Charan Sparsh Significance: सनातन धर्म संस्कृति हमें बड़े-बुजुर्गों का मान सम्मान, आदर करना सिखाती है। बड़ों के प्रति इसी आदर-सम्मान को व्यक्त करने के लिए हम उनके पैर छूते हैं। सनातन धर्म में अपने से बड़े व्यक्ति के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति सम्मान के लायक हो उसी के पैर छूने चाहिए। जिस व्यक्ति के प्रति हमारे मन में श्रद्धा, प्रेम और खुशी हो, ऐसे ही व्यक्ति के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए। लेकिन ऐसी कुछ विशेष परिस्थितियां भी हैं, जिनमें किसी के भी पैर छूना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं कि धार्मिक दृष्टि से पैर छूने के क्या फायदे हैं और ऐसी कौनसी परिस्थितियां हैं, जिनमें पैर छूने की मनाही है।
Charan Sparsh Significance: चरण स्पर्श का महत्व
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शास्त्रों में बाकी संस्कारों के तरह ही पैर छूने के संस्कार को भी महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में उल्लेख है कि अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।। इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति रोज अपने से बड़े-बुजुर्गों के सम्मान में उनको प्रणाम करता है और उनके चरण स्पर्श करता है। उस व्यक्ति की उम्र, विद्या, शक्ति और समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती जाती है। पैर छूने का अर्थ है कि किसी आदरणीय व्यक्ति के सम्मान में नतमस्तक होना। ऐसा करने से व्यक्ति के मन में विनम्रता आती है।
जब हम किसी सम्मानीय व्यक्ति के पैर छूते हैं, तो आशीर्वाद देने के लिए उनका हाथ हमारे सिर पर होता है जबकि हमारा हाथ उनके पैरो को छूता है। माना जाता है कि हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से में सकारात्मक ऊर्जा रहती है जो सिर से पैर की तरफ जाती है और ये सारी ऊर्जा पैरों में जमा होती रहती है। इसलिए कहा जाता है कि हमेशा बुजुर्गों के पैरों को छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए ताकि उनकी सकारात्मक ऊर्जा हाथों के माध्यम से हमारे शरीर में आ सके। साथ ही पैर छूने वाला व्यक्ति भी अपने आचरण से दूसरे व्यक्ति को प्रभावित करता है।
ऐसे लोगों के पैर छूने की मनाही

शास्त्रों में बताया गया है श्मशान से लौटे हुए किसी भी व्यक्ति के पैर नहीं छूने चाहिए, न ही हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए। क्योंकि, श्मशान से लौटे व्यक्ति का मन दुःखी होता है। इसलिए वह मन से खुश होकर आशीर्वाद नहीं दे पाते। तपस्या और ध्यान में लीन साधु-महात्माओं के पैर भी नहीं छूने चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उनका ध्यान भंग हो जाता है और हमें भी ऐसा करने से दोष लगता है। किसी भी जीवित लेटे हुए व्यक्ति के पैरों को नहीं छूना चाहिए। लेटे हुए व्यक्ति के पैर तभी छूए जाते हैं जब उसकी मृत्यु हो चुकी हो।
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