Rameshwaram Dham
Rameshwaram Dham

Rameshwaram Dham: चारों दिशाओं में, चार धामों में यह दक्षिण दिशा का धाम है, जो कि एक समुद्रीद्वीप में स्थित है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक रामेश्वरम् है, जहां श्री राम ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना की थी। इसका नाम श्री राम के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्री राम ने यहां मंदिर का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा की थी।

भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् का महान तीर्थ है। यह भारत की चारों दिशाओं की अंतिम सीमा पर स्थित है। रामेश्वरम् की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगों में की जाती है, जिसकी स्थापना भगवान राम ने की थी। उत्तर भारत
में वाराणसी और दक्षिण भारत में रामेश्वरम्, धार्मिक श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास के प्रमुख केंद्र हैं। हिन्दुओं की आस्था के मुख्य केंद्रों में वाराणसी और रामेश्वरम् की ऐसी मान्यता है कि यदि किसी को तीर्थ
यात्रा करनी हो, तो वाराणसी के बाद रामेश्वरम् की यात्रा करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा यह तीर्थ यात्रा सफल नहीं मानी जाती।

इस पवित्र स्थल की मान्यता भगवान श्री राम तथा पवित्र रामायण से जुड़ी हुई है। माना जाता है देवी सीता की तलाश तथा श्रीलंका जाने के लिए भगवान राम ने इसी रास्ते का प्रयोग किया था तथा यहीं विशाल सेतु का निर्माण किया था। बाद में राम ने विभिषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस 30 मील (48 कि.मी.) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। जिस स्थान पर यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है। शुरू में इस खाड़ी को नावों से पार किया जाता था। बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुषकोटि से मन्नार द्वीप तक पैदल चलकर भी लोग जाते थे।

Rameshwaram Dham
Rameswaram mandir kee vaastukala

भगवान श्री राम ने श्रीलंका में जब रावण का वध किया तो इस ब्रह्मï हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि अगस्त्य के सुझाव पर कनदमाधनम रामेश्वरम् के इस स्थान पर शिव आराधना का निर्णय लिया। इसके
लिए श्री हनुमान को कैलाश से शिवलिंग लाने का दायित्व सौंपा गया। श्री हनुमान शिवलिंग लाने कैलाश जाते हैं। उधर समुद्र के किनारे देवी सीता खेल-खेल में ही बालू से शिवलिंग का निर्माण करती हैं जिससे भगवान राम देवी सीता द्वारा रेत के बनाए हुए शिवलिंग की आराधना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव की इस अटूट शिव आराधना को स्वयं भगवान शिव ने देवी पार्वती सहित आकाश से देखा। इस दृश्य से द्रवित हो भगवान शिव ने कहा कि ‘प्रतिष्ठापूर्वक स्थापित इस शिवलिंग के धनुषकोटी में स्नान करने के पश्चात जो कोई
भी दर्शन करेगा उसके सभी पाप दूर हो जाएंगे तथा संतानहीनों को पुत्र की प्राप्ति भी होगी। भगवान राम की इसी आराधना के कारण इस स्थल का नाम रामानाथ स्वामी पड़ा जो बाद में रामेश्वरम् हुआ। यहीं श्री रामेश्वरम्
लिंग है जिसे स्थानीय लोग रामनाथलिंगम कहते हैं।

उधर जब हनुमान कैलाश से शिवलिंग लेकर आए, तो भगवान द्वारा उनकी प्रतीक्षा न करने से दुखी हो गए। तब हनुमान की हालत देखकर श्रीराम ने रामेश्वरम् की बगल में ही हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग को स्थापित करने की घोषणा और कहा कि ‘रामेश्वर की पूजा से पहले हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करनी होगी।
श्री राम ने इस शिवलिंग का नाम काशीविश्वनाथ रखा। इसीलिए लोग आज भी रामेश्वरम् दर्शन से पूर्व काशी-विश्वनाथ लिंग की पूजा करते हैं। इसे हनुमदीश्वर मंदिर भी कहते हैं। मंदिर के आसपास माधव चक्र, शिव, अमृत, सर्वकोटि आदि 24 तीर्थ हैं, जिनमें यात्री गीले कपड़ों में मिट्टी लपेटकर स्नान करते हैं।

रामेश्वरम् के निकट लक्ष्मणतीर्थ, रामतीर्थ, रामझरोखा (जहां श्रीराम के चरणचिह्नï की पूजा होती है), सुग्रीव आदि उल्लेखनीय स्थान है। रामेश्वरम् से चार मील पर मंगलातीर्थ और इसके निकट बिलुनी तीर्थ हैं। रामेश्वरम् से थोड़ी ही दूर पर जटा तीर्थ नामक कुंड है जहां किंवदंती के अनुसार रामचंद्र जी ने लंका युद्घ के पश्चात अपने केशों का प्रक्षालन किया था।

