फिल्म- दिल्लगी(1949)
फिल्म दिल्लगी की मुख्य भूमिका में सुरैया, श्याम व श्याम कुमार थे। इस फिल्म का निर्देशन अब्दुल राशिद ने किया और इस फिल्म के गाने से आज सभी को पंतग प्यारी हो गयी।
मेरी प्यारी पतंग चली बादल के संग
जरा धीरे-धीरे, हो जरा हौले-हौले
दे ढील, दे ढील, ओ री सखी

फिल्म- नागिन (1954)
फिल्म ‘नागिन’ सन 1954 में आई थी। निर्देशक थे नंदलाल जसवंतलाल। वैजयंतीमाला, प्रदीप कुमार और जीवन जैसे सितारे थे इस फिल्म में। इस फिल्म का गाना लता मंगेशकर और हेमंत कुमार की आवाज में आज भी पंतग और रोमांस के साथ होने का एहसास दिलाता है।
अरी छोड़ दे सजनिया, छोड़ दे पतंग मेरी छोड़ दे..
ऐसे छोड़ूँ न बलमवा, नैनवा के डोर पहले जोड़ दे…

फिल्म- भाभी(1957)
साल 1957 में आई फिल्म भाभी की मुख्य भूमिका में बलराज साहनी, नंदा व दक्षिण भारतीय अभिनेत्री पंधारीबाई थीं। फिल्म का निर्देशन आर. कृष्णन राजू और एस. पंजू ने किया था। इस फिल्म में एक गाने के जरिए पतंग उत्सव को दिखाया गया।
चली-चली रे पतंग मेरी चली रे, चली बादलों के पार हो के डोर पर सवार…
सारी दुनिया ये देख-देख जली रे, चली-चली रे पतंग मेरी चली रे..

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फिल्म- पतंग(1960)
साल 1960 में आई फिल्म पतंग। निर्देशक थे सूरज प्रकाश। माला सिन्हा, राजेंद्र कुमार और ओमप्रकाश जैसे कलाकार थे। जिसमें पतंग को आधार बनाकर जीवन का दर्शन बताया गया है। मो. रफी का संगीत और राजेंद्र कृष्ण जी के बोल से सजा इस फिल्म का पतंग गीत आज भी बहुत पंसद किया जाता है।
यह दुनिया पतंग नित बदले यह रंग…
कोई जाने न उड़ाने वाला कौन है…

फिल्म- कटी पतंग(1970)
शक्ति सामंत की 1970 में आई फिल्म “कटी पतंग” में महिलाओं की दशा को एक दिशाहीन पतंग के माध्यम से बखूबी बयां किया गया है। इस फिल्म का गीत आज भी लोगों के जहन में बसा हुआ है।
ना कोई उमंग है,
ना कोई तरंग है
मेरी जिंदगी है क्या,
एक कटी पतंग है..

फिल्म- हम दिल दे चुके सनम(1999)
पतंग की बात हो फिर फिल्म हम दिल दे चुके सनम को कैसे भुलाया जा सकता। गुजराती परिवेश में सजी धजी संजय लीला भंसाली की इस फिल्म ने वाकई पंतग को ढील दे दी। तभी तो आज भी ये लोगों का पंसदीदा गाना बना हुआ है।
ढील दे ढील देदे रे भैया
उस पतंग को ढील दे,
जैसी ही मस्ती मे आये,
उस पतंग को खींच दे…

फिल्म- काई पो छे(2013)
`काई पो छे` फिल्म का ‘मांझा’ गाना पतंग महोत्सव के जोश को दिखाता है। यह फिल्म 2013 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में तीन दोस्तों और उनके सपनों को पूरा करने के जज्बे की कहानी थी। `काई पो छे` का नाम गुजराती भाषा में है। लेकिन फिल्म में अहमदाबाद की कहानी दिखाई गई।
रूठे ख्वाबों को मना लेंगे
कटी पतंगों को थामेंगे
सुलझा लेंगे उलझे रिश्तों का माँझा…

