रत्नों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। यह प्रकृति प्रदत्त वह अनमोल निधि है,जिसको धारण करके हम अपने भाग्य की बाधा को काफी हद तक समाप्त कर सकते हैं। रत्न सुवासित,चित्ताकर्षक,चिरस्थायी व दुर्लभ होने के साथ-साथ अपने अद्भुत प्रभाव के कारण भी मनुष्य को अपने मोहपाश में बांधे हुए हैं।रत्न कोई भी हो,यह आपके लिए शुभ व कल्याणकारी ही होते हैं। जैसे हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए होता है,तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना बढ़ाकर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहां मन को शांति प्रदान करता है,तो मूंगा ऊष्णता प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।

क्या है रत्न?

जब विभिन्न तत्त्व रासायनिक प्रक्रिया के द्वारा आपस में मिलते हैं तब रत्न बनते हैं। जैसे स्फटिक,मणिक,क्रिस्टल आदि। इसी रासायनिक प्रक्रिया के बाद तत्त्व आपस में एकजुट होकर विशिष्ट प्रकार के चमकदार आभायुक्त पत्थर बन जाते हैं तथा इनमें कई अद्भुत गुणों का प्रभाव भी समायोजित हो जाता है। यह निर्मित तत्त्व ही रत्न कहलाता है,जो कि अपने रंग,रूप व गुणों के कारण मनुष्यों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। रत्नों की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य कथा भी ग्रंथों में आती है। देवता और दैत्यों ने जब समुद्र मंथन किया तो उसमें से14 रत्न पदार्थ निकले। इससे निकले अमृत को लेकर देव और दानवों में संघर्ष हुआ। अमृत का स्वर्ण कलश असुरराज लेकर भाग खड़े हुए। इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें जहां-जहां गिरीं वहां सूर्य की किरणों द्वारा सूखकर वे अमृत कण प्रकृति की रज में मिश्रित होकर विविध प्रकार के रत्नों में परिवर्तित हो गए। रत्न चौरासी माने गए हैं। नौ प्रमुख रत्न तथा शेष उपरत्न माने जाते हैं।

पुराणों में कुछ ऐसे मणि रत्नों का वर्णन भी पाया जाता है,जो पृथ्वी पर नहीं पाए जाते। ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्मा जी धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को नारायण धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। स्यमंतक मणि को इंद्र देव धारण करते हैं। पाताल लोक भी मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। इन सब मणियों पर सर्पराज वासुकी का अधिकार रहता है। प्रमुख मणियां मानी जाती हैं- घृत मणितैल मणिभीष्मक मणि,उपलक मणि,स्फटिक मणि,पारस मणि,उलूक मणि,लाजावर्त मणि,मासर मणि। इन मणियों के संबंध में कई बातें प्रचलित हैं। घृतमणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है। इस मणि को धारण करने से लक्ष्मी कभी नहीं रूठती। तैल मणि को धारण करने से बल-पौरुष की वृद्धि होती है। भीष्मक मणि धन-धान्य की वृद्धि में सहायक है।

रत्न की पहचान

रत्नों को खरीदते समय उनके रंगों पर भी ध्यान देना चाहिए। संपूर्ण रत्न का रंग एक होना चाहिए। फीके और मंद रंग वाले रत्न की अपेक्षा झलकदार और आभायुक्त रत्न अधिक गुणवत्ता वाले और मूल्यवान होते हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि रत्न का रंग बहुत अधिक गहरा होना चाहिए। अत्यधिक गहरे रंग भी रत्नों की गुणवत्ता को कम करते हैं। रंगों से भी असली और नकली रत्नों की पहचान होती है,जिसकी जांच स्पेक्ट्रोमस्कोप द्वारा की जाती है। पारदर्शिता रत्नों की खास विशेषता है। जो रत्न जितना पारदर्शी होता है,उतना ही उच्च स्तर का माना जाता है और उसी के अनुरूप उसकी कीमत भी होती है। अपवाद के रूप में मूंगा ऐसा रत्न है जो अपारदर्शी होते हुए भी मूल्यवान होता है। रत्नों की पारदर्शिता में अंतर प्राप्ति स्थान के आधार पर होता है। अलग-अलग स्थान से प्राप्त रत्नों में झीरम की मात्रा में अंतर के आधार पर पारदर्शिता में विभेद होता है।

रत्नों की प्रकृति

कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते हैं। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अत: इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परीक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा,नीलम,लहसुनिया,मकरंद,वज्रनख आदि। यदि यह नग तराश दिए गए हैं,तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेटस सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है।कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें,नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह राहु से होता है,तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी।

ग्रहों के प्रमुख रत्न

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों को बल प्रदान करने और उनका अनिष्ट फल रोकने हेतु रत्नों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक ग्रह रंग के अनुसार ही रत्नों का रंग होता है। रत्न धारण के बाद संबंधित ग्रह का प्रभाव जातक पर सकारात्मक पड़ता है,जिससे वह अनुकूल स्थिति महसूस करता है। सभी ग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा प्राप्ति हेतु अलग-अलग रत्न निर्धारित किए गए हैं। सूर्य का रत्न माणिक्य है,जिसका रंग मरून लाल होता है। इसे रूबी भी कहते हैं। चंद्र का रत्न मोती है,इसका रंग सफेद है और इसे पर्ल भी कहा जाता है। मंगल का रत्न मूंगा है। मूंगा लाल और नारंगी रंग का होता है। इसे गोराल कहते हैं। बुध का रत्न पन्ना है। यह हरा होता है। इसे एमरल्ड भी कहते हैं। गुरु का रत्न पुखराज है,यह पीला होता है। इसे तोपाज कहते हैं। शुक्र का रत्न हीरा है। हीरा चमकीला होता है और इसे डायमंड कहते हैं। शनि का रत्न नीलम है। यह नीला होता है। इसे सेफायर कहते हैं। राहु का रत्न गोमेद है,यह धूम्र रंग का होता है और इसे हेसोनाइट भी कहते हैं। केतु का रत्न सफेद-पीला लहसुनिया होता है। इसे केट्स आई भी कहते हैं।

रत्नों को जागृत करना आवश्यक

किसी भी रत्न को पहनने से पहले उसे जागृत अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है। उदाहरण के लिए पुखराज को लेते हैं। पुखराज को मकोय (एक पौधा),सिसवन,दिथोहरी,अकवना,तुलसी एवं पलोर के पत्तों को पीसकर उसे उनके सामूहिक वजन के तीन गुना पानी में उबालिए। जब पानी लगभग सूख जाए,तो उसे आग से नीचे उतारिए। आधे घंटे में उसके पेंदे में थोड़ा पानी एकत्र हो जाएगा। उस पानी को शुद्ध गाय के दूध में मिला दीजिए। जितना पानी उसके लगभग चौगुना दूध होना चाहिए। उस दूध युक्त घोल में पुखराज को डाल दीजिए। हर तीन मिनट पर उसे किसी लकड़ी के चम्मच से बाहर निकाल कर तथा उसे फूंक मारकर सुखाइए और फिर उसी घोल में डालिए। आठ-दस बार ऐसा करने से पुखराज नग के विकिरण के ऊपर लगा आवरण समाप्त हो जाता है तथा वह पुखराज सक्रिय हो जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक नग या रत्न को जागृत करने की अलग विधि है। रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है।यह भी पढ़ें– कई मर्ज की एक दवा है नींबू