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Sai Baba of Shirdi : साईं बाबा का नाम कौन नहीं जानता है? ऐसे इंसान, जिनको भगवान का दर्जा मिला, जीते-जी भी और मृत्यु के बाद भी। उनकी मृत्यु के अब करीब 90 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उनको पूजते आ रहे हैं। लोगों के दिल से आस्था निकलती है उनके लिए। भक्तों को आशा होती है कि साईं बाबा उनकी हर परेशानी को समझ लेंगे, जान जाएंगे। ये सच भी है क्योंकि साईं बाबा सबकुछ जानते थे। वो इतना जानते थे कि अपनी मृत्यु का भी अंदाजा उन्हें हो गया था। मतलब उन्हें पता था कि अब उनकी मृत्यु करीब है। सिर्फ एक इंसान ऐसा कैसे कर सकता है। इसके लिए तो उसे भगवान जैसी शक्तियां भी मिली होनी चाहिए, शायद साईं बाबा को यही शक्तियां मिली हुईं थीं इसलिए तो उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी। क्या हुआ था उनकी मृत्यु से पहले आइए जानें
Sai Baba of Shirdi : अपनी मृत्यु को भी पहचान गए थे साईं बाबा 4
भक्त को बताया था-
साईं ने अपने कुछ भक्तों के सामने अपने भविष्य के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि मेरे जाने का समय आ गया है।
अगस्त, 1918 का वो दिन-
आज से करीब 90 साल अगस्त, 1918 का एक दिन ऐसा था, जब साईं बाबा ने अपनी देह छोड़ने की आशंका जता दी थी। भक्तों को पहले पहल इस बात का विश्वास जरूर ही नहीं हुआ होगा। कैसे अपने प्यारे साईं के मरने की बात वो मान लेते भला।
सितंबर से शुरुआत-
साईं ने अगस्त में जिस बात की आशंका जताई थी, उसके लक्षण इसी साल सितंबर में दिखने लगे थे। दरअसल सितंबर आते-आते बाबा को तेज बुखार रहने लगा था। बुखार इतना तेज था कि उन्होंने खाना भी छोड़ दिया था। वो अपने भक्तों से धार्मिक भजन गाने को कहते रहते थे। लेकिन भक्तों से मिलते जरूर थे।
Sai Baba
विजयदशमी को मृत्यु-
साईं बाबा कि तबीयत दिन पर दिन तबीयत खराब होती जा रही थी। भक्तों की चिंता भी लगातार बढ़ रही थी। आखिर भक्तों की डर और चिंता का अंत हुआ, 15 अक्टूबर, 1918 को आखिरकार साईं बाबा की मृत्यु हो गई। उस साल उस दिन दशहरा था।
आस्तियों को मिली जगह-
साईं बाबा की आस्तियां शिरडी में ही बूटी वाड़ा में गाड़ी गईं हैं। ये एक ऐसी जगह है, जिसे साईं के भक्त बापू साहब बूटी ने बनवाया था ताकि साईं के भक्त इसमें रह सकें। बापू साहब बूटी का असली नाम गोपाल राव मुकुंद था।
हिन्दू-मुस्लिम-
साईं बाबा, ऐसे महापुरुष थे, जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के अंतर को हमेशा गलत ही माना। यही वजह है कि उनके भक्तों में सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम लोग बराबर से शुमार रहे। उनके जाने के बाद भी इस सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ है।