवश्यता होती है, जैसे- गोबर के उपले, लकड़ियां और अन्य चीजों को एकजुट किया जाता है और मुहूर्त के वक्त जलाया जाता है। इसके अलावा होलिका दहन के मौके पर छेद वाले उपले, गेहूं की बालियां और इसमें उबटन भी डाल सकते हैं। इसके अलावा होलिका दहन के खास अवसर पर राख को माथे पर लगाने की परंपरा है।
होलिका दहन से जुड़ी कहानियां
अगर होलिका दहन से जुड़ी पौराणिक कहानियों की बात करें, तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप की कहानी बेहद प्रचलित है। इस कहानी के मुताबिक हिरण्यकश्यप अपने आप को सर्व शक्तिमान और भगवान मानने लगा था। मगर वहीं दूसरी ओर उनका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। मगर हिरण्यकश्यप अपने पुत्र की भक्ति से खुश नहीं थे। वे कई बार अपने पुत्र को ईश्वरीय भक्ति से दूर करने का प्रयास कर चुके थे, ताकि उनका पुत्र उन्हें ही अपना भगवान समझे। मगर उनके सभी प्रयास विफल साबित हुए।

इसी के चलते हिरण्यकश्यप को एक तरकीब सूझी। उन्होंने अपनी बहन होलिका को एक दिन प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। दरअसल, होलिका को एक विशेष वस्त्र धारण करके अग्नि में बैठने का वरदान प्राप्त था, जिससे उसे कोई नुकसान नही होना था। मगर अग्नि में प्रवेश करने के कुछ ही देर बाद भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद सही सलामत रहे, मगर होलिका कुछ ही देर में जल गई। इस दृश्य को देशकर हर कोई हैरान था। फाल्गुन मास की पुर्णिमा के दिन हुई इस घटना के बाद हर साल पूरे विधि विधान से होलिका दहन किया जाता है। वहीं, भगवान विष्णु ने लोगों को अत्याचार से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।
