पापों से मुक्ति की कामना सभी की होती है। ऐसा इसलिए नहीं है कि सब लोग पाप ही करते हैं लेकिन कुछ न कुछ पाप चाहे-अनचाहे सभी से हो ही जाता है। और ऐसे में खुद इन पापों से दूर करना भी जरूरी हो जाता है। इसी एक आशा में अक्सर लोग भगवान की शरण में आते हैं। ऐसी ही एक शरण है देवास का चंद्रकेश्वर मंदिर। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहीं ऋषि च्यवन ने तपस्या की थी और तपस्या के बाद ही इस मंदिर में मां नर्मदा ने दर्शन दिए और यहीं रह गईं। आस्था और इस मंदिर के रिश्ते को समझते हैं-
वटवृक्ष से जलधारा-
मान्यताओं के हिसाब से च्यवनप्राश को बनाने वाले ऋषि च्यवन ने इस जगह पर तपस्या की थी। वो रोज 60 किलोमीटर दूर नर्मदा के तट पर स्नान के लिए भी जाते थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ही मां नर्मदा प्रकट हुई थीं। फिर ऋषि के बनाए शिवलिंग का पहला अभिषेक भी किया था। माना जाता है कि च्यवन ऋषि तट पर एक गमछा छोड़ आए थे, वो गमछा दूसरे दिन सुबह उन्हें शिवलिंग पर लिपटा मिला। ये जलधारा के साथ शिवलिंग तक आ गया था। तब ही से यहां एक वटवृक्ष से जल धारा भी बहती है। इसी धारा से शिवलिंग जलमग्न रहता है। 
पुराना नहीं बहुत पुराना-
ये मंदिर सिर्फ पुराना नहीं है बल्कि ये बहुत पुराना है। इसकी उम्र तकरीबन 3000 साल मानी जाती है। जो अपने आप में अचंभे का विषय है। इसलिए इस मंदिर को ऐतिहासिक भी माना जा सकता है। 
नर्मदा कुंड-च्यवन कुंड-
इस मंदिर परिसर में ही जल कुंड भी हैं। जिनमें माना जाता है कि स्नान करने के बाद भक्तों के पाप धुल जाते हैं। इसमें से एक कुंड का नाम नर्मदा है और एक का नाम च्यवन कुंड। च्यवन कुंड में माना जाता है कि नहा लेने से पाप धुल जाते हैं। 
500 साल पुरानी गुफाएं-
मंदिर से लगी हुई चार गुफ़ाएं भी हैं, जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहती हैं। इनको देखने आने वाले लोग अचंभित हो जाते हैं। इनके पास से ही चंदेश्वर नदी भी बहती है। 
इंदौर से बहुत पास-
ये मंदिर आने की तमन्ना है तो इसकी दूरी को इंदौर के रास्ते समझने की कोशिश कीजिए। ये जगह देश के सबसे साफ शहर इंदौर से सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा ये मंदिर बैतूल-इंदौर राजमार्ग पर बना है। मंदिर के चारों तरह खूब हरियाली है और यहां पर अनोखी प्राकृतिक सुंदरता देखी जा सकती है। 
खास बात-
जलमग्न रहने वाले इस शिवलिंग को जीवित शिवलिंग भी कहा जा सकता है। पूरी दुनिया में ऐसे सिर्फ 3 मंदिर ही हैं।