राधा के बिना श्याम आधा कहते राधेश्याम…गाने की ये लाइन्स सुनते ही मन में एक खूबसूरत छवि कायम हो जाती है। सामने आता है राधा और कृष्ण का बेहद खूबसूरत और मन को मोह लेने वाला रूप, जिसकी छाया में बैठकर उस अदभुत प्रेम की सीख लेने को मन लालायित हो उठता है। कहा जाता है राधा और कृष्ण का प्रेम इतना गहरा और सच्चा था कि ये किसी प्रतीक्षा या परीक्षा का मोहताज नहीं था। वृन्दावन की पावन भूमि में आज भी राधेकृष्ण के अमिट प्रेम की गूंज व्याप्त है। वहां का कण -कण श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कथा का बखान करता है।

प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी
राधा और कृष्ण के प्रेम की शुरुआत बचपन में ही हो गई थी। कृष्ण नंदगांव में रहते थे और राधा बरसाने में। नंदगांव और बरसाने से मथुरा काफी दूर लगभग 42-45 किलोमीटर था । कहा जाता है कि श्री राधा जी ने जन्म के बाद तब तक अपनी आंखें नहीं खोलीं, जब तक कि उन्होंने श्री कृष्ण के सुंदर चेहरे को नहीं देखा। राधा रानी के माता-पिता इस बात से परेशान थे कि उनकी पुत्री शायद देख ही नहीं सकती है। ग्यारह महीनों के बाद, जब अपने परिवार के साथ वृषभानु यानि राधा रानी के पिता नंदबाबा से मिलने के लिए गोकुल गए तो श्री राधा जी ने अपनी आंखें पहली बार श्री कृष्ण के सामने ही खोलीं। प्रेम की इससे बड़ी मिसाल भला क्या हो सकती है।

प्रेम की महक फैली हुई है
राधा कृष्ण का प्रेम इतना अपार था कि राधा रानी कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर इतनी दूर बरसाने से नंदगांव खिंची चली आती थीं। मान्यता ये भी है कि शायद राधे कृष्ण का अवतार इस धरती पर प्रेम भावना फ़ैलाने के लिए ही हुआ था।आज भी सच्चे प्रेम को उनके नाम के साथ जोड़ा जाता है। वृन्दावन की गलियां ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड में राधा कृष्ण के प्रेम की महक फैली हुई है।
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