Anxiety Stuck
Anxiety Stuck

Anxiety Stuck: तुम इस संसार के सर्कस में एक ‘जोकर’ मात्र हो। जैसे ‘जोकर’ को एक खास तरह की पोशाक पहना कर भेजा जाता है, वैसे ही तुम इस शरीर की पोशाक पहन कर ‘अभिनय’ करने के लिए
आए हो। यदि तुम ‘अधिक कुछ’ करने लगो तो फिर सर्कस का रिंगमास्टर आकर तुम्हें
बाहर निकाल देता है।

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त्याग का अर्थ है, तुम्हारी हर चीज को छोड़ सकने की सामर्थ्य। वह चाहे कुछ भी क्यों न हो। सब कुछ एक तरफ रखकर, आत्मविश्वास यानी आंतरिक विश्राम में जाने की क्षमता। कई व्यक्ति अपनी किसी योजना
में इसलिए सफल नहीं हो पाते, क्योंकि वे उसमें इतने ग्रसित हो जाते हैं, इतने अटक कर रह जाते हैं कि चाहने पर भी अपने को अलग नहीं कर पाते। उनमें यह सब त्याग की कमी के कारण होता है। जरा सोचो, यदि तुम अपना सारा काम और सब से प्रिय वस्तु व व्यक्ति नींद में साथ लेकर जाना चाहो तो सो नहीं सकते, तुम चाहो या न चाहो, रोज नींद के समय तुम्हें सब कुछ त्यागना ही पड़ता है,

वरना तुम सो नहीं सकते। ‘इन्सोमनिया’ नींद न आने की तकलीफ से सिर्फ वह व्यक्ति ग्रस्त होता है, जो चिन्ताओं को त्याग नहीं सकता है। किसी भी वस्तु के साथ या विचार के साथ अटक जाना ही चिन्ता है। और यही पकड़ हमें त्याग या उन्मुक्ति में उतरने नहीं देती- ‘चिंता’ इसी ‘पकड़’ का नाम है। ऐसा है कि नहीं?
इस पृथ्वी पर, जिसे तुम ऐसे कस कर पकड़े बैठे हो? तुम समझते हो तुम यहां पर इस परिस्थिति में सदा के लिए रहोगे। तुम्हारा यहां से कभी भी जाना निश्चित है। तुम तो इस संसार के सर्कस में एक ‘जोकर’ मात्र हो।
जैसे ‘जोकर’ को एक खास तरह की पोशाक पहना कर भेजा जाता है, वैसे ही तुम इस शरीर की पोशाक पहन कर ‘अभिनय’ करने के लिए आए हो। यदि तुम ‘अधिक कुछ’ करने लगो तो फिर सर्कस का रिंगमास्टर आकर तुम्हें बाहर निकाल देता है। और तुम्हारा समय समाप्त।

जरा इस तथ्य को देखो कि तुम किस चीज को पकड़ सकते हो? तुम अपने शरीर तक को तो पकड़ नहीं सकते। और तुम संसार की सभी चीजों को पकड़ना चाहते हो? क्या यह मूर्खता नहीं है? हम समझते हैं कि अपने शरीर पर हमारा काबू है। मैं कहता हूं कि शरीर पर तुम्हारा कोई भी बस नहीं है। तुम दूसरों के
विचारों, उनकी भावनाओं और उनके कृत्यों को उनके जीवन को बदलने में लगे रहते हो। तुम दूसरों पर नियंत्रण कैसे कर सकते हो? यह एक विरोधाभास है कि जितना तुम्हारा अपने जीवन पर कम नियंत्रण होता है, उतना ही तुम दूसरों पर नियंत्रण करने की चेष्टïा करते हो। यदि एक बार किसी को अपने आप पर
पूर्ण नियंत्रण हो जाए तो फिर वह कभी किसी दूसरे व्यक्ति पर या वस्तु पर अपना आधिपत्य नहीं करेगा। और वही पूर्ण स्वतंत्र है। त्याग का अर्थ है पूर्ण स्वतंत्रता में स्वयं जीना और दूसरों में भी उतनी ही स्वतंत्रता का उदय होने देना।
त्याग को हमने बहुत ही गलत समझा है। त्याग ही तो तुम्हें वर्तमान क्षण में जीने की क्षमता प्रदान करता है। यदि तुम भूतकाल की घटनाओं का या भविष्य की चिंताओं का त्याग नहीं कर सकते तो तुम वर्तमान क्षण में जी भी
नहीं सकते। लोग तो त्याग मजबूरी में करते हैं। क्रोध में या हताशा में तुम चीजों को फेंक कर कहते हो, ‘बस बहुत हो गया, जाने दो,
मैं इसका त्याग करता हूं- मैं इसे छोड़ता हूं, आदि। यह तो त्याग न हुआ। यह तो चीजों को पकड़ना ही हुआ, जब तक तुम्हारा बस चलता है। किंतु अंतत: तुम्हें छोड़ना ही पड़ता है। और फिर तुम उस निराशा की हालत में
नकारते हुए छोड़ते हो।
किसी भी समय, किसी भी चीज को, किसी भी काम को, चाहे वह पूरा हो गया हो, चाहे अधूरा हो, किसी भी क्षण संतोष सहित छोड़ देने की क्षमता, अपने को उससे अलग कर लेने की क्षमता को त्याग या ज्ञान कहते हंै। चाह को, जब भी चाहे, वहीं रोक दें, छोड़ दें, किसी भी समय मन को ठहराकर, विश्राम करने की और वापिस अपने स्वरूप में आ जाने की क्षमता को त्याग कहते हैं।