नवरात्र के दौरान नवदुर्गा को प्रसन्न करने के लिए में भक्त हर तरह की पूजा और विधान करते हैं लेकिन अगर आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र माँ के 108 नाम के जाप करने से भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। माँ के ये नाम संसार के हर संकट और विघ्नों से भक्तों को बचाते हैं और सुखी जीवन मिलता है। आइये जाने माँ के इन नामो को और उनका अर्थ –
 
1. सती- अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
2. साध्वी- आशावादी
3. भवप्रीता- भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी- ब्रह्मांड की निवास
5. भवमोचनी- संसार बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या- देवी
7. दुर्गा- अपराजेय
8. जया- विजयी
9. आद्य- शुरूआत की वास्तविकता
10. त्रिनेत्र- तीन आँखों वाली
11. शूलधारिणी- शूल धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी- शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
13. चित्रा- सुरम्य, सुंदर 
14. चंद्रघंटा- प्रचण्ड स्वर से घंटे की आवाज निकालने वाली 
15. महातपा- भारी तपस्या करने वाली
16. मनाह- मन 
17. बुद्धि- सर्वज्ञाता
18. अहंकारा- गर्व के आगे 
19. चित्तरूपा- वह जो सोच की अवस्था में है
20. चिता- मृत्युशय्या
 
 
21. चिति- चेतना
22. सर्वमन्त्रमयी- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता- जो सब से ऊपर है
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी- अनन्त आनंद का रूप
25. अनन्ता- जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं
26. भाविनी- सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
27. भाव्या- भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या- कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
29. अभव्या – जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति- हमेशा गति में, मोक्ष दान
31. शाम्भवी- शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
32. देवमाता- देवगण की माता
33. चिन्ता- परेशानी 
34. रत्नप्रिया- गहने से प्यार
35. सर्वविद्या- ज्ञान का निवास
36. दक्षकन्या- दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा- अनेक रंगों वाली
40. पाटला- लाल रंग वाली
41. पाटलावती- गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली
42. पट्टाम्बरपरीधाना- रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी- पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय- जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा- असीम पराक्रमी
46. क्रूरा- दैत्यों के प्रति कठोर
47. सुन्दरी- सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी- अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा- जंगलों की देवी
50. मातंगी- मतंगा की देवी
 
 
51. मातंगमुनिपूजिता- बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी- भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी- प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री- इन्द्र की शक्ति
55. कौमारी- किशोरी
56. वैष्णवी- अजेय
57. चामुण्डा- चंड और मुंड का नाश करने वाली
58. वाराही- वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी- सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति- वह जो पुरुष धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी- आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना- ज्ञान से भरी हुई
63. क्रिया- हर कार्य में होने वाली
64. नित्या- अनन्त
65. बुद्धिदा- ज्ञान देने वाली
66. बहुला- विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा- सर्व प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी- शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि- महिषासुर का वध करने वाली
71. मधुकैटभहंत्री- मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि- चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा- सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी- संहार के लिए शक्ति रखने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी- सभी सिद्धांतों में निपुण
76. सत्या- सच्चाई
77. सर्वास्त्रधारिणी- सभी हथियारों धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता- हाथों में कई हथियार धारण करने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी- अनेक हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी- सुंदर किशोरी
 
 
81. एककन्या- कन्या
82. कैशोरी- जवान लड़की
83. युवती- नारी
84. यति- तपस्वी
85. अप्रौढा- जो कभी पुराना ना हो
86. प्रौढा- जो पुराना है
87. वृद्धमाता- शिथिल
88. बलप्रदा- शक्ति देने वाली
89. महोदरी- ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी- खुले बाल वाली
91. घोररूपा- एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
92. महाबला- अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला- मार्मिक आग की तरह
94. रौद्रमुखी- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
95. कालरात्रि- काले रंग वाली
96. तपस्विनी- तपस्या में लगे हुए
97. नारायणी- भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
98. भद्रकाली- काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया- भगवान विष्णु का जादू
100. जलोदरी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली
101. शिवदूती- भगवान शिव की राजदूत
102. करली – हिंसक
103. अनन्ता- विनाश रहित
104. परमेश्वरी- प्रथम देवी
105. कात्यायनी- ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
106. सावित्री- सूर्य की बेटी
107. प्रत्यक्षा- वास्तविक
108. ब्रह्मवादिनी- वर्तमान में हर जगह वास करने वाली
 
दुर्गा चालीसा
 
इन नामों के जप के बाद माँ की चालीसा भी करें-
 
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
 
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
 
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
 
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
 
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
 
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
 
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
 
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
 
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
 
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
 
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
 
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
 
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
 
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
 
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
 
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
 
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
 
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
 
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
 
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
 
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
 
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
 
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
 
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
 
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
 
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
 
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
 
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
 
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
 
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
 
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
 
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