Hindu Marriage Rituals: हिंदू धर्म में शादी में तरह-तरह के रीति रिवाज होते हैं और सबका अपना विशेष महत्व होता। विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन का वह अहम पल होता है, जिसका उसे बेसब्री से इंतजार रहता है। शादी एक पवित्र बंधन होता है। जिस बंधन को कई रिश्तों की डोर पकड़नी पड़ती हैं। यह रिश्ता सिर्फ दो व्यक्ति के बीच का नहीं होता बल्कि दो परिवारों के बीच का होता है। इसलिए शादियों में कई प्रकार की रस्में निभाई जाती है, जो दुल्हन दूल्हे के आने वाली जिंदगी को खुशहाल बनाने में मदद करती। वैसे तो शादी विवाह के दौरान ऐसी कई रस्में होती है।
हर रस्मों को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, फिर चाहें वह हल्दी, मेहंदी, जूता चुराई, या वरमाला की रस्म हो। इन रस्मों के द्वारा दुल्हन के विदा होने तक दूल्हे के काबिलियत का पता लगाया जा सकता है। आपने भी अक्सर शादियों में देखा होगा कि दूल्हा घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर आता है। साथ में एक छोटा बच्चा भी बैठा होता है जिसे सहबाला कहा जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दूल्हा सिर्फ घोड़ी पर ही क्यों बैठकर आता है वह घोड़े या गाड़ी से क्यों नहीं आता, तो आज हम आपको इस लेख के द्वारा आपके मन में उठ रहे सभी सवालों के जवाब देंगे तो चलिए जानते हैं।
वैसे तो यह रस्म हिंदू शादियों में सदियों से चली आ रही है ऐसा भी कहा जाता है की रामायण महाभारत में भी इस परंपरा का चलन रहा है। लेकिन फिर भी बहुत कम लोग ही इसके पीछे का कारण जानते हैं। जिन लोगों की शादी होने वाली है जो लोग जल्द घोड़ी पर बैठने वाले हैं उनके लिए इसके पीछे का कारण जानना बहुत जरूरी है। इसके अलावा उन लोगों के लिए भी बहुत जरूरी है जो शादी में घोड़ी की सवारी तो कर चुके हैं। लेकिन वह अभी तक इसके पीछे का महत्व नहीं समझते हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार

भारतीय संस्कृति में शादी सिर्फ एक परंपरा नहीं है उससे बढ़कर है क्योंकि यह दो लोगों का आने वाला जीवन तय करती है। दूल्हे के घोड़ी पर बैठकर आने की परंपरा को लेकर प्राचीन मान्यताओं में ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में दूल्हा विवाह के लिए जाता था। तब वह वीरता का रूप होता था। उसे युद्ध करना पड़ता था।
जब भगवान श्री कृष्ण का विवाह रुकमणी के साथ हुआ था। तब भी भगवान कृष्ण को युद्ध करना पड़ा था। युद्ध में घोड़े की एक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। घोड़े को वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता था। जैसे-जैसे समय बदला स्वयंवर में युद्ध होने की परंपराएं भी खत्म हो गई। अब आप सोच रहे होंगे कि यहां बातें तो घोड़े की हो रही है लेकिन दूल्हा तो घोड़ी पर सवार होकर आता है, तो हम आपको बता देते हैं कि घोड़ी पर दूल्हा ले जाने का कारण है कि घोड़ी को बुद्धिमान, चंचल, दक्ष जानवर का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा यह भी माना जाता हैं की जो व्यक्ति घोड़ी की बाग संभाल सकता है वह परिवार की आने वाली जिम्मेदारियों को भी बखूबी संभाल सकता है।
रामायण के अनुसार जब सीता माता का स्वयंवर हो रहा था तो वहां उपस्थित सभी राजाओं ने अपनी जी जान लगाकर प्रयास किया। लेकिन धनुष को उठाना तो दूर कोई उसे हिला तक नहीं पाया। जब वहां मौजूद भगवान श्री राम ने धनुष को तोड़ा और माता सीता को वरमाला डालने के लिए जैसे ही आगे बढ़े। सभी राजाओं ने अपनी अपनी तलवारें बाहर निकाल ली। इस दौरान वहां युद्ध की स्थिति बन गई थी। भगवान श्री राम भी उनसे युद्ध करने के लिए तत्पर हुए। तभी परशुराम जी के आगमन से सभी को ज्ञात हुआ कि भगवान श्री राम से युद्ध करना स्वयं के लिए मृत्यु को बुलावा देना है।
दूल्हा कभी घोड़े पर क्यों नहीं आता

ऐसा माना जाता है कि घोड़ा बहुत गुस्सैल स्वभाव का होता है। घोड़े को काबू में लाना बहुत मुश्किल होता है। युद्ध के दौरान या पहले के राजा महाराजा घोड़े पर इसलिए बैठा करते थे क्योंकि इसकी तेज ऊर्जा के कारण युद्ध भूमि में दुश्मनों से लड़ने के लिए यह बहुत ही शक्तिशाली होता था। आम व्यक्ति के लिए घोड़े को काबू में रख पाना बहुत मुश्किल होता है और ऐसा भी कहा जाता है की शादी के लिए शक्ति नहीं बल्कि समर्पण की आवश्यकता होती है इसलिए दूल्हा घोड़े पर नहीं घोड़ी पर बैठकर आता है।
घोड़ी चढ़ने के पीछे का ज्योतिष महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव का रथ सात घोड़े मिलकर चलाते थे। ऐसा कहा जाता है कि सात घोड़े साथ इंद्रियों का प्रतीक होते हैं। ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की पत्नी संध्या इन सातों घोड़े को नियंत्रित करती थी। ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्म में संध्या ने घोड़ी का अवतार लिया था और उन्होंने पुत्र को जन्म दिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसको लेकर ऐसा भी कहा गया है कि जब दूल्हा घोड़ी पर चढ़ता है तो वह अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर लेता है। इसके साथ ही दूल्हा सूर्य देव की पत्नी संध्या का आशीर्वाद भी प्राप्त कर लेता है। इससे आने वाले वैवाहिक जीवन में मजबूती प्रदान होती है। इसके अलावा दूल्हे दुल्हन का वैवाहिक जीवन सुख समृद्धि के साथ व्यतीत होता है।
शादियों में सफेद घोड़ी का महत्व

हमने अब तक आपको घोड़ी पर बैठने का महत्व तो बता दिया। अब हम आपको बताएंगे की शादियों में दूल्हे को खासतौर पर सफेद घोड़ी पर ही क्यों बैठाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सफेद घोड़ी शुद्धता, व्यावहारिकता, प्रेम, उदारता सौभाग्य समृद्धि का प्रतीक होती हैं। हालांकि सफेद घोड़ी का मिलना थोड़ा मुश्किल होता है इसलिए कई शादियों में सफेद घोड़ी की जगह दूसरी घोड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।
