आत्महत्या की प्रबल इच्छा
मनोचिकित्सा जगत में माना जाता है कि कोई भी व्यक्ति तभी आत्महत्या करता है जब उसे आत्महत्या करने की प्रबल इच्छा हो और साथ ही स्वयं की हत्या कर पाने का साहस भी हो। आत्महत्या करने की इच्छा तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति अपनी समस्याओं का अत्यधिक बोझ महसूस करता है, अत्यधिक निराशा से घिर जाता है या सामाजिक रूप से एकाकीकरण का शिकार हो जाता है। निरन्तर दुखद और पीड़ाजनक अनुभवों से गुजरने के बाद कुछ व्यक्ति दर्द, चोट और मृत्यु के डर पर जीत हासिल कर लेते हैं। ऐसे ही लोगों को आत्महत्या करने का साहस या यूं कहें दुस्साहस मिल जाता है। प्रत्युषा की मौत के बाद भी सामने आया है कि वो कई तरह के तनावों से गुज़र रही थीं। एक तरफ उनके बॉयफ्रेंड की कथित बेवफाई तो दूसरी ओर एक झगड़े के बाद अपने माता-पिता से भी रिश्ते तोड़ चुकी थी। इसके अलावा और भी कई मुद्दे सामने आये हैं जिनका अभी पुष्टिकरण नहीं हो पाया है।
स्वयं को क्षति
आत्महत्या की प्रवृत्ति रखने वाले व्यक्ति की पहचान करना संभव है। अक्सर ऐसे व्यक्ति पहले भी स्वयं को क्षति पहुंचाने वाले कार्य करते हैं, जैसे खुद को ब्लेड से काटना, सुई चुभाना या नशे का सेवन करना, इत्यादि। ध्यान दिया जाए तो ऐसे व्यक्ति आत्महत्या से पहले ‘मदद की गुहार और अपने दोस्तों- परिजनों से अपने कष्ट या मरने की बातें अवश्य करते हैं। ये बातें कभी स्पष्ट तो कभी अस्पष्ट भी हो सकती हैं। प्रत्युषा के आखिरी व्हाट्सेप स्टेटस ‘मर के भी तुझसे मुंह न मोडऩा से उनकी मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता था।
पूर्व प्रयास
आत्महत्या के पूर्व प्रयास भी इस प्रवृत्ति का संकेत हैं। यदि कोई व्यक्ति अचानक सभी परिजनों से एक-एक करके मिलने की इच्छा व्यक्त करे, अपनी प्रिय वस्तुओं का दान करने लगे या असमय अपनी वसीयत की बात करे तो भी उसकी मानसिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। भावनात्मक अस्थिरता या व्यवहारिक बदलाव से भी इसका अंदेशा मिल सकता है।
यह भी पाया गया है कि यदि व्यक्ति के खून के सम्बन्धों में से किसी ने आत्महत्या का प्रयास या आत्महत्या की है तो उसकी आत्महत्या करने की आशंका बढ़ जाती है।
सबसे ज़्यादा आत्महत्या
सन 2012 में प्रकाशित विश्व स्वस्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा आत्महत्या दर्ज की गईं। हाल ही में हमारे देश की गिनती विश्व में सबसे ज़्यादा ‘डिप्रेस्ड देशों में भी शुमार हो गई है। भारत में आत्महत्या के तेजी से बढ़ते आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि जहां एक तरफ तनाव बढ़ता जा रहा है, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता का स्तर वहीं का वहीं है। अंधविश्वास, काल्पनिक तथा पौराणिक कथाओं ने आज भी हमारे विचारों को जकड़ रखा है। इस युग में भी बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि आत्महत्या अधिकतर अवसाद का लक्षण होती है। आत्महत्या से जुड़े मिथक दूर कर, हम अहम तथ्यों पर प्रकाश डालेंगे।
मिथक : जो लोग आत्महत्या की बात करते हैं, वे ऐसा केवल ध्यान आकर्षित करने के लिए करते हैं।
तथ्य : आत्महत्या से मरने वाले लोग प्राय: मरने के बारे में बात करते हैं। वे अपनी समस्याओं को लेकर हताश होते हैं इसलिए इसके बारे में बात करके सहायता प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए यदि कोई आत्महत्या की बात करे तो इसे अवश्य गम्भीरता से लें।