रामेश्वरम् का भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है जो अन्य देशों के साथ व्यापार से भी जुड़ा हुआ है। जो लोग श्रीलंका से सीलोन की यात्रा पर जाते हैं उनके लिए रामेश्वरम् एक स्टॉप गैप ह्रश्ववाइंट है। वास्तव में, जाफना साम्राज्य का इस शहर पर नियंत्रण रहा है और जाफना के शाही घराने को रामेश्वरम् का संरक्षक माना गया है। दिल्ली का खिलजी वंश भी रामेश्वरम् के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है। अलाउद्दीन खिलजी की सेना के जनरल इस शहर में आए थे और पांड्यान्स की सेना भी उन्हें नहीं रोक पाई थी। 16वीं शताब्दी में, यह शहर विजयनगर के राजाओं के नियंत्रण में आ गया और 1975 तक रामेश्वरम् पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने
अधिपत्य जमा लिया था। रामेश्वरम् की इमारतों की वास्तुकला में आज भी स्थानीय रंग को आसानी से देखा जा सकता है।

रामेश्वरम् तीर्थ सभी तीर्थों और क्षेत्रों में उत्तम माना जाता है। जो भगवान श्रीराम द्वारा बधाएं हुए सेतु से और भी पवित्र हो गया है। कहा तो यहा तक जाता है कि इस सेतु के दर्शन मात्र से ही संसार सागर से मुक्ति हो जाती है। तथा भगवान विष्णु एवं शिव में भक्ति तथा पुण्य की वृद्घि होती है। भक्तों के तीनों प्रकार के कायिक, वाचिक
और मानसिक कर्म भी सिद्घ हो जाते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि भूमि के रज, कण तथा आकाश के तारे गिने जा सकते हैं। परंतु सेतु दर्शन से मिलने वाले पुण्य को तो शेषनाग भी नहीं गिन सकते। यह तो मात्र
सेतु के दर्शन का महत्त्च है। जो रामेश्वरम्ज्यो तिर्लिंग और गंधमादन पर्वत का चिंतन करते हैं, उनके समूल पाप नष्टï हो जाते हैं। जो रामेश्वरम् पर गंगाजल चढ़ाते हैं, उनकी संसार सागर से मुक्ति हो जाती है। रामेश्वर
दर्शन से ब्रह्मïहत्या जैसे पाप भी नष्टï हो जाते हैं। यहां थोड़ा श्रम करने मात्र से ही मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।

Rameswaram mandir

रामेश्वरम् मंदिर शिल्प कला की मिसाल है। संपूर्ण मंदिर का निर्माण 350 वर्षों में हुआ। यह मंदिर पूर्व से पश्चिम तक एक हजार फीट और उत्तर से दक्षिण की ओर साढ़े छह सौ फीट क्षेत्र में फैला हुआ है। मुख्य द्वार पर सौ फीट ऊंचा गोपुरम है। तीनों दिशाओं में तीन और भव्य गोपुरम हैं। मंदिर के अपूर्ण अंतरतम प्रकोष्ठ में भगवान रामेश्वरम्वि राजमान हैं। उनके साथ ही उनकी शक्ति पर्वतवद्धिनी अम्मा, विश्वनाथ स्वामी तथा उनकी शक्ति विशालाक्षी अम्मा हैं। पास ही स्वर्ण मंदिर गरुड़ स्तंभ है। यहां पर नंदी की विशालकाय मूर्ति है। रामेश्वरम् मंदिर 15 एकड़ में फैला हुआ है। द्रविड़ शैली में इसका निर्माण किया गया है। मंदिर के बाहर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। पांच फुट ऊंचे चबूतरे पर स्तंभ बने हैं। स्तंभ के आधार से छत बनी है। गलियारों की ऊंचाई 9 मी. और परकोटे की चौड़ाई 6 मी. है। लम्बाई पूर्व-पश्चिम में 133 मी. और उत्तर-दक्षिण में 197 मी. है।
मंदिर के प्रवेश द्वार 38.4 मी. ऊंचा है। गलियारों में 1212 स्तंभ है। जो देखने में एक जैसे लगते हैं। पर बारीकी से देखने पर पता चलता है कि हर एक स्तंभ की कारीगरी एक दूसरे से अलग है। हर एक स्तंभ पर शिल्प कला की अद्भुत बेहतरीन कारीगरी की गयी है।

