सनातन धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है और इस मास की पहली एकादशी 6 जनवरी यानि कि आज पड़ रही है। गौरतलब है कि पौष शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहलाती है, जिस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। चलिए आपको पुत्रदा एकादशी व्रत कथा और उसकी पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं। 

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में महीजित नामक राजा थे, जिनके शाषन में राज्य की प्रजा बहुत खुश थी। लेकिन स्वयं राजा एक बात से दुखी थे, वो ये कि उनकी कोई संतान नहीं थे। जबकि राजा बहुत नेक दिल और न्याय प्रिय व्यक्ति थे, ऐसे में राजा का मन इस बात से बेहद व्याकुल रहता था कि उनके साथ ऐसा अन्याय क्यों है? 
ऐसे मे अपने इस प्रश्न का जवाब ढूंढ़ने वो महर्षि लोमश के पास पहुंचे, साथ में उनकी प्रजा भी थी।  महर्षि से मिलकर राजा ने संतान न होने की बात कही, तो महर्षि लोमश ने बताया कि आपने इस जन्म तो कोई बुरे कर्म नहीं किए हैं, पर पिछले जन्म में आप बहुत गरीब व्यक्ति थे और ऐसे में आपने अपना गुजारा करने के लिए कई गलत काम किए। जैसे कि एक बार आप एक प्यासी गाय का पानी लेकर खुद पी गए थे, जिसके कारण आपको ये पाप लगा है। साथ महर्षि ने बताया कि उस रोज  ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी, इसी कारण राजा को इस जन्म में निसंतान रहना पड़ा है।
ऐसे में जब राजा और उनके साथ मौजूद प्रजा ने इस पाप से छुटकारे का उपाय पूछा तो महर्षि ने बताया कि इसके लिए राजा सहित पूरी प्रजा को पौष माष की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखना होगा और इसके साथ ये संकल्प लेना होगा कि इसका फल महाराज को मिले। साथ ही प्रजा को पूरी रात जागरण करना होगा और फिर दूसरे दिन पारण करना होगा। इस तरह से विधि पूर्वक व्रत रखने से राजा को पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलेगी और राजा और राज्य को उत्तराधिकारी मिलेगा। इसके बाद राजा और उनकी प्रजा ने मऋषि के परामर्शानुसार व्रत रखा, परिणाम स्वरूप राजा को शीघ्र ही पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इस घतना के साथ ही पौष माष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रचलन चल पड़ा। 

पूजा विधि

इस दिन सुबह उठकर स्नान ध्यान कर भगवान विष्णु या कृष्ण की पूजा करें, उन्हें पीले रंग के पुष्प, प्रसाद और वस्त्र आदी चढ़ाएं। इसके साथ व्रत का संकल्प लें और पूरे दिन निर्जल या फलाहार के साथ व्रत रखे। शाम को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना करें और साथ ही रात्रि में जागरण करें। अगर आप पुत्र कामना हेतु व्रत रख रहे हैं तो रात में सोने से बचें रात्रि का समय भगवान विष्णु के स्मरण और भजन कीर्तन में बिताएं। फिर अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा कर ही व्रत तोड़ें।