भक्ति का आधार सिर्फ आस्था हो सकती है और ये आस्था किसी के भी साथ हो सकती है। ऐसी ही आस्था गुजरात के एक मंदिर में देखने को मिली है, जहां किसी भगवान की नहीं बल्कि व्हेल मछली की हड्डियों की पूजा की जाती है। और ये पूजा अभी हाल ही में नहीं शुरू हुई है बल्कि 300 सालों से हो रही है। यह अनोखा मंदिर मछुआरों की आस्था का केंद्र है। वो मछली पकड़ कर ही अपना जीवनयापन करते हैं इसलिए व्हेल मछली को मत्स्य माता मानकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि इनके आशीर्वाद से ज्यादा से ज्यादा मछलियां पकड़ी जा सकें और उन्हें बेचकर मछुआरे ज्यादा से ज्यादा कमाई कर सकें। 

गुजरात के वलसाड़ में है मंदिर

ये मंदिर गुजरात में है और समुद्री इलाके वलसाड़ के पास है। वलसाड़ तहसील के मगोद डुगरी गांव में है ये मंदिर। इस मंदिर को मछुआरों के समुदाय ने ही ही बनवाया था। वे व्हेल मछली को मत्स्य माता मानते हुए इनकी पूजा करते हैं।  

कैसे आएं

इस मंदिर तक आने के लिए आपको वलसाड़ तक आना होगा। जिसके लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन वलसाड़ का ही है। जबकि पास का एयरपोर्ट सूरत का है। 

भव्य मेला है आकर्षण-

इस मंदिर का मुख्य आकर्षण हर साल नौरात्रों पर होने वाला अष्टमी का मेला भी है। इस भव्य मेले को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। 

मंदिर के पीछे की मान्यता

इस मंदिर के पीछे की मान्यता के पीछे भी एक कहानी है। कहानी 300 साल पुरानी है। वलसाड़ के रहने वाले प्रभु टंडेल को एक रात सपना आया कि समुद्र तट पर एक मछली आई हुई है। सपने में उन्हें ये भी दिखा कि मछली एक देवी का रूप धर कर आई हैं लेकिन तट पर आते ही उनकी मृत्यु हो जाती है। उनका सपना सच था क्योंकि सुबह गांव वालों को सच में एक मछली समुद्र किनारे मिल गई जो मर चुकी थी। ये एक व्हेल मछली थी। टंडेल ने जब सपने वाली बात बताई तो लोगों ने इस मछली को देवी का अवतार माना और मंदिर भी बनवाया। 

मछली की हड्डियां

इस मरी हुई मछली को लोगों ने समुद्र तट पर ही गड़वा दिया था लेकिन फिर मंदिर बनने के बाद इसकी हड्डियां मंदिर में रख दी गईं। पहले पहल इनका विरोध हुआ। कई लोगों ने मंदिर के पूजा-पाठ में भी हिस्सा नहीं लिया। लेकिन फिर कहा जाता है कि लोगों को इसका विरोध करना भारी पड़ा। गांव को कई तरह के नुकसान हुए।

रोग फैलने लगे

मंदिर में हड्डियां रखने का विरोध करने वालों को इसका नतीजा जल्द ही झेलना पड़ा। क्योंकि गांव में रोग फैलने लगे। लेकिन फिर इसी मंदिर में मत्स्य देवी की पूजा की तब जाकर इस बीमारी से सबकी जान बची। तब से पूरे गांव वालों ने इस मंदिर की पूजा अर्चना करना शुरू कर दिया। 

मंदिर का रखरखाव

इस मंदिर का रख-रखाव आज भी टंडेल परिवार ही करता है। 

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