रामेश्वरम् भ्रमण की शुरुआत आप श्री रामाथस्वामी मंदिर के दर्शन से कर सकते हैं। यह मंदिर हिन्दुओं के शैव संप्रदाय के 275 सबसे महत्त्वपूर्ण शिव मंदिरों में उल्लेखनीय है। यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में शामिल है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान राम द्वारा की गई थी। यह मंदिर द्रविड़ शैली में बनवाया गया
है। मंदिर की सरंचना और वास्तुकला यहां आने वाले श्रद्धालुओं को प्रभावित करने का काम करती है। मंदिर स्थल का विस्तार 12 शताब्दी के दौरान पाण्ड्य राजाओं द्वारा किया गया था। मंदिर की वर्तमान संरचना
उन्हीं के द्वारा बनाई गई थी।

अग्नि तीर्थम उन 22 स्थानों का समूह है जहां तीर्थयात्रि स्नान करते हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण को मारने के बाद प्रभु राम ने इसी स्थान पर स्नान किया था। इसलिए यह स्थान हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान माना जाता है। यहां श्रद्धालुओं का जमावड़ा हमेशा लगा रहता है। अगर आप चाहे तो रामेश्वरम् यात्रा के दौरान यहां पवित्र स्नान कर सकते हैं।

Gandhamadana Mountain
Gandhamadana Mountain

इन स्थानों के अलावा आप रामेश्वरम् से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गंधमादन पर्वत की सैर का आनंद ले सकते हैं। यह द्वीप का सबसे उच्चतम बिंदु है। यह एक पवित्र स्थल है जिसका संबंध भगवान राम से हैं। माना जाता है कि इस स्थल पर भगवान राम के पैरों के निशान हैं। रामेश्वरम्र मण के लिए निकले श्रद्धालु इस स्थान के
दर्शन जरूर करते हैं ।

आप यहां भगवान हनुमान का एक अद्भुत मंदिर देख सकते हैं, जहां हनुमान पांच सिरों के साथ विराजमान हैं। यह मंदिर हनुमान के अद्वितीय अवतार के लिए प्रसिद्घ है। ये पांच चेहरे भगवान हनुमान, भगवान आदिवराहा, भगवान नरसिम्हा, भगवान हैग्रिवा और भगवान गरुड़ के हैं। धनुषकोडी का शाब्दिक अर्थ धनुष का अंत माना जाता है। यह वो स्थान है जहां भगवान राम ने प्रसिद्ध रामसेतु को तैरते हुए पत्थरों के साथ बनाया था। रामेश्वरम् आने वाले श्रद्धालु इस स्थल के दर्शन अवश्य करते हैं। इन सब के अलावा आप यहां विभिन्न प्रवासी पक्षियों को
भी देख सकते हैं।

1. कहते हैं कि इसी स्थान पर श्रीरामचंद्रजी ने लंका के अभियान के पहले शिव की आराधना करके उनकी मूर्ति की स्थापना की थी।

2. पुराणों में रामेश्वरम् का नाम गंधमादन है। रामेश्वरम् का मुख्य मंदिर 120 फुट ऊंचा है।

3.रामेश्वरम् से थोड़ी ही दूर पर जटा तीर्थ नामक कुंड है। किंवदंती के अनुसार श्री राम जी ने लंका युद्ध के पश्चात यहां अपने केशों का प्रक्षालन किया था।

4. श्रीराम ने यहां नवग्रह स्थापन किया था। सेतु बंध यहीं से प्रारंभ हुआ, अत: यह मूल सेतु है। यहीं देवी ने महिषासुर का वध किया था।

5. रामेश्वरम् से लगभग तीस किलोमीटर की दूरी पर धनुष्कोटि नामक स्थान है। यहां अरब सागर और हिंद महासागर का संगम होने के कारण श्राद्ध तीर्थ मानकर पितृकर्म करने का विधान है।

रामेश्वरम् पहुंचने के विभिन्न साधन उपलब्ध है। जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
रेल मार्ग – रामेश्वरम् रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। देश के सभी बड़े नगरों से रामेश्वरम् रेल मार्ग से जुड़ा है।
सड़क मार्ग- रामेश्वरम्, चेन्नई से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चेन्नई से रामेश्वरम् तक के लिए नियमित रूप से बसें चलती है। पर्यटक, वाल्वों से भी रामेश्वरम् तक जा सकते हैं।
हवाई मार्ग- रामेश्वरम् का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट मदुरई में स्थित है। मदुरई एयरपोर्ट, चेन्नई एयरपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है अगर एक बार आप मदुरई या चेन्नई एयरपोर्ट पहुंच जाते हैं तो रामेश्वरम् तक
टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंच सकते हैं।
कहां ठहरें? रामेश्वरम् में ठहरने के लिए मंदिर की धर्मशाला, सुसज्जित गेस्ट हाउस तथा कॉटेज हैं। इसके अलावा तमिलनाडु टूरिस्ट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा संचालित होटल, टूरिस्ट होम, लॉज तथा रेलवे
रिटायरिंग रूम में ठहरा जा सकता है।