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भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते ही हमारे मन-मस्तिष्क में उनकी मनमोहक छवि उभर आती है… श्याम रंग के सुंदर चेहरे पर मुकुट और उस मुकुट में मोरपंखी। जी हां, कुछ ऐसी छवि है बांके बिहारी की जो हम सभी भक्तों के मन मस्तिष्क पर अंकित है। वैसे कान्हा की ये छवि देख अक्सर लोगों के मन ये प्रश्न उठता है कि आखिर भगवान कृष्ण हमेशा अपने सिर पर मोरपंखी क्यों धारण करते थें और उन्हे ये मोरपंखी इतनी प्रिय क्यों थी? अगर आपके मन में भी ये सवाल उठता है, तो हम आपके इस प्रश्न का जवाब अपने इस खास लेख में दे रहे हैं।
राधाकृष्ण के प्रेम की निशानी है मोरपंखी
जी हां, इसके पीछे जो सबसे प्रचलित मान्यता है वो ये है कि मोरपंखी राधाकृष्ण के प्रेम की निशानी मानी जाती है। दरअसल, इसके पीछे मान्यता है कि कान्हा जब वन में बांसुरी बजाते थे तो राधा उस बासुरी की धुन पर नृत्य करती थी और राधा के साथ ही वन में स्थित मोर भी नृत्य करते थें। ऐसे में एक दिन नृत्य करते हुए जब एक मोर की पंखी नीचे धरती पर गिरी तो कृष्ण ने उसे राधा और सभी मोर का स्नेह मान अपने मुकुट पर धारण कर लिया। इसके बाद से ये हमेशा के लिए श्री कृष्ण के माथे की शोभा बन गई।
पवित्रता और त्याग का प्रतीक है मोरपंखी
असल में, इस धरती पर मोर ही एक ऐसा प्राणी माना जाता है जो कि अपने पीरे जीवनकाल में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, मान्यता है कि मोरनी मोर के आँसुओ को पीकर गर्भ धारण कारती है। ऐसे में मोरपंखी पवित्रता और त्याग का प्रतीक मानी जाती है। यही वजह कि भगवान श्री कृष्ण स्वयं इस पवित्र पक्षी के पंख को अपने मष्तक पर धारण करते हैं।
प्रकृति और जीवन के सभी रंगों का सुंदर संयोजन
मोरपंखी में सभी सात प्रमुख रंगो का मेल देखने को मिलता है, वहीं दिन के समय ये मोरपंखी जहां नीले रंग की नजर आती है, तो वहीं रात में ये काले रंग में परिवर्तित नजर आती है। ऐसे में मोरपंखी में प्रकृति और जीवन के सभी रंगों का सुंदर संयोजन देखने को मिलता है। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण मोरपंखी को अपने मुकुट पर धारण कर जीवन और प्रकृति के प्रति प्रेम और स्नेह का संदेश देते हैं।