Ekadashi Special: एकादशी के मौके पर भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है और ऐसी मान्यता है कि इस खास दिन पर चावल या फिर उससे तैयार कोई भी खाद्य पदार्थ ग्रहण करना उचित नहीं है। ज्योतिष की मानें तो एकादशी के मौके पर निर्जला व्रत किया जाता है। मगर जो लोग व्रत नहीं कर पाते हैं वे इस दिन लहसुन, प्याज, मांस- मछली आदि का सेवन नहीं करते हैं। इस दिन चावल न ग्रहण करने को लेकर यूं तो कई कथाएं है। मगर ऐसा माना जाता है कि चावल एक जीव है। साथ ही चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है।
चावल को क्यों कहा गया जीव
एक पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि मेधा ने मां शक्ति के आक्रोश और गुस्से से बचने के लिए अपनी देह त्याग दी थी और उनके शरीर का अंश धरती में समा गया। कुछ समय बाद धरती से चावल और जौ उत्पन्न हुए, जिन्हें महर्षि मेधा का अंश समझा गया। तभी से चावल को जीव का दर्जा दिया गया है। खास बात ये है कि जिस दिन महर्षि ने देह को त्यागा वह एकादशी का दिन था। तभी से ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।
एकादशी के दिन चावल को ग्रहण न करने का वैज्ञानिक तर्क

पौराणिक कथाओं के अलावा अगर वैज्ञानिक तर्क की बात करें, तो चावल में जल तत्व की मात्रा ज्यादा होती है और जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। इसके अलावा चावल को ग्रहण करने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही मन भी विचलित रहने लगता है। एकादशी व्रत के दौरान सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाने को अनुचित बताया गया है।
एकादशी का सनातन धर्म में महत्व
सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को बेहद महत्वपूर्ण व्रत कहा गया है। ये खास दिन भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है। इस दिन को हरि का दिन कहकर भी पुकारा जाता है। हर माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के हिसाब से दो एकादशी आती है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने से पितरों को शांति मिलती है और सभी दुखों का नाश होता है।
शास्त्रों के हिसाब से एकादशी के लिए कहा गया है कि ”न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या, परं व्रतं” । अर्थात् : विवेक के बराबर इस संसार में कोई बंधु नहीं है और एकादशी से आगे और कोई व्रत नहीं है। इस व्रत का महत्व ये है कि पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्म इन्द्रियां और एक मन यानि इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि एकादशी के व्रत के समय शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी ; बगैर जल पिए हुए करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। इन सभी बातों से हमें मालूम चलता है कि एकादशी का सनातन धर्म में कितना महत्व है।