Deepfake Technology Prevention: ‘डीपफेक’ ये शब्द इन दिनों हर किसी की जुबान पर है। दरअसल, सोशल मीडिया पर हाल ही में मशहूर अभिनेत्री रश्मिका मंदाना का डीपफेक वीडियो वायरल हुआ, जिसको देखकर हर कोई हैरान हुआ। वहीं डीपफेक को लेकर बहस छिड़ गई। इसके साथ ही कुछ लोगों में डर बैठ गया कि कहीं वे ‘डीपफेक’ का शिकार न हो जाएं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि अगर भारत में कोई डीपफेक का शिकार होता है तो कानून कैसे आपकी मदद कर सकता है। आज इस लेख में हम आपको डीपफेक क्या है और कैसे कानून इसमें आपकी मदद कर सकता है, आइये जानते हैं-
Also read : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर अपने ट्रेवल प्लान को सरल बना सकते हैं आप: AI In Travel
क्या है डीपफेक

डीपफेक, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की ही उपज है। डीपफेक को एआई द्वारा एक व्यक्ति को रिकॉर्ड किए गए वीडियो में दूसरे जैसा दिखने के लिए डिजाइन किया गया है। लेकिन असामाजिक तत्व इसका इस्तेमाल डिजिटल मीडिया में फेरबदल करने के लिए कर रहे हैं। ये लोग डीपफेक का इस्तेमाल करते हुए किसी वीडियो, फोटो या ऑडियो को एडिट करते हैं। ये एडिटिंग हूबहू वास्तविक चीज़ों जैसी ही दिखती है, जिस कारण इसकी पहचान करना काफी मुश्किल हो जाता है।
कैसे कानून कर सकता है मदद
बिना किसी व्यक्ति की सहमति के उसके वीडियो और फोटो का इस्तेमाल करना गोपनीयता का उल्लंघन करता है, ऐसे में पीड़ित व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है, जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के सेक्शन 66ई के तहत आता है। इस नियम के तहत किसी की गोपनीयता का उल्लंघन करने पर दोषी पाए जाने पर कार्यवाई का नियम है।
किसी व्यक्ति की फोटो को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या सॉफ्टवेयर की मदद से अश्लील बनाना और उसे शेयर करना असूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 67 के तहत आता है, जिसमें दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान दोनों है।
अगर किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के डीपफेक वीडियो बनाया गया है तो वे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि की शिकायत दर्ज करा, निर्माण करने वाले व्यक्ति के खिलाफ करवाई की अपील कर सकता है।
डीपफेक का शिकार होने पर पीड़ित व्यक्ति, भारतीय दंड संहिता, के सेक्शन 66C, 66E और 67 के तहत शिकायत दर्ज करा सकता है। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 295A के तहत मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई की जा सकती है।
कैसे हो डीप फेक की पहचान?

डीपफेक के जरिये जनरेट किया गया डाटा हूबहू असली डाटा जैसा ही नजर आता है। ये प्रोग्रामिंग इतनी सफाई से अपना काम करती है कि बिना एक्सपर्ट के पहली नजर में इसका पता लगाना नामुमकिन होता है। ऐसे में अगर कोई वीडियो या फोटो है तो आपको असलियत की पहचान करने के लिए फोटो या वीडियो में नजर आ रहे व्यक्ति के चेहरे के भावों की पहचान करना जरुरी है। आपको देखना है कि वीडियो में नजर आ रहे शख्स के चेहरे के भाव असली व्यक्ति के चेहरे से मिलते हैं या नहीं। साथ आपको आंखों, होठों, गलों के आकार और पलक झपकने की गति का भी ध्यान रखना है। हालांकि ये बेहद बारीकी वाला काम है लेकिन किसी भी ठगी या असामाजिक घटना से बचने के लिए ये जरुरी है।
