दीपावली के पर्व पर सदैव लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है। दीपावली धन समृद्घि एवं ऐश्वर्य का पर्व है तथा धन की देवी हैं लक्ष्मी, लेकिन यह भी सत्य है कि बिना बुद्घि के धन व्यर्थ है। अत: धन-संपत्ति की प्राप्ति के लिए देवी लक्ष्मी तथा बुद्घि की प्राप्ति के लिए गणेश जी की पूजा का विधान है। लक्ष्मी का स्थायित्व भी बुद्घि के द्वारा ही किया जा सकता है।

गणेश सिद्घिदायक देवता के रूप में प्रसिद्घ हैं। जीवन को मंगलमय, निर्विघ्र तथा शांतिपूर्वक व्यतीत करने के लिए भी गणेश जी की आराधना परमावश्यक है।

लक्ष्मी के साथ गणेश पूजा के संबंध में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। ऐसी ही एक किंवदंति के अनुसार एक संन्यासी ने देवी लक्ष्मी को कड़ी तपस्या द्वारा प्रसन्न किया तथा राजसी ठाट-बाट से जीवन व्यतीत करने की कामना प्रकट की। देवी लक्ष्मी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गईं।

अब संन्यासी वहां के राजदरबार में गया और सीधे राजा के पास पहुंचकर एक झटके से उसका राजमुकुट नीचे गिरा दिया। यह देखकर राजा का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। तभी उसने देखा कि उसके राजमुकुट से एक बिच्छू बाहर निकल रहा है। यह देख राजा के मन में संन्यासी के प्रति श्रद्घा उमड़ आई और उससे अपना मंत्री बनने का आग्रह किया। संन्यासी तो यही चाहता था। उसने झट से राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। संन्यासी के परामर्शानुसार राज-काज उत्तम विधि से चलने लगा।

ऐसे ही एक दिन उस संन्यासी ने सबको दरबार से बाहर निकल जाने को कहा। संन्यासी पर पूर्ववत् विश्वास रखते हुए राजा सहित सब दरबारी वहां से निकलकर एक मैदान में पहुंच गए और तभी राजमहल की दीवारें ढह गईं।

अब तो राजा की आस्था उस संन्यासी पर ऐसी जमी कि समस्त राज कार्य उस संन्यासी के संकेतों पर होने लगा। ऐसे में संन्यासी को स्वयं पर घमंड हो गया। उसने एक दिन राजमहल के भीतर भगवान गणेश की एक मूर्ति वहां से हटाने का आदेश दिया क्योंकि उसके विचार में वह मूर्ति राज परिसर की शोभा बिगाड़ रही थी। अगले दिन मंत्री बने हुए संन्यासी ने राजा से कहा कि वह फौरन अपनी पोशाक उतार दें, क्योंकि उसमें नाग है। राजा को संन्यासी पर अगाध विश्वास था, इसलिए दरबारियों की परवाह न करते हुए उसने अपनी पोशाक उतार दी, परंतु उसमें से कोई नाग नहीं निकला। यह देखकर राजा को संन्यासी पर बहुत गुस्सा आया और उसने उसे कैद में रखने का हुक्म दे दिया।

कैदियों की भांति कुछ दिन गुजारने पर संन्यासी की बुरी हालत हो गई। उसने पुन: देवी लक्ष्मी की आराधना शुरू कर दी। लक्ष्मी ने स्वप्न में उसे दर्शन देते हुए बताया कि तुम्हारी दुर्दशा गणेश जी का अपमान करने की वजह से हुई है। गणेश बुद्घि के देवता हैं, अत: उनको नाराज करने से तुम्हारी बुद्घि भ्रष्ट हो गई। अब संन्यासी ने पश्चाताप करते हुए गणेश भगवान से क्षमा मांगी।

अगले दिन राजा ने स्वयं वहां पहुंचकर उसे मुक्त कर दिया और पुन: मंत्री पद पर बहाल कर दिया। संन्यासी ने गणेश की मूर्ति को पूर्व स्थान पर स्थापित करवा दिया तथा उनके साथ-साथ लक्ष्मी की पूजा शुरू की ताकि धन एवं बुद्घि दोनों साथ-साथ रहे। बस तभी से दिवाली पर लक्ष्मी के साथ गणेश पूजा की प्रथा आरंभ हुई।  

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