मिथक : आत्महत्या की कोई चेतावनी या पूर्व लक्षण नहीं होते।
तथ्य : आत्महत्या करने का मन बनाने से पहले व्यक्ति घोर निराशा, दु:ख और असहाय अनुभव करता है। यदि आपका कोई परिचित आपको निरन्तर दुखी और हताश दिखे, मरने की बातें करे या आत्महत्या के तरीकों के बारे में शोध करता दिखे तो ये आत्महत्या के लक्षण हो सकते हैं।
मिथक : यदि किसी ने आत्महत्या करने का निर्णय कर लिया तो उसे रोकना असम्भव है।
तथ्य : आत्महत्या को रोका जा सकता है। जो व्यक्ति स्वयं की हत्या का प्रयास करता है वो मरना नहीं चाहता। वो बस अपने दर्द का अंत चाहता है। यदि भावनात्मक रूप से उसकी सहायता की जाए तो निर्णय बदलना संभव है।
मिथक: आत्महत्या की इच्छा रखने वाले व्यक्ति से कभी आत्महत्या या मृत्यु की बात नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति के दिमाग में नकारात्मक विचार आ सकते हैं।
तथ्य : आत्महत्या की बात करने भर से कोई आत्महत्या नहीं कर लेता। स्पष्ट तरीके से इस विषय पर बात करने से आप किसी की सहायता कर सकते हैं। जो व्यक्ति गुप्त रूप से आत्महत्या का विचार बना रहा होगा वो भी खुल कर अपनी बात करने पर राहत महसूस करेगा।
मिथक: आत्महत्या और नशे का कोई सम्बन्ध नहीं है।
तथ्य : आंकड़ों के हिसाब से आत्महत्या करने वाले व्यक्ति अक्सर किसी न किसी प्रकार के नशे के प्रभाव में होते हैं।
मिथक : एक बार आत्महत्या का प्रयास असफल होने के बाद व्यक्ति कभी दोबारा आत्महत्या का प्रयास नहीं करता।
तथ्य : आत्महत्या का प्रयास असफल होने पर भी भावी प्रयासों का खतरा बना रहता है। यदि व्यक्ति को मनोचिकित्सक सहायता नहीं प्रदान की जाती तो भावी प्रयासों के और खतरनाक होने की आशंका बढ़ जाती है।
मिथक: कम उम्र के व्यक्ति आत्महत्या नहीं करते।
तथ्य : नौजवान और वृद्ध वर्ग में सबसे अधिक आत्महत्या के मामले देखने को मिलते हैं। कम उम्र के ज़्यादातर व्यक्ति जो आत्महत्या का प्रयास करते हैं, लम्बे अर्से से डिप्रेशन का शिकार होते हैं।
मिथक: बहुत कम लोग आत्महत्या की प्रवृत्ति रखते हैं।
तथ्य : आत्महत्या कोई भी कर सकता है। कोई भी व्यक्ति जो लम्बे समय से डिप्रेशन का शिकार हो, दुखद परिस्थितियों का सामना कर रहा हो, किसी ऐसी कठिनाई से गुजर रहा हो जिसका समाधान न हो या नशे का सेवन करता हो, वो आत्महत्या का प्रयास कर सकता है।
यदि आपका कोई परिचित अवसाद ग्रस्त है या निरन्तर दुखी और हताश नजर आता है, तो उनसे खुलक र बात करें। ये भी पूछें कि क्या उनके मन में कभी आत्महत्या का विचार आता है। यदि हां, तो क्या उन्होंने कभी आत्महत्या की योजना भी बनाई है या कोई प्रयास किया है। उनके आसपास से सभी नुकीले शस्त्र, दवाइयां, फिनाइल, टॉयलेट क्लीनर इत्यादि हटा दें। जितना हो सके उन्हें निगरानी में रखें। उन्हें आश्वस्त करें कि समस्या कितनी भी बड़ी क्यों न हो, समय के साथ और उचित सहायता से, उसका समाधान संभव है। उन्हें किसी मनोचिकित्सक के पास जाने के लिए प्रोत्साहित करें और उनका साहस बढ़ाने के लिए उनके साथ जाएं। आत्महत्या की इच्छा होना, योजना बनाना या प्रयास करना एक गम्भीर मानसिक समस्या है जिसका इलाज संभव है। आवश्यकता है तो केवल जागरूकता की और समय पर सही कदम उठाने की।
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